src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> वीमेन स्क्रीन : 2025

Thursday, October 16, 2025

NCW मेंबर ने महिलाओं की शिकायतों का मौके पर ही हल किया

Received on Thursday 16th October 2025 at 19:27 Regarding NCW Special Meeting 

बाकी पर 15 दिनों के अंदर कार्रवाई का निर्देश


लुधियाना
: 16 अक्टूबर 2025: (कार्तिका कल्याणी सिंह//वीमेन स्क्रीन डेस्क)::

महिलाओं के लिए बहुत से कानून भी बने हैं और बहुत से नियम भी। इसके बावजूद महिलाओं के साथ ज़्यादतियां रुक क्यूँ नहीं रहीं? क्यूं बार बार होता है उनका उत्पीड़न। क्योंन लम्बे समय तक लटकते रहते हैं महिला उत्पीड़न के मामले? कहीं पति के अवैध संबंध, कहीं दाज दहेज के मामले, कहीं पति की दूसरी तीसरी शादी का मामला, कहीं नौकरी में बॉस का दबाव, कहीं किसी न किसी तरह की धोखाधड़ी..! आखिर क्यूँ नहीं रुकता यह अन्याय और उत्पीड़न? वैवाहिक संबंध सात जन्मों के गिने जाते थे हमारे देश की संस्कृति में।  जन्म जन्म तक साथ निभाने वाले हम लोग कहाँ आ चुके हैं? लिव इन रिलेशन में? फिर भी ज़िंदगी में न सुख न चैन? आए दिन लड़कियों की हत्याएं! आए दिन महिलाओं की मौत! देवी के नौ रूपों की पुजा करने वाला हमारा समाज...., कंजक पूजा करने वाले हम लोग...! किस की नज़र लग गई है हमें? किस गर्त में गिर चुके हैं हम?

इन कानूनों और नियमों के बावजूद इन सवालों के जवाब वही ढूंढ़ता जिसके अंदर इन घटनाओं के कारण कोई दर्द उठा होता। लेकिन भगवान ढूंढ ही लेता है जिसे लोगों के दुःख दर्द दूर करने का जरिया बनाना होता है। इस मामले में भगवान ने ढूंढा ममता कुमारी को। ममता कुमारी इस समय राष्ट्रिय महिला आयोग की एक ऐसी सक्रिय सदस्य हैं जो बरसों से महिलाओं का उत्पीड़न दूर करने के लिए पूरी तरह समर्पित है। 

नेशनल कमीशन फॉर विमेन (NCW) की मेंबर ममता कुमारी ने गुरुवार को पुलिस को निर्देश दिया कि उनके दौरे के दौरान सुनी गई महिलाओं की सभी पेंडिंग शिकायतों का 15 दिनों के अंदर हल किया जाए।

कुमारी ने अलग-अलग बैकग्राउंड की महिलाओं के साथ एक मीटिंग की, जिसमें डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन, कमिश्नरेट पुलिस, लुधियाना रूरल पुलिस और खन्ना पुलिस के अधिकारी शामिल हुए।

सेशन के दौरान, अलग-अलग इलाकों की महिलाओं ने घरेलू हिंसा, दहेज और दूसरे हैरेसमेंट से जुड़ी शिकायतें शेयर कीं। मिली 44 शिकायतों में से ज़्यादातर का मौके पर ही निपटारा कर दिया गया, और बाकी मामलों के लिए सख्त आदेश जारी किए गए।

मैडम ममता कुमारी ने जल्दी समाधान का भरोसा दिया और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को हर मामले की मॉनिटरिंग के लिए एक कमेटी बनाने का निर्देश दिया। उन्होंने पुलिस अधिकारियों को महिलाओं के खिलाफ अत्याचार करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया।

इसके साथ ममता कुमारी ने ज़ोर देकर कहा, "महिलाओं को बिना डरे शिकायत दर्ज करानी चाहिए। NCW हर महिला को न्याय दिलाने के लिए कमिटेड है।" उन्होंने उनसे महिलाओं की भलाई को प्राथमिकता देने, उनकी चुनौतियों का तुरंत समाधान करने और सपोर्ट प्रोग्राम को असरदार तरीके से लागू करने को पक्का करने की अपील की। ​​

उन्होंने 'तेरे मेरे सपने' सेंटर के बारे में भी बात की, जो सफल शादियों के लिए युवाओं को मज़बूत बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। उन्होंने बताया कि ये सेंटर शादी के इमोशनल, सोशल और साइकोलॉजिकल पहलुओं पर एक्सपर्ट काउंसलिंग देते हैं, जिससे लोगों को हेल्दी फैमिली रिलेशनशिप के लिए ज़रूरी चीज़ें मिलती हैं। 

Tuesday, September 30, 2025

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में हिंदी माह 2025 का भव्य समापन

 प्रविष्टि तिथि: 30 September 2025 at 8:56PM by PIB Delhi

महिलाओं के शक्ति स्वरुप से प्रवाहित प्रेरणा से सभी को लाभ - डॉ. प्रियंका मिश्रा

दुर्गा अष्टमी के पावन अवसर पर समापन समारोह आयोजित

नई दिल्ली: 30 सितंबर 2025: (मीडिया लिंक रविंद्र//वीमेन स्क्रीन)::

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के राजभाषा विभाग द्वारा आयोजित हिंदी माह 2025 के दौरान एक महीने तक चला समारोह विभिन्न प्रतियोगिताओं के पुरस्कार वितरण समारोह के साथ धूमधाम से आज संपन्न हुआ। केंद्र की निदेशक (प्रशासन) डॉ. प्रियंका मिश्रा ने विजेताओं को सम्मानित किया। अलग-अलग श्रेणियों में लगभग 50 प्रतिभागियों को पुरस्कार दिए गए। इस अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र  के विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्रों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए। जनपद-सम्पदा प्रभाग के प्रमुख प्रो.के. अनिल कुमार भी समारोह में उपस्थित थे। राजभाषा विभाग के प्रभारी प्रो. अरुण कुमार भारद्वाज ने कार्यक्रम का सुचारू रूप से संचालन किया और कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन दिया।


इस अवसर पर, डॉ. प्रियंका मिश्रा ने हिंदी माह के सफल आयोजन के लिए राजभाषा विभाग को बधाई दी। उन्होंने दुर्गा अष्टमी की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह कार्यक्रम इस पावन दिन पर आयोजित हुआ इसलिए इसकी सफलता निश्चित थी। उन्होंने कहा, “मेरा मानना ​​है कि महिलाएं शक्ति का प्रतीक होती हैं और उनकी शक्ति से सभी लाभान्वित होते हैं।” उन्होंने आगे कहा, “कुछ साल पहले हम हिंदी सप्ताह मनाते थे, फिर हमने हिंदी पखवाड़ा मनाना शुरू किया। इस साल हमने हिंदी माह का आयोजन किया। यह हिंदी भाषा के प्रति इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”


कार्यक्रम की शुरुआत इंद्रेश कुमार शुक्ला द्वारा स्वास्ति वचन और अरविंद कुमार शर्मा द्वारा सरस्वती वंदना से हुई। अंत में अदिति ने मधुर भक्ति गीत गाए और मनीषा पॉल ने गिटार पर भजन प्रस्तुत किया।

उल्लेखनीय है कि हिंदी माह 2 से 30 सितंबर तक मनाया गया। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र  के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी के अनुसार, हिंदी माह मनाने का उद्देश्य हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देना और इसके प्रति जागरूकता पैदा करना था। इस पूरे महीने के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियाँ और प्रतियोगिताएँ आयोजित की गईं। इनमें पुरानी या अब कम इस्तेमाल होने वाली हिंदी शब्दावली, स्वयं रचित कविता का पाठ, स्वास्ति गायन, मंगलाचरण और भक्ति गीत, रोजमर्रा की ज़िंदगी में इस्तेमाल होने वाले क्षेत्रीय शब्दों पर लेखन प्रतियोगिताएं और भाषाविज्ञान/सर्वेक्षण से संबंधित विषयों पर प्रतियोगिताएं शामिल थीं।

कुल मिलाकर यह एक यादगारी आयोजन रहा जिसकी यादें सभी श्रोताओं और दर्शकों ने अपने दिल दिमाग में संजो लीं। 

***//पीके/केसी/एसके//(रिलीज़ आईडी: 2173486)

Saturday, September 27, 2025

सूडान में भूखमरी की हालत लगातार गंभीर

दयनीय हालत में जी रहे हैं महिलाएं ,बच्चे और बज़ुर्ग 

WFP/Mohamed Galal. People continue to flee escalating violence in El Fasher, many arriving in Tawila with little or not. Sudan, Tawila, North Darfur.
इंटरनेट की दुनिया से: 27 सितंबर 2025: (मीडिया लिंक 32//वीमेन स्क्रीन डेस्क)::

इंटरनेट से सबंधित रहने का खतरा भी है कि दुनिया के हर रंग का आपको पता चलता है। वह रंग बहुत बड़ी ख़ुशी का भी हो सकता है और किसी गहरे दुःख या गहन सदमे का भी। इस बार हम चर्चा कर रहे हैं सूडान में अकाल और भुखमरी जैसी मुसीबतों की भी।  

यहां बताना ज़रूरी भी है कि इंटरनेट की दुनिया के मुताबिक सूडान इस समय दुनिया के सबसे गंभीर अकाल और भुखमरी संकट का सामना कर रहा है, जहाँ लगभग आधी आबादी, यानी 2.5 करोड़ लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे हैं और लाखों लोग, विशेषकर बच्चे, भुखमरी के कगार पर हैं. अप्रैल 2023 के गृहयुद्ध ने इस संकट को बढ़ा दिया है, जिससे बुनियादी ढांचा तबाह हो गया है और लाखों लोग बेघर हो गए हैं. अकाल का स्तर इतना भयावह है कि विश्व खाद्य कार्यक्रम ने देश के कई हिस्सों में अकाल की पुष्टि की है और चिंता जताई है कि यह और फैल सकता है।  

भुखमरी की स्थिति का विवरण भी काम विकराल नहीं है। व्यापक खाद्य असुरक्षा भी बुरी तरह से गंभीर बानी हुई है। सूडान की लगभग आधी आबादी, यानी 25 मिलियन (2.5 करोड़) से अधिक लोग गंभीर रूप से खाद्य के मामले में असुरक्षित हैं। भूखमरी उनके सिर पर मौत बन कर मंडरा रही है। 

हकीकतें और तथ्य भी भयानक हैं। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक भुखमरी के कगार पर 6.3 लाख से अधिक लोग भुखमरी के भयानक स्तर का सामना कर रहे हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक संख्या है। 

इसका बच्चों पर भी हो रहा है बहुत ही गहरा असर। छोटी सी उम्र अर्थात 5 साल से कम उम्र के तीन में से एक से अधिक बच्चे तीव्र कुपोषण का सामना कर रहे हैं, जो अकाल की परिभाषा से भी बहुत अधिक है।  

इस पर अकाल की पुष्टि भी हो चुकी है। सूडान के कम से कम 10 क्षेत्रों में अकाल की पुष्टि हुई है, जिनमें उत्तरी दारफुर का ज़मज़म शिविर भी शामिल है। 

चिंता की बात यह भी है कि लगातार बिगड़ता संकट स्थिति को और भी गंभीर कर रहा है। एल फशर जैसे शहरों में भोजन की कमी और बढ़ती कीमतों के कारण भूख और कुपोषण से होने वाली मौतें बढ़ रही हैं। यदि इसे तुरंत नहीं रोका गया तो परिणाम विचलित करने वाले हो सकते हैं।  

इस समय भी 5 अगस्त 2025 की एक रिपोर्ट पढ़ने के बाद दिल दर्द से भर उठा है। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (WFP) ने इस दिशा में बहुत सा काम किया है। दुनिया भर से छोटे बड़े संगठन इस प्रोग्राम के साथ जुड़े हुए हैं। स्थानीय स्तर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत से संगठन अपनी क्षमता के मुताबिक इस कायर्क्रम को सफल बनाने में जुटे हुए हैं। कोशिश है इस अकाल के बावजूद कोई भी भूखमरी का शिकार न हो सके। 

इन सभी कोशिशों के बावजूद सूडान में अकाल की पहली पुष्टि के एक साल बाद, विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने चेतावनी दी है कि एल फशर में फंसे लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं। लोगों की हालत बेहद दयनीय है? क्या बच्चे क्या नदी सभी इस संकट में तड़पन झेल रहे हैं। क्या पुरुष क्या महिलाएं सभी के लिए मुसीबत बेहद खतरनाक है। महिलाओं के लिए यह अधिक गंभीर ही है। 

आप को शायद यकीन न हो लेकिन यह सच है कि एल फशर की आबादी भुखमरी का सामना कर रही है और मानवीय ज़रूरतें बढ़ती जा रही हैं क्योंकि डब्ल्यूएफपी द्वारा सूडान में किए गए प्रयासों के बावजूद, घेरे हुए शहर तक पहुँच बंद कर दी गई है।

भूखमरी लगातार फैल रही है। व्यापक क्षेत्र इसकी जकड़ में हैं। पोर्ट सूडान, सूडान - उत्तरी दारफुर में सूडान के ज़मज़म शिविर में अकाल की पहली पुष्टि के एक साल बाद, संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने चेतावनी दी है कि घेरे हुए राज्य की राजधानी, एल फशर में फंसे परिवारों को भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है। शहर मानवीय पहुँच से कट गया है, जिससे शेष आबादी के पास बचे हुए सीमित संसाधनों से ही जीवनयापन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।

अब यह बेहद दुखद सत्य है कि विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) एक साल से भी ज़्यादा समय से एल फशर तक सड़क मार्ग से खाद्य सहायता नहीं पहुँचा पा रहा है क्योंकि वहाँ जाने वाली सभी सड़कें अवरुद्ध हैं। डब्ल्यूएफपी शहर के 2,50,000 लोगों को डिजिटल नकद सहायता प्रदान करना जारी रखे हुए है, जिससे वे बाज़ारों में मिलने वाला कोई भी भोजन खरीद सकते हैं, लेकिन यह घेरे हुए शहर की व्यापक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काफ़ी कम है।

WFP (डब्ल्यूएफपी) के पूर्वी और दक्षिणी अफ़्रीका के क्षेत्रीय निदेशक एरिक पर्डिसन ने कहा, "एल फ़शेर में हर कोई रोज़ाना ज़िंदा रहने के संघर्ष से जूझ रहा है। दो साल से ज़्यादा समय से चल रहे युद्ध में लोगों के हालात पूरी तरह से ख़त्म हो चुके हैं। अगर तुरंत और लगातार मदद न मिले, तो बहुत सी जानें जा सकती हैं।" अब कौन बचाएगा इन्हें ? कौन बनेगा तारणहार ? 

व्यापारिक मार्ग बंद होने और आपूर्ति लाइनें अवरुद्ध होने के कारण, ज्वार या गेहूँ जैसी बुनियादी खाद्य सामग्री, जिनका इस्तेमाल पारंपरिक रोटियाँ और दलिया बनाने में होता है, एल फ़शेर में बाकी सूडान की तुलना में 460 प्रतिशत तक महँगी हैं। युद्ध के दौरान स्थानीय समूहों ने भूखे लोगों को गर्म भोजन उपलब्ध कराने के लिए सामुदायिक रसोई स्थापित की थीं, लेकिन अब बहुत कम ही चल रही हैं। बाज़ारों और क्लीनिकों सहित नागरिक बुनियादी ढाँचे पर हमले हुए हैं। रिपोर्टों से पता चलता है कि कुछ परिवार ज़िंदा रहने के लिए पशुओं के चारे और खाद्य अपशिष्ट का सहारा ले रहे हैं। कई लोग जो भागने में कामयाब रहे हैं, उन्होंने बड़े पैमाने पर हिंसा, लूटपाट और यौन उत्पीड़न में वृद्धि का हवाला दिया है।

आठ वर्षीय सोंडोस ​​ने डब्ल्यूएफपी को बताया, "एल फशेर में भारी गोलाबारी और भूख थी। सिर्फ़ भूख और बम। इसलिए हमने एल फशेर छोड़ दिया।" सोंडोस ​​अपने परिवार के पाँच सदस्यों के साथ एल फशेर से भागी थीं, जो सिर्फ़ बाजरे पर गुज़ारा कर रहे थे। वह हाल ही में तवीला में विस्थापित हुए लगभग 400,000 लोगों में से एक हैं, जिन्हें डब्ल्यूएफपी सहायता मिल रही है।

पूरे सूडान में, डब्ल्यूएफपी हर महीने चार मिलियन से ज़्यादा लोगों तक पहुँच रहा है - अकेले मई में 5.5 मिलियन लोगों तक पहुँच बनाई गई, जो देश के सबसे ज़्यादा खाद्य असुरक्षित और सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्रों में है। इसमें लगभग 1.7 मिलियन लोग शामिल हैं - अकालग्रस्त या अकाल के खतरे वाले क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षित लोगों का 80% - और 600,000 से ज़्यादा महिलाओं और बच्चों को पोषण संबंधी पूरक आहार दिया जा रहा है।

विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) की सहायता से मध्य दारफुर के छह और पश्चिमी दारफुर के दो इलाकों में अकाल के खतरे को कम करने में मदद मिली है। लेकिन, बरसात के मौसम के चलते, दारफुर तक सड़क मार्ग जल्द ही बंद हो जाएगा। अगर सहायता बाधित होती है, तो नाज़ुक प्रगति के भी उलट जाने का खतरा है।

विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) की आपूर्ति श्रृंखला और वितरण निदेशक कोरिन फ़्लीशर ने कहा, "हमने सबसे कठिन परिस्थितियों में प्रगति की है। लेकिन अल फ़शर जैसे प्रमुख स्थानों तक पहुँच अभी भी अवरुद्ध है। हमें ज़रूरतमंद सभी नागरिकों तक पहुँचने के लिए जगह दी जानी चाहिए।"

1 अगस्त तक, WFP को सूडान के मानवीय सहायता आयोग (HAC) से पोर्ट सूडान में मानवीय सहायता के एक काफिले को अल फ़शर भेजने की मंज़ूरी मिल गई है। रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स, जिन्होंने उत्तरी दारफुर की राजधानी को एक साल से ज़्यादा समय से घेरे में रखा है, ने अभी तक लड़ाई रोकने के लिए समर्थन नहीं दिया है ताकि मानवीय सामग्री शहर में पहुँचाई जा सके।

फ़्लीशर ने कहा, "विश्व खाद्य कार्यक्रम अल फ़शर में खाद्य सहायता से भरे ट्रक भेजने के लिए तैयार है।" 

"हमें सुरक्षित मार्ग की गारंटी की तत्काल आवश्यकता है।"

जून में एल फशर के लिए खाद्य और पोषण सामग्री ले जा रहे विश्व खाद्य कार्यक्रम और यूनिसेफ के एक संयुक्त काफिले पर हमला हुआ - पाँच लोग मारे गए और सहायता सामग्री नष्ट हो गई।

विश्व खाद्य कार्यक्रम को आपातकालीन खाद्य, नकद और पोषण सहायता जारी रखने के लिए अगले छह महीनों में 645 मिलियन डॉलर की आवश्यकता है। पाइपलाइन टूटने के कारण पहले से ही भारी नुकसान हो रहा है। पूर्वी सूडान के विस्थापन शिविरों में रहने वाले कुछ परिवार, जो दो साल से विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) की सहायता पर निर्भर हैं, अब कुछ भी प्राप्त नहीं कर रहे हैं।

Friday, August 29, 2025

अफगानिस्तान में तालिबानी कब्जे के चार साल बाद एक विशेष अवलोकन

Received From UN Women  on Friday 29th August 2025 at 2:30 PM Regarding Women in Afghanistan 

अफ़ग़ानों ने लड़कियों की शिक्षा का भारी समर्थन किया

संयुक्त राष्ट्र महिला की नई रिपोर्ट में पाया गया है कि 92 प्रतिशत अफ़ग़ान लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा का समर्थन करते हैं

संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा समर्थित एक व्यावसायिक प्रशिक्षण कक्षा में भाग लेती महिलाएँ।
चित्र: संयुक्त राष्ट्र महिला/सैयद हबीब बिडेल


काबुल:29 अगस्त 2025: (मीडिया लिंक32//यू एन वीमेन//वीमेन स्क्रीन डेस्क)::

लड़कियों को शिक्षा के नाम पर डराने धमकाने वाला अफगानिस्तान अब बदल रहा है। अब लड़कियों की शिक्षा को प्रेम की नज़र से देखने वाला सम्मान भी तेज़ी से पैदा होने लगा है। तब्दीली हैरानकुन भी है और नई उम्मीदों के रौशन होने की दस्तक भी। यह बात केवल अफगानिस्तान के लिए नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए एक गर्व और ख़ुशी की बात है। 

लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा पर जारी प्रतिबंध के बावजूद, एक नए संयुक्त राष्ट्र महिला लिंग अलर्ट के अनुसार, सभी लिंग और सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के अफ़ग़ान लगभग सार्वभौमिक रूप से लड़कियों के सीखने के अधिकार का समर्थन करते हैं।

यह अलर्ट शिक्षा और रोज़गार, सुरक्षा और गतिशीलता सहित दस प्रमुख क्षेत्रों में महिलाओं और लड़कियों की वर्तमान स्थिति पर नज़र डालता है, और तालिबान के कब्जे के चार साल बाद प्रतिबंधों की क्रिस्टलीकृत प्रणाली के प्रभाव पर प्रकाश डालता है।

2,000 से ज़्यादा अफ़गानों के घर-घर जाकर किए गए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में, 92 प्रतिशत ने कहा कि लड़कियों के लिए अपनी स्कूली शिक्षा जारी रखना 'ज़रूरी' है, और ग्रामीण और शहरी समुदायों में इसका समर्थन किया जा रहा है।

ग्रामीण आबादी में, 87 प्रतिशत पुरुषों और 95 प्रतिशत महिलाओं ने लड़कियों की स्कूली शिक्षा का समर्थन किया, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आँकड़ा पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए 95 प्रतिशत था।

अफ़गानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र महिला की विशेष प्रतिनिधि, सुसान फर्ग्यूसन ने कहा, "लड़कियाँ लगभग हमेशा सबसे पहले यही कहती हैं - वे सीखने के लिए बेताब हैं और बस शिक्षा प्राप्त करने का मौका चाहती हैं।"

"परिवार भी कहते हैं कि वे चाहते हैं कि उनकी बेटियाँ यह सपना देखें। वे जानते हैं कि साक्षरता और शिक्षा एक ऐसे देश में, जहाँ आधी आबादी गरीबी में जी रही है, एक लड़की के जीवन की दिशा बदल सकती है।"

जिन क्षेत्रों में तालिबान द्वारा गैर-सरकारी संगठनों में महिलाओं के काम करने पर प्रतिबंध कथित तौर पर लागू है, जुलाई और अगस्त 2025 में किए गए एक अलग संयुक्त राष्ट्र महिला टेलीसर्वेक्षण में, सर्वेक्षण में शामिल 97 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि इस प्रतिबंध का उनके दैनिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

अफ़गानिस्तान में आधे से ज़्यादा गैर-सरकारी संगठन अब रिपोर्ट कर रहे हैं कि इससे महिलाओं और लड़कियों तक ज़रूरी सेवाएँ पहुँचाने की उनकी क्षमता प्रभावित हुई है।

संयुक्त राष्ट्र महिला के अफ़गानिस्तान जेंडर अलर्ट में अन्य प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

अपने जीवन पर व्यवस्थागत और निरंतर प्रतिबंधों के बावजूद, 40 प्रतिशत अफ़गान महिलाएँ अभी भी एक ऐसे भविष्य की कल्पना करती हैं जहाँ बदलाव और समानता संभव हो - भले ही जनभागीदारी के लगभग हर रास्ते बंद हो गए हों।

जुलाई और अगस्त 2025 में किए गए एक टेलीसर्वेक्षण में, देश के सभी क्षेत्रों की लगभग तीन-चौथाई महिलाओं ने अपने मानसिक स्वास्थ्य को 'खराब' या 'बहुत खराब' बताया।

तीन-चौथाई महिलाओं ने बताया कि उनके समुदायों के निर्णयों पर उनका कोई प्रभाव नहीं है; अप्रैल 2025 में संयुक्त राष्ट्र महिला, यूएनएएमए और अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम) द्वारा किए गए परामर्शों के अनुसार, आधे लोगों ने कहा कि उनके विस्तारित परिवार पर उनका कोई प्रभाव नहीं है और एक-चौथाई ने अपने घर पर;

जून 2025 में संयुक्त राष्ट्र महिला, यूएनएएमए और आईओएम द्वारा किए गए परामर्शों में, 14 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि वे सप्ताह में केवल एक बार ही घर से बाहर निकलती हैं, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 2 प्रतिशत है, और केवल 41 प्रतिशत महिलाएं दिन में कम से कम एक बार घर से बाहर निकलती हैं, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 88 प्रतिशत है।

लगता है दुनिया में नए दिन सामने आने लगे हैं। नया सूरज निकलने लगा है। बंद दरवाज़ों वाले अंधेरे घरों में शिक्षा की रौशनी दाखिल होने लगी है। इसी रौशनी से जहालत से भरे अँधेरे और जंगल हुए ज़ेहनों में भी रौशनी पहुँचने लगी है। नीअब पक्का है कि जंग और नफरत की बहुत सी बुरी खबरों के बावजूद दुनिया भर में अच्छे दिन आने वाले हैं। 

Thursday, July 3, 2025

घर चलाने की क्षमता- -तेज़ी से बदल रहा है महिला शक्ति का दृश्य

भारत:तमिलनाडु में 16 लाख महिलाओं के लिए बेहतर रोज़गार की उम्मीदें

World Bank तमिलनाडु महिला रोज़गार और सुरक्षा (WESAFE) कार्यक्रम के तहत 16 लाख महिलाओं को लाभ मिलने की उम्मीद है.
देश और दुनिया: 2 जुलाई 2025: (मीडिया लिंक32 संयुक्त राष्ट्र संघ के सौजन्य से):: 
घर हो या देश हो या दुनिया हो महिलाएं ही बनाती हैं इसे सुंदर और रहने लायक। इन्हीं किसमझ बूझ और जीवट से बन पाता है सफल जीवन। महिलाओं ने ही बड़ी ख़ामोशी से लिखे हैं सफलता के इतिहास। संयुक्त राष्ट्र संघ इनकी सच्ची कहानियां अक्सर सामने लाता है। एक कहानी और नज़र आई है। यह कहानी है तमिलनाडु की। वहां 16 लाख महिलाओं के लिए सामने आई हैं रोज़गार की बेहतर और नई उमीदें जिनसे चमक उठेगा अनगिनत परिवारों का भविष्य। 

यूं तो दुनिया भर में स्थिति बदल रही है। घर संसार चलाने में कभी पुरुषों का वर्चस्व हुआ करता था। इस वजह से उनके मन में अहंकार का आना भी स्वाभाविक ही हुआ करता था। इस वजह से समझा जाने लगा था कि घर चलाने के मामले में जो क्षमता पुरुष की होती है वह महिलाओं की नहीं होती। लेकिन कुछ दशकों का दौरान यह स्थिति तेज़ी से बदल रही है। महिलाओं ने साबित किया है की वे किसी से कम भी नहीं। इस मामले में जहाँ तक भारत की स्थिति है तो हमारे देश में भी यह बदलाव तेज़ी से दिखने लगा है। देश और राज्य की सरकारें भी इस दिशा में सक्रिय हैं। तमिलनाडु महिला रोज़गार और सुरक्षा (WESAFE) कार्यक्रम के तहत 16 लाख महिलाओं को लाभ मिलने की उम्मीद है।

World Bank के सक्रिय सहयोग से तमिलनाडु महिला रोज़गार और सुरक्षा (WESAFE) कार्यक्रम के तहत 16 लाख महिलाओं को सीधे सीधे लाभ मिलने की अब पूरी पूरी उम्मीद है। लगता है जैसे सफलता उनके दरवाज़े पर खड़ी है। 

भारत के तमिलनाडु प्रदेश में लगभग 16 लाख महिलाओं को अब गुणवत्तापूर्ण रोज़गार मिलने की उम्मीदें मज़बूत हुई हैं. यह विश्व बैंक की एक पहल की बदौलत सम्भव नज़र आ रहा है. विश्व बैंक के वाशिंगटन स्थित कार्यकारी निदेशक मंडल ने तमिलनाडु में महिला श्रम भागेदारी को बढ़ाने के उद्देश्य से एक नए कार्यक्रम को मंज़ूरी दी है। 

इस पहल का नाम है-तमिलनाडु महिला रोज़गार और सुरक्षा (WESAFE) बहुत लोकप्रिय है अब तो। 

तेज़ी से शहरीकरण की दिशा में बढ़ रहे तमिलनाडु में, इलैक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में नए अवसर भी उभर रहे हैं। 

तमिलनाडु में महिला श्रम भागेदारी की दर देश में सबसे अधिक है और कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के मानक स्थापित करने में यह राज्य अग्रणी रहा है। 

फिर भी, पुरुषों की तुलना में महिला भागेदारी दर 32 प्रतिशत अंक कम बनी हुई है. साथ ही, अधिकतर महिलाएँ कृषि क्षेत्र या कम वेतन वाले अनौपचारिक कार्यों में कार्यरत हैं। 

तमिलनाडु सरकार ने वर्ष 2030 तक एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा है. इसे प्राप्त करने के लिए महिला श्रम भागेदारी को बढ़ाना बेहद आवश्यक है। 

इसी को ध्यान में रखते हुए WESAFE कार्यक्रम के अन्तर्गत 6 लाख महिलाओं को कौशल प्रशिक्षण और करियर सहयोग, तथा 18 हज़ार महिला उद्यमियों को व्यापार आरम्भ करने हेतु इनक्यूबेशन सहायता प्रदान की जाएगी। 

महिला सशक्तिकरण

विश्व बैंक ने पहले भी तमिलनाडु में कई सुरक्षित छात्रावास स्थापित करने में राज्य सरकार की मदद की है।  

इस नए अभियान के ज़रिए अब इन सुविधाओं का विस्तार करते हुए, क्रेश (शिशु देखभाल केन्द्र), बुज़ुर्गों की देखरेख, सुरक्षित परिवहन विकल्प, और सहायता केन्द्रों की व्यवस्था भी की जाएगी, ताकि महिलाओं के विरुद्ध उत्पीड़न और दुर्व्यवहार की घटनाओं की रिपोर्टिंग आसान हो सके। 

विश्व बैंक भारत के देश प्रबंधक ऑगस्ट टानो कुएमे का कहना है, "कौशल विकास, वित्तीय पहुँच और क्रेश, सुरक्षित छात्रावास और परिवहन जैसी सहायक सेवाओं की उपलब्धता के ज़रिए यह कार्यक्रम, महिलाओं को कार्यबल में भाग लेने और तमिलनाडु के ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था के लक्ष्य में योगदान देने की दिशा में सशक्त करेगा।"

इस कार्यक्रम के तहत तमिलनाडु की क्षमता, तकनीकी साझेदारियों और संस्थागत ढाँचों को मज़बूती मिलेगी।  

कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहे मुडेरीस अब्दुलाही मोहम्मद और प्रद्युम्न भट्टाचार्य ने कहा, "यह कार्यक्रम उद्योग संघों, प्रमुख संस्थानों और निजी संगठनों के साथ साझेदारी को भी प्रोत्साहित करेगा, जिससे महिला कर्मचारियों, छात्राओं व महिला उद्यमियों के लिए आवास एवं परिवहन की गुणवत्ता तथा उपलब्धता बेहतर हो सकेगी."

इसके अतिरिक्त, निजी पूँजी की भागेदारी वाला एक राज्य स्तरीय मंच, महिलाओं को ऋण गारंटी कोष और सूक्ष्म अनुदान जैसे वित्तीय उत्पादों तक पहुँच दिलाने में मदद करेगा और उनकी जागरूकता बढ़ाएगा। 

इस कार्यक्रम के लिए अन्तरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD) से लिए गए 15 करोड़ डॉलर के ऋण की अवधि 25 वर्ष है, जिसमें 5 वर्ष की छूट अवधि शामिल होगी। 

Thursday, June 19, 2025

देखो-कितनी अफ़गान महिलाएँ शिक्षा, नौकरी और प्रशिक्षण से वंचित हैं

From UN Women 17th June 2025 at 3:48 PM Regarding Women United Nations 

संयुक्त राष्ट्र महिला की ओर से 17 जून 2025 को 3:48 बजे महिलाओं के बारे में

दस में से आठ युवा अफ़गान महिलाएँ शिक्षा, नौकरी और प्रशिक्षण से वंचित हैं

संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा समर्थित गाँव आधारित दूध संग्रहण केंद्र, जहाँ महिलाएँ स्थानीय स्तर पर दूध बेच सकती हैं। दारा-ए-नूर ज़िला, जलालाबाद प्रांत, अफ़ग़ानिस्तान। 2025। चित्र: संयुक्त राष्ट्र महिला/सैयद हबीब बिडेल
न्यूयॉर्क: 17 जून 2025: (मीडिया लिंक 32//संयुक्त राष्ट्र महिला के सौंजन्य से)::

संयुक्त राष्ट्र से मिल रही खबरें आज भी चिंता पैदा करती हैं। आधुनिक युग और विकास के दावों के दरम्यान ऐसी खबरें भयावह लगती हैं। यह नई खबर कहती है कि लगभग दस में से आठ युवा अफ़गान महिलाएँ शिक्षा, नौकरी और प्रशिक्षण से वंचित हैं। अनुमान लगाया जा सकता है कि इन युवा महिलाओं का इस तरह इन मूलभूत सुविधाओं और अधिकारों से वंचित रह जाना किस तरह के भविष्य का निर्माण करेगा। 

संयुक्त राष्ट्र महिला ने 2024 में अफ़गानिस्तान लिंग सूचकांक लॉन्च किया था, जो तालिबान के सत्ता में आने के बाद से महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता पर सबसे व्यापक अध्ययन है। इसका महत्व भी बहुत है। यह सूचकांक बताता है कि अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के लगभग चार साल बाद, संयुक्त राष्ट्र महिला की एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि अफ़गान महिलाएँ मानव विकास के लिए वैश्विक मानकों से काफ़ी पीछे रह गई हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक अफ़गानिस्तान लिंग सूचकांक, तालिबान के सत्ता में आने के बाद से महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता का सबसे व्यापक मूल्यांकन, बताता है कि अफ़गानिस्तान में दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा लिंग अंतर है, जहाँ स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्तीय समावेशन और निर्णय लेने में महिलाओं और पुरुषों के परिणामों के बीच 76 प्रतिशत असमानता है। सूचकांक यह भी दर्शाता है कि महिलाएँ औसतन अपनी पूरी क्षमता का केवल 17 प्रतिशत ही इस्तेमाल कर पाती हैं, जबकि दुनिया भर में औसतन महिलाएँ 60.7 प्रतिशत हासिल करती हैं।

संयुक्त राष्ट्र महिला कार्यकारी निदेशक सिमा बहौस ने कहा, "अफ़गानिस्तान का सबसे बड़ा संसाधन इसकी महिलाएँ और लड़कियाँ हैं।" "उनकी क्षमता का अभी भी दोहन नहीं हुआ है, फिर भी वे दृढ़ हैं। अफ़गान महिलाएँ एक-दूसरे का समर्थन कर रही हैं, व्यवसाय चला रही हैं, मानवीय सहायता पहुँचा रही हैं और अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठा रही हैं। उनका साहस और नेतृत्व उनके समुदायों को नया आकार दे रहा है, यहाँ तक कि भारी प्रतिबंधों के बावजूद भी। हमें उनके साथ एक ऐसे देश की तलाश में खड़ा होना चाहिए जो उनके अधिकारों और सभी अफ़गानों की आकांक्षाओं को दर्शाता हो।"

यूरोपीय संघ से वित्तीय सहायता के साथ विकसित संयुक्त राष्ट्र महिला की रिपोर्ट के अनुसार, 78 प्रतिशत युवा अफ़गान महिलाएँ शिक्षा, रोज़गार या प्रशिक्षण में नहीं हैं - अफ़गान पुरुषों की दर से लगभग चार गुना। लड़कियों और महिलाओं के लिए माध्यमिक और तृतीयक शिक्षा - जिसमें चिकित्सा शिक्षा भी शामिल है - पर प्रतिबंध के बाद लड़कियों के लिए माध्यमिक विद्यालय पूरा करने की दर जल्द ही शून्य हो जाएगी।

अफ़गानिस्तान में अभी भी दुनिया में सबसे बड़ा कार्यबल लिंग अंतर है, जहाँ केवल 24 प्रतिशत महिलाएँ श्रम बल में भाग लेती हैं, जबकि 89 प्रतिशत पुरुष श्रम बल में भाग लेते हैं। महिलाओं के घर पर और कम वेतन वाली, असुरक्षित नौकरियों में काम करने की संभावना अधिक होती है। महिलाएँ अवैतनिक घरेलू कामों में भी अधिक हिस्सा लेती हैं: 74 प्रतिशत महिलाएँ घरेलू कामों में काफ़ी समय बिताती हैं, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा केवल 3 प्रतिशत है।

इस मामले में वित्तीय विभाजन भी उतना ही स्पष्ट है, नए सूचकांक के अनुसार, पुरुषों के पास बैंक खाता होने या मोबाइल मनी सेवाओं का उपयोग करने की संभावना महिलाओं की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक है। यह अंतर् कितना बड़ा है इसका पता सभी को होना भी चाहिए। 

दूसरी तरफ कामकाजी महिलाओं के लिए सामान्य प्रतिबंध लगातार बने हुए हैं और छूट बहुत सीमित है। इसके साथ ही रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि अफ़गान महिलाएँ अभी भी रिकॉर्ड संख्या में कार्यबल में शामिल हो रही हैं, जो लंबे समय से चले आ रहे आर्थिक और मानवीय संकटों से प्रेरित है। रिपोर्ट के अनुसार, 2022 तक, सक्रिय रूप से काम की तलाश करने वाली बेरोज़गार महिलाओं की संख्या अधिग्रहण से पहले की तुलना में चार गुना हो गई थी, जबकि नियोजित महिलाओं की संख्या दोगुनी हो गई थी।

वास्तविक कैबिनेट या स्थानीय कार्यालयों में कोई भी महिला पद पर नहीं है, जो महिलाओं की नीतियों और कानूनों को आकार देने की क्षमता को प्रभावित करता है। सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन से लगभग गायब होने के बावजूद, अफ़गान महिलाएँ अभी भी समावेशी शासन के लिए जोर दे रही हैं और राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर पर अधिकारियों के साथ अपनी चिंताओं को उठाने के तरीके खोज रही हैं।

यह सूचकांक अफ़गानिस्तान में लैंगिक समानता के विकास को मापने में मदद करेगा और चल रहे महिला अधिकार संकट को दूर करने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों के काम को सूचित करेगा। संयुक्त राष्ट्र महिला अफ़गान महिलाओं और लड़कियों की प्राथमिकताओं और ज़रूरतों को वैश्विक प्रतिक्रिया में सबसे आगे रखने के लिए ज़मीनी स्तर पर अपना काम जारी रखती है और वे सम्मान के साथ रह पाती हैं और देश के विकास में योगदान दे पाती हैं।

Sunday, May 11, 2025

भारत को एक उभरती हुई AI शक्ति के रूप में पहचाना गया है

UN Women Post on 6th May 2025

भारत को एक उभरती हुई AI शक्ति के रूप में पहचाना गया है

HDI 2025: भारत में मानव विकास के क्षेत्र में मज़बूती, मगर चुनौतियाँ भी बरक़रार 

UNDP India भारत में महिलाओं को टिकाऊ विकास मुद्दों, विशेष रूप से लैंगिक समानता से जुड़े विषयों पर अग्रणी भूमिका निभाने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। (फ़ाइल फ़ोटो)

6 मई 2025//आर्थिक विकास

भारत में चुनौतियों के बावजूद विकास जारी है। इस पोस्ट केआरंभ में दी गई तस्वीर दिखाती है कि इन कामकाजी महिलाओं के चेहरों पर आर्थिक उपलब्धियों की ख़ुशी भी है। संघर्षों की चमक भी हैं। अपने पांवों पर खड़े होने की मुस्कराहट भी है। यह बहुत बड़ी बात है कि मानव विकास रिपोर्ट 2025 में भारत को एक उभरती हुई AI शक्ति के रूप में पहचाना गया है। यह हम सभी भारतियों के लिए गर्व की बात है।  भारत, वैश्विक AI सूचकांक में शीर्ष 10 में स्थान पाने वाला एकमात्र निम्न-मध्यम आय वाला देश है। अफ़सोस  कि इस तरह की साकारत्मक उपलब्धियों पर मीडिया में आम तौर पर उतनी चर्चा नहीं होती जितनी होनी चाहिए। अब यह सारा विवरण संयुक्तराष्ट्र संघ की तरफ से मिली जानकारी में बताया गया है। 

मानव विकास रिपोर्ट की एक झलक इस ग्राफ में भी 
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की वर्ष 2025 की मानव विकास रिपोर्ट, इस वर्ष मानव विकास की वैश्विक गति में गिरावट की ओर संकेत करती है।  ख़ासतौर पर दक्षिण एशिया में यह गिरावट अधिक स्पष्ट है, लेकिन भारत इस क्षेत्र में एक अपवाद बनकर उभरा है-जहाँ मानव विकास के संकेतकों में निरन्तर प्रगति देखी गई है. भारत ने न केवल स्वास्थ्य, शिक्षा और आय के क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार दर्ज किए हैं, बल्कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के ज़रिए समावेशी और स्थाई विकास का मार्ग भी प्रशस्त किया है। 

“A Matter of Choice: People and Possibilities in the Age of AI” नामक मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, भारत का मानव विकास सूचकांक (HDI) 2022 में 0.676 से बढ़कर 2023 में 0.685 हो गया है। 

इसके साथ भारत, 193 देशों में, एक वर्ष में 133 वें स्थान से आगे बढ़कर, 130वें स्थान पर पहुँच गया है। 

साथ ही, भारत मध्यम मानव विकास श्रेणी में जगह बरक़रार रखते हुए, उच्च मानव विकास (HDI ≥ 0.700) की सीमा के क़रीब पहुँच रहा है। 

1990 के बाद से भारत के HDI मूल्य में 53% की वृद्धि हुई है-जो वैश्विक और दक्षिण एशियाई औसत से तेज़ है। 

यूएनडीपी की भारत में प्रतिनिधि एंजेला लुसिगी के अनुसार, यह प्रगति शिक्षा के औसत वर्षों, जीवन प्रत्याशा, और प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय में स्थाई सुधार को दर्शाती है।

AI की भूमिका

मानव विकास रिपोर्ट 2025 में भारत को एक उभरती हुई AI शक्ति के रूप में पहचाना गया है। यह हमारे इस दौर में एक बहुत बड़ी गर्व की बात है। इस क्षेत्र में तरक्की एक तरह से आने वाले समय सफलता और ख़ुशहालीओ की गारंटी भी है।  

भारत, वैश्विक AI सूचकांक में शीर्ष 10 में स्थान पाने वाला एकमात्र निम्न-मध्यम आय वाला देश है। जब आने वाले भविष्य का इतिहास लिखा जाएगा तो इसे बहुत गर्व से स्मरण किया जाएगा।  यह एक तरह से मील का पत्थर है। 

इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में AI से सम्बन्धित बुनियादी ढाँचा मज़बूत है, और कौशल विकास के क्षेत्र में निरन्तर निवेश हो रहा है।  भारत में AI से सम्बन्धित बुनियादी ढाँचा मज़बूत होना एक सुनहरे भविष्य की झलक दिखाता है। इसका स्पष्ट संकेत है कि भारत के विकास की रफ्तार अब और तेज़ होने वाली है। 

इसी सिलसिले में एक और आंकड़ा सामने आया है कि वर्ष 2019 में जहाँ AI शोधकर्ताओं की संख्या लगभग नगण्य थी, वहीं अब 20% भारतीय लोग, AI शोधकर्ता देश में ही कार्यरत हैं। जल्द ही इनकी संख्या और बढ़ने की भी पूरी संभावना है। 

थोड़ा सा विस्तार में जाएं तो भारत में AI का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जा रहा है-जैसे कि कृषि, स्वास्थ्य सेवा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली. उदाहरण स्वरूप:

   *किसानों को बीमा और ऋण से जुड़ी सलाह उनकी क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराने में AI की मदद ली जा रही है। 

 *शोधकर्ताओं और नई कम्पनियों व उद्योगों के लिए एक राष्ट्रीय AI सुविधा स्थापित करने की योजना बनाई जा रही है। 

*तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे प्रदेशों में यूएनडीपी द्वारा समर्थित AI आधारित समावेशी कौशल विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। 

स्वास्थ्य, शिक्षा और आय में निरन्तर सुधार

1990 में भारत में जीवन प्रत्याशा 58.6 वर्ष थी, जो अब बढ़कर 2023 में 72 वर्ष हो गई है-जोकि HDI सूचकाँक की शुरुआत से लेकर अब तक का सबसे उच्चतम स्तर है। 

शिक्षा के क्षेत्र में भी सुधार हुआ है. अब भारत में बच्चों के स्कूल में बने रहने की औसत अवधि 13 वर्ष तक पहुँच गई है, जबकि 1990 में यह केवल 8.2 वर्ष थी।  

शिक्षा का अधिकार अधिनियम, समग्र शिक्षा अभियान और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जैसे कदमों ने इसमें उल्लेखनीय भूमिका निभाई है. हालाँकि, शिक्षा की गुणवत्ता और परिणामों के क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता अब भी बनी हुई है।

आर्थिक मोर्चे पर, भारत की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 1990 के 2167.22 डॉलर से बढ़कर 2023 में 9046.76 डॉलर हो गई है-जो चार गुना से भी अधिक की वृद्धि है। 

इस विकास का श्रेय, व्यापक आर्थिक सुधारों के साथ-साथ मनरेगा, जन-धन योजना और डिजिटल समावेश जैसी सामाजिक योजनाओं को भी जाता है।  

इस विकास का प्रभाव निर्धन लोगों के जनजीवन पर भी पड़ा है। विशेष रूप से 2015-16 से 2019-21 के बीच साढ़े 13 करोड़ लोग बहुआयामी निर्धनता से बाहर निकले हैं, जो एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।

असमानताओं की चुनौती

हालाँकि रिपोर्ट के अनुसार, भारत में असमानताओं से सम्बन्धित संकेतकों के कारण HDI में 30.7% की हानि हुई है-जो इस क्षेत्र में सबसे बड़े नुक़सानों में से एक है।  

स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में असमानता में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन आय और लिंग असमानता अब भी बड़े पैमाने पर मौजूद है। 

विशेषकर श्रमबल में, महिलाओं की भागेदारी और राजनैतिक प्रतिनिधित्व अब भी कम है. हालाँकि, हाल ही में महिलाओं के लिए एक-तिहाई विधाई सीटें आरक्षित करने वाले संविधान संशोधन जैसे क़दम, सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में परिवर्तन की आशा का संचार करते हैं। 

वैश्विक परिप्रेक्ष्य और दक्षिण एशिया की स्थिति

रिपोर्ट में वैश्विक मानव विकास की धीमी रफ़्तार पर चिन्ता जताई गई है। यह 1990 के बाद से सबसे धीमी गति पर है।  

यदि 2020 से पहले की प्रगति बनी रहती, तो दुनिया 2030 तक उच्च मानव विकास की दिशा में अग्रसर होती. लेकिन अब इस लक्ष्य में कई दशकों की देरी का ख़तरा है। 

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि धनी और निर्धन देशों के बीच असमानताएँ लगातार गहरी होती जा रही हैं।  

Friday, March 28, 2025

महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए कई योजनाएं

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय//Azadi Ka Amrit Mahotsav//प्रविष्टि तिथि: 28 MAR 2025 at 3:25 PM by PIB Delhi

केंद्र सरकार कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी और बढ़ाने के लिए बहुत कुछ कर रही है 


नई दिल्ली
: 28 मार्च 2025: (PIB Delhi//वीमेन स्क्रीन डेस्क)::

रोज़गार और बेरोज़गारी पर आधिकारिक डेटा स्रोत आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) है, जिसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) वर्ष 2017-18 से आयोजित करता आ रहा है। सर्वेक्षण की अवधि हर साल जुलाई से जून तक होती है। नवीनतम उपलब्ध वार्षिक पीएलएफएस रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 से 2023-24 के दौरान 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की महिलाओं की सामान्य स्थिति पर अनुमानित श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) इस प्रकार है:

वर्ष

एलएफपीआर (प्रतिशत में)

 

2021-22

32.8

2022-23

37.0

2023-24

41.7

 

स्रोत: पीएलएफएसएमओएसपीआई

पीएलएफएस डेटा देश में पिछले कुछ वर्षों में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है।

भुगतान वाले कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों की ओर से देश भर में कई योजनाएं और नीतिगत प्रयाय किए जा रहे हैं।

सरकार ने स्टार्ट-अप्स की परिवर्तनकारी क्षमता को पहचानते हुए महिला उद्यमिता सहित उद्यमिता की मदद करने और उनका पोषण करने में कई पहल की हैं। स्टार्ट-अप इंडिया पहल के तहत सरकार से समर्थित 1,57,066 स्टार्ट-अप में से लगभग आधे 73,000 से अधिक स्टार्ट-अप में कम से कम एक महिला निदेशक हैं, जो नवाचार और आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।

सरकार ने कंपनी अधिनियम, 2013 में ऐसे प्रावधान किए हैं, जिसके तहत कंपनियों को कम से कम एक महिला निदेशक रखना अनिवार्य है। परिणामस्वरूप, आज लगभग 11.6 लाख महिला निदेशक सार्वजनिक और निजी कंपनियों से जुड़ी हुई हैं।

रोज़गार सृजन के साथ-साथ रोज़गार क्षमता में सुधार करना सरकार की प्राथमिकता है। सरकार एफएलएफपीआर के साथ-साथ समग्र एलएफपीआर को बढ़ावा देने के लिए स्टैंड अप इंडिया, मुद्रा योजना, स्टार्ट-अप इंडिया, प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस), सूक्ष्म तथा लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड योजना (सीजीएमएसई), पंडित दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (डीडीयू-जीकेवाई), ग्रामीण स्वरोजगार और प्रशिक्षण संस्थान (आरएसईटीआई) जैसी विभिन्न योजनाएं लागू करती है, जो रोजगार/स्वरोजगार और ऋण सुविधाएं प्रदान करती हैं। प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) एक प्रमुख ऋण-लिंक्ड सब्सिडी कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य गैर-कृषि क्षेत्र में सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना करके स्वरोजगार के अवसर पैदा करना है। इन योजनाओं के तहत अधिकांश लाभार्थी महिलाएं हैं।

स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बदलाव के वाहक के रूप में काम करते हैं। आज 90 लाख एसएचजी से जुड़ी लगभग 10 करोड़ महिलाएं ग्रामीण परिदृश्य को आर्थिक रूप से बदल रही हैं। सरकार नमो ड्रोन दीदी और लखपति दीदी जैसी योजनाओं को लागू करती है, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए तकनीकी क्षमताओं और वित्तीय स्थिरता को बढ़ाना है।

सरकार महिला श्रमिकों की रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) के तहत महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों, राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों और क्षेत्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों के नेटवर्क के माध्यम से उन्हें प्रशिक्षण प्रदान कर रही है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना भी महिलाओं को कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करती है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए मिशन शक्ति के तहत ‘पालना’कार्यक्रम चलाती हैं। इसके तहत बच्चों को डे केयर सुविधाएं और सुरक्षा प्रदान करना मुख्य फोकस क्षेत्र है। ’पालना’ कार्यक्रम लागू करके मंत्रालय ने आंगनवाड़ी सह क्रेच (एडब्ल्यूसीसी) के माध्यम से बच्चों की देखभाल की मुफ्त सेवाएं प्रदान की हैं। आज तक, विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त प्रस्तावों के अनुसार, 34 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 11,395 एडब्ल्यूसीसी को मंजूरी दी गई है। मंत्रालय कामकाजी महिला छात्रावासों (डब्ल्यूडब्ल्यूएच) के संचालन और रखरखाव के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है। सरकार ‘पूंजी निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता योजना (एसएएससीआई)’ के तहत डब्ल्यूडब्ल्यूएच के निर्माण के लिए राज्यों को पूंजी अनुदान भी प्रदान करती है।

महिला श्रमिकों को अनुकूल कार्य वातावरण के लिए श्रम कानूनों में कई प्रावधान भी शामिल किए गए हैं, जैसे कि मातृत्व अवकाश, बाल देखभाल अवकाश, समान वेतन आदि।

इसके अलावा, श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने जनवरी, 2024 में “महिला कार्यबल भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए नियोक्ताओं के लिए परामर्श”जारी किया। इस परामर्श में अन्य बातों के साथ-साथ पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए रोजगार और देखभाल की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है, जिसमें पितृत्व अवकाश, माता-पिता की छुट्टी, पारिवारिक आपातकालीन अवकाश और लचीली कार्य व्यवस्था जैसे परिवार के अनुकूल उपाय शामिल हैं।

यह जानकारी महिला और बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती सावित्री ठाकुर ने आज लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में दी।

*****//एमजी/केसी/एके//(रिलीज़ आईडी: 2116196)