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Wednesday, October 16, 2019

ग्रामीण महिलाएं अनेक समुदायों की रीढ़ होती हैं

10 अक्तूबर 2019//यूएनआईसी/प्रेस विज्ञप्ति/213-2019//Posted on 15th October 2019  By UN India Hind
 जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव उनकी मुश्किलें बढ़ा देते हैं  
ग्रामीण महिलाएं अनेक समुदायों की रीढ़ होती हैं। किंतु वे हमेशा ऐसी बाधाओं का सामना करती है जो उन्हें अपनी क्षमता का पूरा उपयोग नहीं करने देती। जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव उनकी मुश्किल है बढ़ा रहे हैं।
दुनिया भर में लगभग एक-तिहाई महिलाएं खेती में काम करती हैं। महिलाएं जमीन से फसल उगाती हैं, आहार, पानी और आवश्यक ईंधन जुटाती हैं और पूरे परिवार को सहारा देती हैं फिर भी उन्हें जमीन, वित्तीय सुविधाओं, उपकरणों, बाजारों और निर्णय लेने की शक्ति में बराबर भागीदारी नहीं मिलती।
जलवायु परिवर्तन इस असमानता को बढ़ा रहा है जिससे ग्रामीण महिलाएं और लड़कियां और पीछे छूटती जा रही हैं। 2006 से 2016 के बीच जलवायु से जुड़ी आपदाओं से कुल क्षति और नुकसान की एक-चौथाई मार विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र पर पड़ी है और ऐसी आपदाओं से महिलाओं ने बेहिसाब कष्ट भोगा है।
इसके साथ ही यह भी सच है ग्रामीण महिलाओं के पास ज्ञान और कौशल का ऐसा भंडार है जो समुदायों और समाजों को प्रकृति पर आधारित, कम कार्बन उत्सर्जक समाधानों के जरिए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुरूप ढलने में मदद कर सकते हैं। किसान और उत्पादक के रूप में, महिलाएं, जलवायु में परिवर्तन और सूखे, गर्मी की मार तथा अत्यधिक वर्षा जैसे झटकों का सामना करने के लिए पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह के तरीके अपनाने में केंद्रीय भूमिका निभाती हैं।
ग्रामीण महिलाओं की बात सुनने और उनकी आवाजों को अधिक शक्ति देने के प्रयास जलवायु परिवर्तन के बारे में ज्ञान का प्रसार करने और सरकारों, कारोबारी तथा समुदाय के नेताओं से कार्रवाई का आग्रह करने में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। खेती की नई तकनीक को सबसे पहले अपनाने वालों संकट में सबसे पहले कार्रवाई करने वालों और पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा उद्यमियों के रूप में ग्रामीण महिलाएं ऐसी शक्तिशाली संसाधन है जो वैश्विक प्रगति को संचालित कर सकती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आइए दुनिया भर में ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों को सहारा देकर ऐसे भविष्य की दिशा में ठोस कदम उठाएं।

Friday, July 12, 2019

विश्व की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है

11 जुलाई 2019
 जनसंख्या में वृद्धों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही 
टिकाऊ विकास के लिए 2030 की कार्यसूची स्वस्थ ग्रह पर सभी के लिए बेहतर भविष्य हेतु विश्व का ब्ल्यूप्रिंट है। विश्व जनसंख्या दिवस पर हम इस बात को मान्यता देते हैं कि यह अभियान जनसंख्या वृद्धि, वृद्ध होती जनसंख्या, प्रवास और शहरीकरण सहित जनसांख्यिकीय रुझानों से बहुत हद तक जुड़ा हुआ है।
विश्व की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है लेकिन यह वृद्धि बहुत असमान है। विश्व के सबसे कम विकसित देशों के लिए टिकाऊ विकास की दिशा में सबसे बड़ी चुनौती तेजी से बढ़ती जनसंख्या और जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता है। दूसरे देशों में अन्य प्रकार की समस्याए हैं। वहां जनसंख्या में वृद्धों की संख्या बढ़ रही है। इसके अलावा उन देशों को वृद्ध होते लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करने और पर्याप्त सामाजिक संरक्षण प्रदान करने की चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है। जैसे कि विश्व में शहरीकरण बढ़ रहा है, 2050 तक विश्व की 68% जनसंख्या के शहरों में बसने का अनुमान है। ऐसी स्थिति में टिकाऊ विकास और जलवायु परिवर्तन बहुत हद तक शहरी विकास के सफल प्रबंधन पर निर्भर करेगा।
जनसंख्या के रुझानों को संभालने के साथ-साथ हमें जनसंख्या, विकास और व्यक्तिगत कल्याण के बीच के संबंधों को भी स्वीकार करना होगा। पच्चीस वर्ष पूर्व जनसंख्या और विकास पर काहिरा अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विश्व नेताओं ने सबसे पहले जनसंख्या, विकास और प्रजनन अधिकारों सहित मानवाधिकारों के बीच के संबंधों को रेखांकित किया। उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि स्त्री-पुरुष समानता न सिर्फ सही दिशा में उठाया जाने वाला कदम है बल्कि टिकाऊ विकास और सभी के कल्याण के लिए भी सबसे भरोसेमंद मार्ग है। इस वर्ष का जनसंख्या दिवस विश्व स्तर पर आह्वान करता है कि काहिरा आईसीपीडी सम्मेलन के अधूरे काम को पूरा किया जाए।
मातृत्व मृत्यु दर और अनापेक्षित गर्भधारण को कम करने के बावजूद कई चुनौतियां बनी हुई हैं। दुनिया भर में हम आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं सहित महिला अधिकारों पर जोर दे रहे हैं। गर्भावस्था से संबंधित समस्याएं अब भी 15 से 19 वर्ष की लड़कियों की मृत्यु का प्रमुख कारण हैं। लिंग आधारित हिंसा जिसका कारण स्त्री-पुरुष असमानता है, भयावह स्थिति तक पहुंच चुकी है।
नवंबर में काहिरा सम्मेलन की 25वीं वर्षगांठ पर नैरोबी में एक शिखर सम्मेलन होगा। मैं सदस्य देशों से कहना चाहूंगा कि वे अधिक से अधिक संख्या में उसमें भाग लें। मैं उन्हें इस बात के लिए भी प्रोत्साहित करना चाहूंगा कि वे आईसीपीडी के कार्रवाई कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए दृढ़ राजनीतिक और वित्तीय प्रतिबद्धताएं जताएं।
आईसीपीडी की सोच को आगे बढ़ाने से उन लोगों को भी अवसर मुहैय्या होंगे जो किसी न किसी मामले में पिछड़ गए हैं। इसके अतिरिक्त इससे सभी के लिए स्थायी, न्यायसंगत और समावेशी विकास का मार्ग भी प्रशस्त होगा।

Sunday, June 23, 2019

विधवा महिलाओं के उदास और कठिन जीवन के लिए उठायें आवश्यक कदम

23 जून 2019 अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस विशेष 
 जिन देशों में अच्छी पेंशन है वहां भी इनको निर्धनता का सामना  
अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस हमें उन आर्थिक कठिनाइयों और बढ़ती संवेदनशीलता पर विचार करने पर विवश करता है जिनका सामना ये शोक संतप्त महिलाएं कर रही हैं।
Image Courtesy: A Widow's Heart
सामाजिक और कानूनी संरक्षण के अभाव में इन विधवा महिलाओं की जीवन भर की कमाई और बचत अक्सर गरीबी से संघर्ष के लिए अपर्याप्त होती हैं। जिन देशों में अच्छी पेंशन प्रणाली है, वहां भी इन महिलाओं को वृद्धावस्था पुरुषों के मुकाबले निर्धनता का सामना अधिक करना पड़ता है। वृद्ध विधवाओं के लिए विशेष रूप से सामाजिक सेवाएं अधिक महत्वपूर्ण हैं जो अकेली रह जाती हैं या जिन्हें वृद्धावस्था में देखभाल सेवाओं की ज्यादा जरूरत पड़ती है।
अनेक देशों में महिलाओं को पुरुषों के समान पैतृक अधिकार नहीं हैं। इसका अर्थ यह है कि उन्हें अक्सर ज़मीन, संपत्ति और अपने खुद के बच्चों के जीवन से बेदखल कर दिया जाता है। जिन देशों के क़ानूनों में महिलाओं-पुरुषों के बीच भेदभाव नहीं किया जाता, वहां भी व्यवहार में महिलाएं पुरुषों की तरह अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पातीं।
इसके अतिरिक्त कुछ समाजों में विधवाओं को यौन शोषण एवं उत्पीड़न या जबरन विवाह, दुर्व्यवहार और हिंसा का शिकार बनाया जाता है। इन परिस्थितियों को बदला जाना चाहिए और उन नियमों में भी परिवर्तन किया जाना चाहिए जोकि ऐसी भेदभावकारी रीतियों और हिंसा का समर्थन करते हैं।
संघर्ष और प्राकृतिक आपदाओं में विधवाओं की स्थिति और गंभीर हो जाती है। ऐसी स्थितियों में विधवाओं की संख्या बढ़ती है, क्षति एवं विस्थापन के कारण वे अधिक संवेदनशील स्थिति में आती हैं और सामाजिक एवं कानूनी संरक्षण अक्सर कमज़ोर पड़ जाते हैं।
आइए, इस अंतरराष्ट्रीय दिवस पर सभी विधवाओं को सहयोग देने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराएं- भले ही उनकी उम्र कोई भी हो, वे किसी भी स्थान पर रहती हों या किसी भी कानूनी प्रणाली के दायरे में आती हों। आइए यह सुनिश्चित करें कि वे किसी से न पिछड़ें।