बालिकाओं और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए 1,000 करोड़ रुपये की निर्भया निधि
वित्त मंत्री श्री पी चिदंबरम ने आज लोकसभा में वर्ष 2013-14 का आम बजट पेश करते हुए कहा कि सरकार महिलाओं, युवाओं और गरीब व्यक्तियों के साथ तीन वायदे कर रही है। उन्होंने कहा कि महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। हम लड़कियों और महिलाओं को सशक्त और सुरक्षित बनाने के लिए हरसंभव कार्य कर रहे हैं । इसके लिए 1000 करोड़ रुपये के सरकारी अंशदान से निर्भया निधि बनाए जाने का प्रस्ताव है । वित्त मंत्री ने कहा कि भारत में युवाओं की बहुत बड़ी तादाद है । युवाओं को स्वेच्छा से कौशल विकास कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा । राष्ट्रीय कौशल विकास निगम विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षण देने के लिए पाठ्यक्रम और मानक तैयार करेगा । इस योजना के लिए 1000 करेाड़ रुपये का प्रावधान किया जा रहा है ।
श्री चिदम्बरम ने कहा कि भारत के गरीब व्यक्तियों के लिए आपका पैसा आपके हाथ के उद्देश्य से प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना शुरू की गई है । सरकार का मानना है कि असली धन वही है जो जनता के काम आए । सरकार यह सुनिश्चत करेगी कि प्रत्येक लाभार्थियों के लिए बैंक खाता खोला जाए और उसे आधार से जोड़ा जाए । प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना यूपीए सरकार के इसी कार्यकाल में पूरे देश में लागू की जाएगी । ***
मीणा/राजगोपाल/प्रदीप/ सुधीर/संजीव/इन्द्रपाल/बिष्ट/ शदीद/सुनील/शौकत/मनोज- 770
महिला जगत पर विशेष ब्लॉग--सम्पर्क:Email: medialink32@gmail.com WhatsApp: +919915322407
Thursday, February 28, 2013
Wednesday, February 27, 2013
...अथवा लड़की का उपयोग राजनैतिक विरोधियों द्वारा
26-फरवरी-2013 19:19 IST
संसदीय कार्य मंत्री श्री कमलनाथ द्वारा राज्य सभा में दिया गया वक्तय
हाल ही में, माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय, जिसे 'सूर्यानेली' प्रकरण का नाम दिया जा रहा है, के पश्चात एक विवाद खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। मीडिया के एक वर्ग तथा कुछ राजनैतिक दलों ने इस विवाद में राज्य सभा के उप-सभापति प्रो. पी. जे. कुरियन का नाम घसीटने की कोशिश की है। इस संबंध में, मेरा वक्तव्य निम्न प्रकार है:-
यह बात जोरदार ढंग से कह गई है कि इस प्रकरण ('सूर्यानेली' प्रकरण के नाम से ज्ञात), जिसकी अपील पर पुन: सुनवाई कराए जाने के लिए इसे माननीय उच्चतम न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय को वापिस लौटा दिया है, में प्रो. पी. जे. कुरियन कभी एक अभियुक्त नहीं रहे।
सूर्यानेली प्रकरण 17/01/1996 में दायर किए गए एफआईआर सं. 71/96 के आधार पर शुरू हुआ जिसमें एक लड़की ने कतिपय लोगों द्वारा उस पर किए गए बलात्कार की शिकायत की थी। बाद में लड़की ने खुलासा किया कि 42 लोग अभियुक्त के रूप में सूचीबद्ध हैं। उस समय प्रो. पी. जे. कुरियन का कोई उल्लेख नहीं था।
लगभग दो महीने बाद, 1996 के आम चुनाव की पूर्व संध्या पर उस लड़की ने यह शिकायत तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री ए. के. एंटोनी के पास भेजी जिसमें उसने यह आरोप लगाया कि प्रो. पी. के. कुरियन भी इस प्रकरण में संलिप्त हैं तथा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के मुख पत्र 'देशाभिमानी' ने उसे तुरंत प्रकाशित कर दिया।
प्रो. कुरियन ने तुरंत इस मामले में पुलिस महानिदेशक से जांच का अनुरोध किया। उन्होंने, साथ ही, उस लड़की और 'देशाभिमानी' कि तत्कालीन मुख्य संपादक श्री ई. के नयनार के विरुद्ध मानहानि का नोटिस दिया।
आरोप की जांच, एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी, श्री राजीवन द्वारा की गई जिन्होंने, 30 से भी अधिक साक्षियों, दूरभाष अभिलेखों, राज्य कार चालक के बयान, राज्य कार के लॉग बुक, दूरी कथित स्थान तक पहुंचने के लिए लगने वाले समय, की जांच करने के बाद इस ठोस नतीजे पर पहुंचे कि ''अपराध के कथित स्थान तक पहुंचना प्रो. कुरियन के लिए व्यावहारिक दृष्टि से असंभव था'' और इसलिए प्रो. कुरियन इस अपराध में बिल्कुल ही संलिप्त नहीं हैं। जांच से यह भी निष्कर्ष सामने आया कि प्रो. कुरियन के विरुद्ध आरोप ''या तो वास्तव में एक गलती है अथवा लड़की का उपयोग उनके राजनैतिक विरोधियों द्वारा एक हथकंडे के रूप में किया जा रहा है।''
उसी चुनाव के दौरान लड़की के पिता ने सीबीआई की जांच कराने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। तथापि, लोक सभा चुनावों के बाद न तो उन्होंने मामले को आगे बढ़ाया और न ही वे न्यायालय में उपस्थित हुए और इसीलिए, इस मामले को गैर अभियोजन के कारण खारिज कर दिया गया। इस बात से स्वाभाविक निष्कर्ष यह निकलता है कि वे जांच रिपोर्ट से संतुष्ट थे अथवा यह याचिका सिर्फ चुनावों के दौरान इस्तेमाल किए जाने के मकसद से दायर की गई थी।
वाम मोर्चा के मुख्यमंत्री श्री ई. के. नयनार, जिन्होंने प्रो. कुरियन के विरुद्ध आरोप लगाए और जो अब प्रो. कुरियन द्वारा दायर किए गए अवमानना के मुकदमें में आरोपित हैं, ने पुलिस उप-महानिरीक्षक श्री सिबी मैथ्यू के नेतृत्व में जांच दल का गठन किया। विस्तृत जांच और सभी साक्षियों से पुन: पूछताछ करने पर यह दल इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि प्रो. कुरियन संलिप्त नहीं हैं।
श्री नयनार ने एक अन्य आईपीएस अधिकारी श्री सोम सुंदर मेनन द्वारा तीसरी जांच का आदेश दिया, जिसने पूर्ण जांच की और यहां तक कि प्रो. कुरियन से अलग हो चुके कर्मचारी से भी पूछताछ के उपरांत उसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रो. कुरियन संलिप्त नहीं हैं। इस बीच निचली अदालत ने प्रो. कुरियन द्वारा दायर किये गये मानहानि के मुकदमे को उनके पक्ष में चलाने के लिए स्वीकार किया और श्री नयनार एवं उस लड़की ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
1999 के आम चुनाव की पूर्व संध्या पर इस लड़की ने पुन: इसी मुद्दे पर न्यायालय में एक निजी शिकायत दायर की थी, जिसको प्रो. कुरियन ने चुनौती दी और मामला उच्चतम न्यायालय तक गया। उच्चतम न्यायालय ने खारिज करने के लिए इसे उपयुक्त मामला समझा और प्रो. कुरियन को निचली अदालत से उन्मोचन के लिए याचिका दायर करने का निदेश दिया। तद्नुसार, उन्मोचन याचिका दायर की गई जिसे निचली अदालत में स्वीकार नहीं किया गया, परंतु उच्च न्यायालय ने अप्रैल, 2007 में 71 पृष्ठों के अपने निर्णय में शिकायतकर्ता द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर विचार करने के बाद उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया। यहां इस बात का उल्लेख करना होगा कि स्वयं वाम मोर्चा सरकार द्वारा नियुक्त किए गए जांच अधिकारी, श्री के. के. जोशुआ, एसपी ने न्यायालय में यह लिखित वक्तव्य प्रस्तुत किया कि प्रो. कुरियन इसमें शामिल नहीं हैं। उच्च न्यायालन ने समुक्ति की थी कि-
''मुझे पता चल रहा है कि इस मामले में पेश की गई परिस्थितियों और सबूतों से यह साबित होता है कि याचिकाकर्ता पर थोपा गया मामला झूठा है। यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि याचिकाकर्ता को पिछले एक दशक से भी अधिक समय से कुत्सित स्वरूप के इस झूठे मामले के कटु अनुभव से गुजरना पड़ा है।''
इस निर्णय की जांच करने पर यह पता चलेगा कि उच्च न्यायालय ने निजी शिकायत का निर्णय इसके गुणागुण आधार पर किया जो सुर्यानेली मामले, जिसमें आरोपी व्यक्तियों को बरी कर दिया गया था, से स्वतंत्र रहकर दिया गया था।
वाम मोर्चा सरकार ने अपील दायर की, परंतु उच्चतम न्यायालय ने उसे नवम्बर, 2007 में खारिज कर दिया और उन्मोचन की पुष्टि की। उच्चतम न्यायालय के निर्णय को अब तक किसी ने चुनौती नहीं दी है। वाम मोर्चा सरकार, जो उस समय सत्ता में थी, ने पुनर्विलोकन याचिका भी दायर नहीं की।
इस प्रकार की धारणा बनाने की कोशिश की गई है कि कुछ नए तथ्य प्रकट हुए हैं। ये सभी नए तथ्य, विशेषकर, दोषसिद्ध व्यक्ति द्वारा 17 वर्ष बाद दिए गए वक्तव्य से, जिसे जांच दल के समक्ष अथवा न्यायालय में देने का मौका उसके पास था, उससे प्रो. कुरियन की कथित जगह पहुंचने की असंभाव्यता के सिद्ध तथ्य को चुनौती नहीं मिलती, जो टेलीफोन रिकार्ड, राज्य की कार के ड्राइवर सहित मुख्य गवाहों, राज्य की कार की लॉग बुक और इसमें लगने वाले समय और दूरी के आधार पर सिद्ध हुआ है- उक्त निष्कर्ष उपर्युक्त तीन जांच दलों द्वारा निकाला गया था।
यह मामला विपक्ष द्वारा केरल विधानसभा में उठाया गया था। अभियोजन महानिदेशक और उच्चतम न्यायालय में शिकायतकर्ता लड़की का मुकदमा लड़ने वाले उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और केरल सरकार के विधि सचिव की ओर से केरल सरकार को प्राप्त कानूनी राय में यह कहा गया है कि कोई मामला नहीं बनता है। (PIB)
***
वि.कासौटिया/अरुण/मनोज-723
संसदीय कार्य मंत्री श्री कमलनाथ द्वारा राज्य सभा में दिया गया वक्तय
हाल ही में, माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय, जिसे 'सूर्यानेली' प्रकरण का नाम दिया जा रहा है, के पश्चात एक विवाद खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। मीडिया के एक वर्ग तथा कुछ राजनैतिक दलों ने इस विवाद में राज्य सभा के उप-सभापति प्रो. पी. जे. कुरियन का नाम घसीटने की कोशिश की है। इस संबंध में, मेरा वक्तव्य निम्न प्रकार है:-
यह बात जोरदार ढंग से कह गई है कि इस प्रकरण ('सूर्यानेली' प्रकरण के नाम से ज्ञात), जिसकी अपील पर पुन: सुनवाई कराए जाने के लिए इसे माननीय उच्चतम न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय को वापिस लौटा दिया है, में प्रो. पी. जे. कुरियन कभी एक अभियुक्त नहीं रहे।
सूर्यानेली प्रकरण 17/01/1996 में दायर किए गए एफआईआर सं. 71/96 के आधार पर शुरू हुआ जिसमें एक लड़की ने कतिपय लोगों द्वारा उस पर किए गए बलात्कार की शिकायत की थी। बाद में लड़की ने खुलासा किया कि 42 लोग अभियुक्त के रूप में सूचीबद्ध हैं। उस समय प्रो. पी. जे. कुरियन का कोई उल्लेख नहीं था।
लगभग दो महीने बाद, 1996 के आम चुनाव की पूर्व संध्या पर उस लड़की ने यह शिकायत तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री ए. के. एंटोनी के पास भेजी जिसमें उसने यह आरोप लगाया कि प्रो. पी. के. कुरियन भी इस प्रकरण में संलिप्त हैं तथा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के मुख पत्र 'देशाभिमानी' ने उसे तुरंत प्रकाशित कर दिया।
प्रो. कुरियन ने तुरंत इस मामले में पुलिस महानिदेशक से जांच का अनुरोध किया। उन्होंने, साथ ही, उस लड़की और 'देशाभिमानी' कि तत्कालीन मुख्य संपादक श्री ई. के नयनार के विरुद्ध मानहानि का नोटिस दिया।
आरोप की जांच, एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी, श्री राजीवन द्वारा की गई जिन्होंने, 30 से भी अधिक साक्षियों, दूरभाष अभिलेखों, राज्य कार चालक के बयान, राज्य कार के लॉग बुक, दूरी कथित स्थान तक पहुंचने के लिए लगने वाले समय, की जांच करने के बाद इस ठोस नतीजे पर पहुंचे कि ''अपराध के कथित स्थान तक पहुंचना प्रो. कुरियन के लिए व्यावहारिक दृष्टि से असंभव था'' और इसलिए प्रो. कुरियन इस अपराध में बिल्कुल ही संलिप्त नहीं हैं। जांच से यह भी निष्कर्ष सामने आया कि प्रो. कुरियन के विरुद्ध आरोप ''या तो वास्तव में एक गलती है अथवा लड़की का उपयोग उनके राजनैतिक विरोधियों द्वारा एक हथकंडे के रूप में किया जा रहा है।''
उसी चुनाव के दौरान लड़की के पिता ने सीबीआई की जांच कराने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। तथापि, लोक सभा चुनावों के बाद न तो उन्होंने मामले को आगे बढ़ाया और न ही वे न्यायालय में उपस्थित हुए और इसीलिए, इस मामले को गैर अभियोजन के कारण खारिज कर दिया गया। इस बात से स्वाभाविक निष्कर्ष यह निकलता है कि वे जांच रिपोर्ट से संतुष्ट थे अथवा यह याचिका सिर्फ चुनावों के दौरान इस्तेमाल किए जाने के मकसद से दायर की गई थी।
वाम मोर्चा के मुख्यमंत्री श्री ई. के. नयनार, जिन्होंने प्रो. कुरियन के विरुद्ध आरोप लगाए और जो अब प्रो. कुरियन द्वारा दायर किए गए अवमानना के मुकदमें में आरोपित हैं, ने पुलिस उप-महानिरीक्षक श्री सिबी मैथ्यू के नेतृत्व में जांच दल का गठन किया। विस्तृत जांच और सभी साक्षियों से पुन: पूछताछ करने पर यह दल इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि प्रो. कुरियन संलिप्त नहीं हैं।
श्री नयनार ने एक अन्य आईपीएस अधिकारी श्री सोम सुंदर मेनन द्वारा तीसरी जांच का आदेश दिया, जिसने पूर्ण जांच की और यहां तक कि प्रो. कुरियन से अलग हो चुके कर्मचारी से भी पूछताछ के उपरांत उसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रो. कुरियन संलिप्त नहीं हैं। इस बीच निचली अदालत ने प्रो. कुरियन द्वारा दायर किये गये मानहानि के मुकदमे को उनके पक्ष में चलाने के लिए स्वीकार किया और श्री नयनार एवं उस लड़की ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
1999 के आम चुनाव की पूर्व संध्या पर इस लड़की ने पुन: इसी मुद्दे पर न्यायालय में एक निजी शिकायत दायर की थी, जिसको प्रो. कुरियन ने चुनौती दी और मामला उच्चतम न्यायालय तक गया। उच्चतम न्यायालय ने खारिज करने के लिए इसे उपयुक्त मामला समझा और प्रो. कुरियन को निचली अदालत से उन्मोचन के लिए याचिका दायर करने का निदेश दिया। तद्नुसार, उन्मोचन याचिका दायर की गई जिसे निचली अदालत में स्वीकार नहीं किया गया, परंतु उच्च न्यायालय ने अप्रैल, 2007 में 71 पृष्ठों के अपने निर्णय में शिकायतकर्ता द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर विचार करने के बाद उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया। यहां इस बात का उल्लेख करना होगा कि स्वयं वाम मोर्चा सरकार द्वारा नियुक्त किए गए जांच अधिकारी, श्री के. के. जोशुआ, एसपी ने न्यायालय में यह लिखित वक्तव्य प्रस्तुत किया कि प्रो. कुरियन इसमें शामिल नहीं हैं। उच्च न्यायालन ने समुक्ति की थी कि-
''मुझे पता चल रहा है कि इस मामले में पेश की गई परिस्थितियों और सबूतों से यह साबित होता है कि याचिकाकर्ता पर थोपा गया मामला झूठा है। यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि याचिकाकर्ता को पिछले एक दशक से भी अधिक समय से कुत्सित स्वरूप के इस झूठे मामले के कटु अनुभव से गुजरना पड़ा है।''
इस निर्णय की जांच करने पर यह पता चलेगा कि उच्च न्यायालय ने निजी शिकायत का निर्णय इसके गुणागुण आधार पर किया जो सुर्यानेली मामले, जिसमें आरोपी व्यक्तियों को बरी कर दिया गया था, से स्वतंत्र रहकर दिया गया था।
वाम मोर्चा सरकार ने अपील दायर की, परंतु उच्चतम न्यायालय ने उसे नवम्बर, 2007 में खारिज कर दिया और उन्मोचन की पुष्टि की। उच्चतम न्यायालय के निर्णय को अब तक किसी ने चुनौती नहीं दी है। वाम मोर्चा सरकार, जो उस समय सत्ता में थी, ने पुनर्विलोकन याचिका भी दायर नहीं की।
इस प्रकार की धारणा बनाने की कोशिश की गई है कि कुछ नए तथ्य प्रकट हुए हैं। ये सभी नए तथ्य, विशेषकर, दोषसिद्ध व्यक्ति द्वारा 17 वर्ष बाद दिए गए वक्तव्य से, जिसे जांच दल के समक्ष अथवा न्यायालय में देने का मौका उसके पास था, उससे प्रो. कुरियन की कथित जगह पहुंचने की असंभाव्यता के सिद्ध तथ्य को चुनौती नहीं मिलती, जो टेलीफोन रिकार्ड, राज्य की कार के ड्राइवर सहित मुख्य गवाहों, राज्य की कार की लॉग बुक और इसमें लगने वाले समय और दूरी के आधार पर सिद्ध हुआ है- उक्त निष्कर्ष उपर्युक्त तीन जांच दलों द्वारा निकाला गया था।
यह मामला विपक्ष द्वारा केरल विधानसभा में उठाया गया था। अभियोजन महानिदेशक और उच्चतम न्यायालय में शिकायतकर्ता लड़की का मुकदमा लड़ने वाले उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और केरल सरकार के विधि सचिव की ओर से केरल सरकार को प्राप्त कानूनी राय में यह कहा गया है कि कोई मामला नहीं बनता है। (PIB)
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वि.कासौटिया/अरुण/मनोज-723
Sunday, February 24, 2013
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम
07-फरवरी-2013 16:24 IST
रोकथाम से जुड़ी स्वास्थ्य सेवा की एक नई पहल
स्वास्थ्य:विशेष लेख
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से हाल ही में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरूआत की गई है, जिसके माध्यम से अधिकतम 18 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के एक पैकेज का प्रावधान किया गया है। यह पहल राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का एक हिस्सा है, जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री पृथ्वीराज चव्हाण की उपस्थिति में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा महाराष्ट्र के ठाणे जिले के जनजातीय बहुल ब्लॉक पालघर में 06 फरवरी को शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम का विस्तार चरणबद्ध तरीके से देश के सभी जिलों तक किया जाएगा।
शीघ्र पहचान; शीघ्र निदान
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम को बाल स्वास्थ्य परीक्षण और शीघ्र निदान सेवा के रूप में भी जाना जाता है, जिसका लक्ष्य बच्चों की मुख्य बीमारियों का शीघ्र पता लगाना और उसका निदान करना है। इन बीमारियों में जन्मजात विकृतियों, बाल रोग, कमियों के लक्षणों और विकलांगताओं सहित विकास संबंधी देरी शामिल हैं। स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अधीन बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण एक जाना-माना कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का विस्तार करके इसमें जन्म से लेकर 18 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों को शामिल किया जा रहा है। इन सुविधाओं का लक्ष्य सरकारी और सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों में पहली कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक में पंजीकृत बच्चों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी झुग्गी बस्तियों के जन्म से लेकर छह वर्ष की उम्र के सभी बच्चों को शामिल करना है। शीघ्र परीक्षण और शीघ्र निदान के लिए 30 सामान्य बीमारियों/स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों की पहचान की गई है।जन्मजात विकृति
विश्वभर में प्रतिवर्ष लगभग 79 लाख ऐसे बच्चों का जन्म होता है, जो जन्म के समय गंभीर आनुवंशिक अथवा आंशिक तौर पर आनुवंशिक विकृतियों से पीडि़त होते हैं। ऐसे बच्चे जन्म लेने वाले कुल बच्चों का छह प्रतिशत हैं। भारत में प्रतिवर्ष 17 लाख ऐसे बच्चे जन्म लेते हैं, जो जन्मजात विकृतियों का शिकार होते हैं। यदि उनका विशेषतौर पर और समय पर निदान नहीं हो और इसके बावजूद भी वे बच जाते हैं, तो ये बीमारियां उनके लिए जीवन पर्यन्त मानसिक, शारीरिक, श्रवण संबंधी अथवा दृष्टि संबंधी विकलांगता का कारण हो सकती हैं।
पोषक तत्वों की कमियां
पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग 70 प्रतिशत बच्चों में लौह तत्व की कमी के कारण रक्ताल्पता पाई गई है। इस संदर्भ में पिछले दशक की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग आधे बच्चे (48 प्रतिशत) कुपोषण का शिकार पाए जाते हैं। स्कूल से पहले के वर्षों के दौरान बच्चे रक्ताल्पता, कुपोषण और विकासात्मक विकलांगताओं के प्रतिकूल प्रभावों का निरंतर सामना करते हैं, जो अंतत: स्कूल में उनके निष्पादन को भी प्रभावित करता है।
बीमारियां
विभिन्न सर्वेक्षणों के द्वारा इस बात का पता चला है कि भारत के स्कूली बच्चों में से 50 से 60 प्रतिशत बच्चे दांतों से संबंधित बीमारियों से पीडि़त होते हैं। स्कूली बच्चों में पांच वर्ष से लेकर नौ वर्षों के उम्र समूह में लगभग प्रति हजार एक दशमलव पांच बच्चे रूमाटिक हृदय रोग से पीडि़त होते हैं। ऐसे बच्चों में 4.75 प्रतिशत अस्थमा जैसी बीमारियां पाई जाती है।
विकासात्मक विलंब
वैश्विक तौर पर गरीबी, खराब स्वास्थ्य, कुपोषण और शुरूआती देखरेख की कमी के कारण पांच वर्ष तक के लगभग 20 करोड़ बच्चे अपनी विकासात्मक क्षमता को प्राप्त नहीं कर पाते है। बचपन में शुरूआती आरंभिक देखरेख की कमी होना और पूर्णत: गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या का इस्तेमाल पांच वर्ष से कम उम्र में अल्प विकास के संकेतकों के रूप में किया जा सकता है। ये दोनों संकेतक आपस में संबंधित है,जिनके परिणाम स्वरूप बच्चों का शैक्षिक निष्पादन और विकासात्मक क्षमता प्रभावित होती है।
समुदाय आधारित नवजात शिशु जांच
मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता(आशा) नवजात शिशु के जन्म के दौरान घरों और संस्थात्मक दौरे के दौरान शिशुओ की जांच घर पर और 6 हफ्ते की सीमा तक की जाती है। आशा को जन्मजात विकारों को दूर करने के लिए आसान उपकरणों से प्रशिक्षित किया जाता है। आशा को जन्मजात विकारों की पहचान करने के लिए एक टूल-किट दी जाती है जिससे वे बीमारियों की पहचान आसानी से कर सकती हैं।
आंगनवाड़ी केन्द्रों और विद्यालयों में जांच 6 सप्ताह से लेकर 6 वर्ष तक के आयु समूह के बच्चों की जांच आंगनवाड़ी केन्द्रों में निर्धारित सचल स्वास्थ्य दलों द्वारा की जाती है। 6 से 18 वर्ष के बच्चों की जांच सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में की जाती है। आंगनवाड़ी केन्द्रों में बच्चों की जांच वर्ष में कम से कम दो बार की जाती है और विद्यालय जाने वाले बच्चों की जांच शुरूआती स्तर पर वर्ष में एक बार की जाती है।गतिविधियों का केन्द्र
इस कार्यक्रम के लिए खंड गतिविधियों का केन्द्र होता है। कम से कम तीन निर्धारित सचल स्वास्थ्य दल प्रत्येक खंड में बच्चों की जांच करने के लिए सुनिश्चित किये गये हैं। खंडों की न्यायिक सीमा के अंदर आने वाले गांवों को तीन दलों में वितरित किया जाता है। दलों की संख्या आंगनवाड़ी केन्द्रों की संख्या, केन्द्र तक पहुंचने में आने वाली दिक्कतों और विद्यालयों में बच्चों की संख्या पर निर्भर करता है। सचल स्वास्थ्य दल में चार सदस्य – दो चिकित्सक (आयुष) एक पुरूष और एक महिला, एक नर्स और फार्मेसिस्ट सम्मलित होते हैं। खंड कार्यक्रम प्रबंधक विद्यालयों, आंगनवाड़ी केन्द्रों और स्वास्थ्य अधिकारी से परामर्श के बाद तीनों दलों के कार्यक्रमों को निर्धारित करता है। खंड स्वास्थ्य दलों द्वारा दौरे का पूरा ब्यौरा रखा जाता है।जिला स्तर पर प्रारंभिक मध्यवर्ती केन्द्र
जिला अस्पताल में प्रारंभिक मध्यवर्ती केन्द्र स्थापित किया जाता है। इस केन्द्र का उद्देश्य स्वास्थ्य जांच के दौरान ऐसे बच्चे जिनमें स्वास्थ्य संबंधी कमियां पाई गई हो को, संदर्भ सहायता प्रदान करना है। बाल रोग विशेषज्ञ, स्वास्थ्य अधिकारी, नर्स, पेरामेडिक, सेवा प्रदान करने के लिए दल में सम्मिलित किये जाते हैं। केन्द्र में श्रवण, तंत्रिका संबंधी परीक्षण और व्यवहार संबंधी जांच के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है।
प्रशिक्षण और प्रबंधन बाल स्वास्थ्य जांच केन्द्रों और प्रारंभिक हस्तक्षेप सेवाओं में सम्मिलित कर्मियों को ध्यानपूर्वक प्रशिक्षण पद्धति से प्रशिक्षित किया जाता है। तकनीकी सहायता संस्थाओं और सहभागी केन्द्रों के सहयोग से मानक प्रशिक्षण पद्धति का विकास किया जाता है। महाराष्ट्र में केईएम अस्पताल, मुम्बई और पुणे तथा अलीयावर जंग राष्ट्रीय श्रवण बाधता संस्थान, मुंबई प्रशिक्षण देने के लिए चुने गए है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस कार्यक्रम की प्रभावी योजना और प्रभावी क्रियान्वयन के लिए एक दिशा-निर्देश बनाए है। ये दिशा-निर्देश भारत में बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान और प्रबंधन की प्रक्रिया का विवरण देते है।कार्यक्रम का प्रभाव
प्रारंभिक मध्यवर्ती सेवा की यह नई शुरूआत लंबे समय में स्वास्थ्य सेवा ख़र्चों में कटौती कर आर्थिक रूप से लाभ प्रदान करेंगी। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि ''रोकथाम'' और समर्थित स्वास्थ्य देखभाल राष्ट्रीय मानव संसाधन को प्रभावित कर बीमारियों पर होने वाले खर्च और सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च को भी कम कर सकेंगी। पूर्ण रूप से क्रियान्वित होने पर राष्ट्रीय बाल-स्वास्थ्य कार्यक्रम से देशभर के 27 करोड़ बच्चों को लाभ प्राप्त हो सकेगा। (पसूका) {PIB}
*पीआईबी मुम्बई से साभार
वि.कासोटिया/सुधीर/जुयाल/सुनील/तारा/लक्ष्मी/सोनिका–38
रोकथाम से जुड़ी स्वास्थ्य सेवा की एक नई पहल
स्वास्थ्य:विशेष लेख
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से हाल ही में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरूआत की गई है, जिसके माध्यम से अधिकतम 18 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के एक पैकेज का प्रावधान किया गया है। यह पहल राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का एक हिस्सा है, जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री पृथ्वीराज चव्हाण की उपस्थिति में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा महाराष्ट्र के ठाणे जिले के जनजातीय बहुल ब्लॉक पालघर में 06 फरवरी को शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम का विस्तार चरणबद्ध तरीके से देश के सभी जिलों तक किया जाएगा।
शीघ्र पहचान; शीघ्र निदान
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम को बाल स्वास्थ्य परीक्षण और शीघ्र निदान सेवा के रूप में भी जाना जाता है, जिसका लक्ष्य बच्चों की मुख्य बीमारियों का शीघ्र पता लगाना और उसका निदान करना है। इन बीमारियों में जन्मजात विकृतियों, बाल रोग, कमियों के लक्षणों और विकलांगताओं सहित विकास संबंधी देरी शामिल हैं। स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अधीन बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण एक जाना-माना कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का विस्तार करके इसमें जन्म से लेकर 18 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों को शामिल किया जा रहा है। इन सुविधाओं का लक्ष्य सरकारी और सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों में पहली कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक में पंजीकृत बच्चों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी झुग्गी बस्तियों के जन्म से लेकर छह वर्ष की उम्र के सभी बच्चों को शामिल करना है। शीघ्र परीक्षण और शीघ्र निदान के लिए 30 सामान्य बीमारियों/स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों की पहचान की गई है।जन्मजात विकृति
विश्वभर में प्रतिवर्ष लगभग 79 लाख ऐसे बच्चों का जन्म होता है, जो जन्म के समय गंभीर आनुवंशिक अथवा आंशिक तौर पर आनुवंशिक विकृतियों से पीडि़त होते हैं। ऐसे बच्चे जन्म लेने वाले कुल बच्चों का छह प्रतिशत हैं। भारत में प्रतिवर्ष 17 लाख ऐसे बच्चे जन्म लेते हैं, जो जन्मजात विकृतियों का शिकार होते हैं। यदि उनका विशेषतौर पर और समय पर निदान नहीं हो और इसके बावजूद भी वे बच जाते हैं, तो ये बीमारियां उनके लिए जीवन पर्यन्त मानसिक, शारीरिक, श्रवण संबंधी अथवा दृष्टि संबंधी विकलांगता का कारण हो सकती हैं।
पोषक तत्वों की कमियां
पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग 70 प्रतिशत बच्चों में लौह तत्व की कमी के कारण रक्ताल्पता पाई गई है। इस संदर्भ में पिछले दशक की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग आधे बच्चे (48 प्रतिशत) कुपोषण का शिकार पाए जाते हैं। स्कूल से पहले के वर्षों के दौरान बच्चे रक्ताल्पता, कुपोषण और विकासात्मक विकलांगताओं के प्रतिकूल प्रभावों का निरंतर सामना करते हैं, जो अंतत: स्कूल में उनके निष्पादन को भी प्रभावित करता है।
बीमारियां
विभिन्न सर्वेक्षणों के द्वारा इस बात का पता चला है कि भारत के स्कूली बच्चों में से 50 से 60 प्रतिशत बच्चे दांतों से संबंधित बीमारियों से पीडि़त होते हैं। स्कूली बच्चों में पांच वर्ष से लेकर नौ वर्षों के उम्र समूह में लगभग प्रति हजार एक दशमलव पांच बच्चे रूमाटिक हृदय रोग से पीडि़त होते हैं। ऐसे बच्चों में 4.75 प्रतिशत अस्थमा जैसी बीमारियां पाई जाती है।
विकासात्मक विलंब
वैश्विक तौर पर गरीबी, खराब स्वास्थ्य, कुपोषण और शुरूआती देखरेख की कमी के कारण पांच वर्ष तक के लगभग 20 करोड़ बच्चे अपनी विकासात्मक क्षमता को प्राप्त नहीं कर पाते है। बचपन में शुरूआती आरंभिक देखरेख की कमी होना और पूर्णत: गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या का इस्तेमाल पांच वर्ष से कम उम्र में अल्प विकास के संकेतकों के रूप में किया जा सकता है। ये दोनों संकेतक आपस में संबंधित है,जिनके परिणाम स्वरूप बच्चों का शैक्षिक निष्पादन और विकासात्मक क्षमता प्रभावित होती है।
जन्मजात विकृतियां
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· न्यूरल ट्यूब विकृति
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· डाउंस सिंड्रोंम
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· क्लेफ्ट लीप और पैलेट/क्लेफ्ट पैलेट मात्र
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· टेलिप्स (क्लब फूट)
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· हिप में विकास संबंधी कमियां
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· जन्मजात मोतियाबिंद
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· जन्मजात श्रवणबाधा
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· जन्मजात हृदय रोग
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· रेटिनोपेथी पूर्व परिपक्वता
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पोषक तत्वों की कमियां
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· रक्ताल्पता विशेषकर गंभीर रक्ताल्पता
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· विटामिन ए की कमी
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· विटामिन डी की कमी
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· गंभीर कुपोषण
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· घेघा रोग
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बचपन की बीमारियां
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· चर्म रोग
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· ओटाइटिस मीडिया
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· रूमाटिक हृदय रोग
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· रिएक्टिव एयरवे रोग
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· दंत क्षय
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· आपेक्षी विकार
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विकासात्मक विलंब और नि:शक्तता
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· दृष्टि क्षति
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· श्रवण क्षति
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· तांत्रिका मोटर क्षति
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· संचालन यंत्र विलंब
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· संज्ञानात्मक विलंब
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· भाषा विलंब
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· व्यवहार विकार
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· अध्ययन विकार
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· ध्यान विलंब अतिसक्रियता विकार
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· जन्म जात हाईपोथाईरोडिज्म, सिकल सेल एनिमिया, बीटा थेलेसिमिया (वैकल्पिक)
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समुदाय आधारित नवजात शिशु जांच
मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता(आशा) नवजात शिशु के जन्म के दौरान घरों और संस्थात्मक दौरे के दौरान शिशुओ की जांच घर पर और 6 हफ्ते की सीमा तक की जाती है। आशा को जन्मजात विकारों को दूर करने के लिए आसान उपकरणों से प्रशिक्षित किया जाता है। आशा को जन्मजात विकारों की पहचान करने के लिए एक टूल-किट दी जाती है जिससे वे बीमारियों की पहचान आसानी से कर सकती हैं।
आंगनवाड़ी केन्द्रों और विद्यालयों में जांच 6 सप्ताह से लेकर 6 वर्ष तक के आयु समूह के बच्चों की जांच आंगनवाड़ी केन्द्रों में निर्धारित सचल स्वास्थ्य दलों द्वारा की जाती है। 6 से 18 वर्ष के बच्चों की जांच सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में की जाती है। आंगनवाड़ी केन्द्रों में बच्चों की जांच वर्ष में कम से कम दो बार की जाती है और विद्यालय जाने वाले बच्चों की जांच शुरूआती स्तर पर वर्ष में एक बार की जाती है।गतिविधियों का केन्द्र
इस कार्यक्रम के लिए खंड गतिविधियों का केन्द्र होता है। कम से कम तीन निर्धारित सचल स्वास्थ्य दल प्रत्येक खंड में बच्चों की जांच करने के लिए सुनिश्चित किये गये हैं। खंडों की न्यायिक सीमा के अंदर आने वाले गांवों को तीन दलों में वितरित किया जाता है। दलों की संख्या आंगनवाड़ी केन्द्रों की संख्या, केन्द्र तक पहुंचने में आने वाली दिक्कतों और विद्यालयों में बच्चों की संख्या पर निर्भर करता है। सचल स्वास्थ्य दल में चार सदस्य – दो चिकित्सक (आयुष) एक पुरूष और एक महिला, एक नर्स और फार्मेसिस्ट सम्मलित होते हैं। खंड कार्यक्रम प्रबंधक विद्यालयों, आंगनवाड़ी केन्द्रों और स्वास्थ्य अधिकारी से परामर्श के बाद तीनों दलों के कार्यक्रमों को निर्धारित करता है। खंड स्वास्थ्य दलों द्वारा दौरे का पूरा ब्यौरा रखा जाता है।जिला स्तर पर प्रारंभिक मध्यवर्ती केन्द्र
जिला अस्पताल में प्रारंभिक मध्यवर्ती केन्द्र स्थापित किया जाता है। इस केन्द्र का उद्देश्य स्वास्थ्य जांच के दौरान ऐसे बच्चे जिनमें स्वास्थ्य संबंधी कमियां पाई गई हो को, संदर्भ सहायता प्रदान करना है। बाल रोग विशेषज्ञ, स्वास्थ्य अधिकारी, नर्स, पेरामेडिक, सेवा प्रदान करने के लिए दल में सम्मिलित किये जाते हैं। केन्द्र में श्रवण, तंत्रिका संबंधी परीक्षण और व्यवहार संबंधी जांच के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है।
प्रशिक्षण और प्रबंधन बाल स्वास्थ्य जांच केन्द्रों और प्रारंभिक हस्तक्षेप सेवाओं में सम्मिलित कर्मियों को ध्यानपूर्वक प्रशिक्षण पद्धति से प्रशिक्षित किया जाता है। तकनीकी सहायता संस्थाओं और सहभागी केन्द्रों के सहयोग से मानक प्रशिक्षण पद्धति का विकास किया जाता है। महाराष्ट्र में केईएम अस्पताल, मुम्बई और पुणे तथा अलीयावर जंग राष्ट्रीय श्रवण बाधता संस्थान, मुंबई प्रशिक्षण देने के लिए चुने गए है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस कार्यक्रम की प्रभावी योजना और प्रभावी क्रियान्वयन के लिए एक दिशा-निर्देश बनाए है। ये दिशा-निर्देश भारत में बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान और प्रबंधन की प्रक्रिया का विवरण देते है।कार्यक्रम का प्रभाव
प्रारंभिक मध्यवर्ती सेवा की यह नई शुरूआत लंबे समय में स्वास्थ्य सेवा ख़र्चों में कटौती कर आर्थिक रूप से लाभ प्रदान करेंगी। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि ''रोकथाम'' और समर्थित स्वास्थ्य देखभाल राष्ट्रीय मानव संसाधन को प्रभावित कर बीमारियों पर होने वाले खर्च और सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च को भी कम कर सकेंगी। पूर्ण रूप से क्रियान्वित होने पर राष्ट्रीय बाल-स्वास्थ्य कार्यक्रम से देशभर के 27 करोड़ बच्चों को लाभ प्राप्त हो सकेगा। (पसूका) {PIB}
*पीआईबी मुम्बई से साभार
वि.कासोटिया/सुधीर/जुयाल/सुनील/तारा/लक्ष्मी/सोनिका–38
Saturday, February 23, 2013
आसमान क्या नहीं हमारा?
23.02.2013, 09:14
यह सवाल पूछती हैं वे महिला पायलट......
यह सवाल पूछती हैं वे महिला पायलट जिन्हें लेकर रूस में पहली महिला हेलीकाप्टर स्क्वैड्रन बनी है| संसार की सबसे नन्ही चिड़िया के नाम पर इसका नाम रखा गया है: ‘कोलिब्री’| इसमें पांच महिला पायलट हैं| इनके हुनर की बात करें तो इनका मुकाबला कर पाने वाले पुरुष भी कम ही होंगे|
तो इस पहली महिला स्क्वैड्रन के प्रति रूस में रवैया खास है| ‘रूसी हेलीकाप्टर प्रणालियाँ’ और ‘रूसी हेलीकाप्टर’ नाम की दो कंपनियों ने मिलकर यह पायलट ग्रुप बनाया है| इस टीम में कौन क्यों शामिल हुआ है इसके बारे में ‘रूसी हेलीकाप्टर प्रणालियाँ’ कंपनी के प्रेस सचिव आज़ाद कर्रीयेव बताते हैं|
“इस टीम में रूस के आपाद-नियंत्रण मंत्रालय की नामी पायलट येकातेरीना ओरेश्नीकोवा और हेलीकाप्टर स्पोर्ट की चैम्पियन येव्गेनिया कुर्पिका जैसी पायलट तथा हमारे शिक्षा केन्द्र की छात्राएं भी हैं| आम तौर पर यह माना जाता है कि उड्डयन का काम पुरुषों का ही है| बेशक पायलट बनने के लिए बहुत कठोर ट्रेनिंग की ज़रूरत होती है| लेकिन दूसरी ओर देखा जाए तो अब हेलीकाप्टर एक ऐसा परिवहन साधन बन रहे हैं जो बहुतों की पहुँच में हैं| कोलिब्री स्क्वैड्रन बनाने का मकसद हेलीकाप्टरों की और हेलीकाप्टर स्पोर्ट की लोकप्रियता बढ़ाना है|”
कर्रीयेव का कहना है कि जैसे ही यह खबर फैली कि महिला पायलट टीम बनाई जा रही है तो हेलीकाप्टर चलाना सीखने की इच्छुक युवतियों की ढेरों अर्जियां आईं| येकातेरीना ओरेश्नीकोवा ने, जो आपात-नियंत्रण मंत्रालय में एकमात्र महिला पायलट हैं, रेडियो रूस से बातचीत करते हुए कहा:
“ मेरे लिए तो हेलीकाप्टर मेरा पेशा, मेरा भाग्य, मेरा सब कुछ है| मैं यह मानती हूं कि किसी भी पेशे के बारे में यह नहीं कहा जाना चाहिए कि यह मर्दों का या यह औरतों का पेशा है| जिस काम में इंसान को दिलचस्पी हो, जिसे करके उसे संतोष मिले, वह महसूस करे कि उसकी यहाँ ज़रूरत है, बस वही उसका पेशा है| इसलिए मैं यह मानती हूं कि आपात-नियंत्रण सेवा में काम महिलाओं का भी काम है| खेदवश इन दिनों उड्डयन के क्षेत्र में महिलाएं बहुत कम हैं| हालांकि हमारे देश में एक ज़माना ऐसा भी था जब महिला पायलटों की कमी नहीं थी और उन्होंने उड्डयन के विकास में खासी महती भूमिका अदा की थी| सो यह अच्छी बात है कि हम उस परम्परा की ओर लौट रहे हैं|”
कोलिब्री पायलट टीम की आधिकारिक प्रस्तुति 8 मार्च को होगी, उस दिन जब रूस में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस बड़े चाव से मनाया जाता है| इस दिन पहली महिला टीम ‘कोलिब्री’ को बधाई देगा रूसी वायुसेना का बेजोड़ हेलीकाप्टर पायलट दल ‘बेर्कुत’ (बाज) जो लड़ाकू हेलीकाप्टरों पर हवाई कलाबाजियों के करतब दिखाने वाला एकमात्र दल है| Photo: RIA Novosti
यह सवाल पूछती हैं वे महिला पायलट......
यह सवाल पूछती हैं वे महिला पायलट जिन्हें लेकर रूस में पहली महिला हेलीकाप्टर स्क्वैड्रन बनी है| संसार की सबसे नन्ही चिड़िया के नाम पर इसका नाम रखा गया है: ‘कोलिब्री’| इसमें पांच महिला पायलट हैं| इनके हुनर की बात करें तो इनका मुकाबला कर पाने वाले पुरुष भी कम ही होंगे|
तो इस पहली महिला स्क्वैड्रन के प्रति रूस में रवैया खास है| ‘रूसी हेलीकाप्टर प्रणालियाँ’ और ‘रूसी हेलीकाप्टर’ नाम की दो कंपनियों ने मिलकर यह पायलट ग्रुप बनाया है| इस टीम में कौन क्यों शामिल हुआ है इसके बारे में ‘रूसी हेलीकाप्टर प्रणालियाँ’ कंपनी के प्रेस सचिव आज़ाद कर्रीयेव बताते हैं|
“इस टीम में रूस के आपाद-नियंत्रण मंत्रालय की नामी पायलट येकातेरीना ओरेश्नीकोवा और हेलीकाप्टर स्पोर्ट की चैम्पियन येव्गेनिया कुर्पिका जैसी पायलट तथा हमारे शिक्षा केन्द्र की छात्राएं भी हैं| आम तौर पर यह माना जाता है कि उड्डयन का काम पुरुषों का ही है| बेशक पायलट बनने के लिए बहुत कठोर ट्रेनिंग की ज़रूरत होती है| लेकिन दूसरी ओर देखा जाए तो अब हेलीकाप्टर एक ऐसा परिवहन साधन बन रहे हैं जो बहुतों की पहुँच में हैं| कोलिब्री स्क्वैड्रन बनाने का मकसद हेलीकाप्टरों की और हेलीकाप्टर स्पोर्ट की लोकप्रियता बढ़ाना है|”
कर्रीयेव का कहना है कि जैसे ही यह खबर फैली कि महिला पायलट टीम बनाई जा रही है तो हेलीकाप्टर चलाना सीखने की इच्छुक युवतियों की ढेरों अर्जियां आईं| येकातेरीना ओरेश्नीकोवा ने, जो आपात-नियंत्रण मंत्रालय में एकमात्र महिला पायलट हैं, रेडियो रूस से बातचीत करते हुए कहा:
“ मेरे लिए तो हेलीकाप्टर मेरा पेशा, मेरा भाग्य, मेरा सब कुछ है| मैं यह मानती हूं कि किसी भी पेशे के बारे में यह नहीं कहा जाना चाहिए कि यह मर्दों का या यह औरतों का पेशा है| जिस काम में इंसान को दिलचस्पी हो, जिसे करके उसे संतोष मिले, वह महसूस करे कि उसकी यहाँ ज़रूरत है, बस वही उसका पेशा है| इसलिए मैं यह मानती हूं कि आपात-नियंत्रण सेवा में काम महिलाओं का भी काम है| खेदवश इन दिनों उड्डयन के क्षेत्र में महिलाएं बहुत कम हैं| हालांकि हमारे देश में एक ज़माना ऐसा भी था जब महिला पायलटों की कमी नहीं थी और उन्होंने उड्डयन के विकास में खासी महती भूमिका अदा की थी| सो यह अच्छी बात है कि हम उस परम्परा की ओर लौट रहे हैं|”
कोलिब्री पायलट टीम की आधिकारिक प्रस्तुति 8 मार्च को होगी, उस दिन जब रूस में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस बड़े चाव से मनाया जाता है| इस दिन पहली महिला टीम ‘कोलिब्री’ को बधाई देगा रूसी वायुसेना का बेजोड़ हेलीकाप्टर पायलट दल ‘बेर्कुत’ (बाज) जो लड़ाकू हेलीकाप्टरों पर हवाई कलाबाजियों के करतब दिखाने वाला एकमात्र दल है| Photo: RIA Novosti
Tuesday, February 5, 2013
महिलाओं के प्रति यौन अपराध
04-फरवरी-2013 18:33 IST
सरकार ने अपराधों से निपटने के लिए बनाई कार्य योजना
कार्य योजना पुलिस और प्रशासन को सुदृढ़ करने की
सरकार ने महिलाओं के प्रति अपराधों से निपटने के लिए एक समयबद्ध कार्य योजना की पहल की है। त्वरित कार्रवाई, लैंगिक संवेदनशील कार्रवाई व्यवस्था तथा प्रवर्तन एजेंसियों की जवाबदेहही बढ़ाने के जरिए महिलाओं के प्रति अपराधों की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और प्रशासन को सुधारने तथा मज़बूत करने के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। 3 फरवरी, 2013 को राष्ट्रपति द्वारा लागू अध्यादेश, फौजदारी कानून में संशोधन से संबंधित है। यह उपाय अध्यादेश के अतिरिक्त हैं। विभिन्न मंत्रालयों के साथ विचार-विमर्श के बाद यह कदम उठाया गया है।
कैबिनेट सचिव ने निश्चित समय-सीमा के भीतर कार्य योजना बनाने के लिए संबंधित मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ हाल ही में कई बैठकें की हैं। सात मुख्य मंत्रालयों के सचिवों ने इन उपायों को लागू करने पर व्यक्तिगत रूप से नज़र रखने और कैबिनेट सचिव तथा प्रधानमंत्री कार्यालय को हर महीने इसकी रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हैं। इन उपायों में पुलिस व्यवस्था में बदलाव, मोटर वाहन अधिनियम की समीक्षा, महिलाओं के प्रति अपराधों से निपटने की कार्रवाई को ज्यादा प्रभावी तथा संवेदनशील बनाने के उपाय और अन्य प्रशासनिक कदम शामिल हैं।
इनमें निम्नलिखित कदम शामिल हैं:
1. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) अपराधियों का डाटाबेस बनाएगी। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने वाले अपराधियों की विस्तृत जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध होगी।
2. किसी भी थाने में उस समय कार्य-क्षेत्र पर ध्यान दिए बिना शीघ्र एफआईआर दर्ज करने की सुविधा दी जाएगी। एफआईआर उसके बाद आगे की जांच के लिए संबंधित थाने में हस्तांतरित की जा सकती है। इससे महिलाओं के प्रति मुद्दों सहित गंभीर अपराधों से निपटने में मदद मिलेगी।
3. यह ज़रूरी है कि जब लोग उत्पीड़ित महिला को सहायता देने के लिए आगे आएं तो उन्हें किसी दिक्कत का सामना न करना पड़े। इसके लिए ऐसे लोगों को बिना किसी हिचकिचाहट के अपराध के बारे में बताने तथा बिना किसी पूछ-ताछ के या गवाह बनने के लिए ज़ोर दिए बगैर पीडि़त/पुलिस की सहायता देने के लिए सुरक्षा दी जानी चाहिए।
4. 'केवल महिलाओं के लिए' बस सेवा शुरू की जानी चाहिए। देशभर में अधिक महिलाओं को बसें/टैक्सी चलाने के लिए प्रोत्साहित करने के वास्ते एक कार्यक्रम का प्रस्ताव किया गया है।
5. वर्तमान मोटर वाहन नियमों की समीक्षा की जाएगी।
6. ऐसी खबरें हैं कि कई वाहनों में फैक्ट्री फिटिड शीशे हैं जिसमें उनपर रंग स्वीकार्य सीमा से अधिक है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव तकनीकी विशेषज्ञों तथा पुलिस प्रतिनिधियों के साथ सलाह-मश्विरे के बाद यह तय करेंगे कि सार्वजनिक परिवहन बसों में शीशों को रंगने की अधिकतम स्वीकार्य मात्रा कितनी होनी चाहिए। पर्दों के इस्तेमाल पर भी गौर किया जाएगा जो कि यात्री की सुविधा और सुरक्षा कारणों के लिए आवश्यक दृश्यता पर निर्भर करेगा। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने उचित रूप से मानकों को संशोधित करने का प्रस्ताव किया है। बसों के निर्माताओं को संशोधित मानकों का पालन करना होगा।
7. समयबद्ध कार्यक्रम में दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन वाहन चला रहे ड्राइवरों/कंडक्टरों/हेल्पर (पूरे कर्मीदल) के लिए शत प्रतिशत सत्यापन की ज़रूरत है जिसमें ऐसे व्यक्तियों की बायो-मीट्रिक पहचान लेना शामिल है। इसे अनिवार्य बनाने के लिए प्रचलित नियमों की समीक्षा के लिए कार्रवाई की जाएगी। सार्वजनिक परिवहन वाहनों के कर्मीदल के सत्यापन के लिए निश्चित समय सीमा में प्रोटोकॉल बनाया जाएगा तथा इसे लागू करने के लिए राज्य सरकारों को उपयुक्त सूचना भी दी जाएगी। नियत समय सीमा के बाद किसी भी सार्वजनिक परिवहन वाहन में किसी ड्राइवर/कंडक्टर/हेल्पर या किसी अन्य कर्मीदल को बस चलाने की तब तक अनुमति नहीं होगी जब तक कि ऐसे व्यक्ति का सत्यापन न हुआ हो और उनके पास सत्यापन प्रमाण पत्र/पहचान अनुमति पत्र न हो।
8. बस मालिक ही इन उपायों का पालन करने के लिए जिम्मेदार होंगे। बार-बार अपराधों में लिप्त वाहन मालिकों पर सार्वजनिक परिवहन वाहन चलाने के लिए उनके वर्तमान परमिट/ कोई नया परमिट उपलब्ध करने पर रोक लगाना भी ज़रूरी है। साथ ही बार-बार अपराधों में लिप्त वाहनों को ज़ब्त करने की भी आवश्यकता है। बस के मालिक/ड्राइवर के विवरण तथा परमिट और लाइसेंस की जानकारी बस के अंदर और बाहर स्पष्ट रूप से दिखनी चाहिए जहां से वह आसानी से पढ़ी जा सके। बसों के चालन पर नज़र रखने के लिए नियंत्रण कक्ष के गठन के साथ सभी. सार्वजनिक परिवहन वाहनों में जीपीएस यंत्रों का इस्तेमाल भी ज़रूरी है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय इस संबंध में सभी राज्यों को उपयुक्त परामर्श जारी करेगा।
9. परमिट शर्तों का उल्लंघन करने पर लगाए जाने वाले जुर्माने की राशि में बढ़ोतरी और एक खास संख्या के बाद अपराधों को बढ़ने से रोकने की आवश्यकता है।
10. दिल्ली सरकार सार्वजनिक परिवहन के वाहनों के परमिटों में संशोधन करने की मसौदा अधिसूचना जारी करेगी। इसमें वाहनों की खिड़कियों के शीशों पर काली फिल्में लगाने पर मनाही, अपराध दोहराने पर दंड में वृद्धि और अन्य आवश्यक उपाय शामिल हैं। अंतिम अधिसूचना एक महीने में जारी की जाएगी।
11. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव सभी राज्यों को दिल्ली सरकार द्वारा परमिट की शर्तों में किए गए संशोधन/परिवर्तन के बारे में लिखेंगे और उनसे वैसे उपाय करने का अनुरोध करेंगे।
12.थाने का निरीक्षण करने के समय निरीक्षण अधिकारी के लिए यह जरूरी होना चाहिए कि वह खास तौर पर थाने में तैनात व्यक्तियों की लिंग संवेदनशीलता के बारे में निष्कर्षों और महिलाओं के प्रति अपराधों से जुड़ी शिकायतों को दर्ज करने के बारे में थाने/एसएचओ के रिकार्ड को दर्ज करें और यह देखें कि थाने में महिलाओं को अपनी शिकायत दर्ज कराने से हतोत्साहित तो नहीं किया जा रहा।
13.इस संबंध में महिलाओं के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया दिखाने अथवा निरीक्षण संबंधी दायित्वों की लापरवाही करने वाले पुलिसकर्मियों और अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
14. पुलिस बल में लिंग संवेदनशीलता बनाए रखने की निरंतर आवश्यकता है, खासकर बीट ड्यूटी अथवा पुलिस स्टेशन पर तैनात सिपाही के स्तर पर। यह बात पुलिसकर्मियों के दिमाग में बिठाने की आवश्यकता है कि महिलाओं पर असंवेदनशील टिप्पणियां पूरी तरह बंद होनी चाहिए। इसके लिए पुलिस द्वारा नियमित आधार पर प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित करने की आवश्यकता है।महिलाओं से पक्षपात करने वाले किसी भी कर्मचारी/अधिकारी के विरुद्ध कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। इस बारे में प्रत्येक स्तर पर की जाने वाली कार्रवाई को रिपोर्ट करना होगा। यदि यह पता चलता है कि गलती करने वाले किसी व्यक्ति पर कार्रवाई नहीं की गई है तो निरीक्षण अधिकारी को जवाबदेह ठहराया जाएगा। इस बारे में निर्देश जारी किए जाएंगे और उनका पालन सुनिश्चित कराया जाएगा।
15. सभी स्तरों पर रिपोर्टिंग अधिकारी के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह पुलिसकर्मी की वार्षिक निष्पादन मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करते समय उसकी महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता के बारे में टिप्पणी करें। इस बात पर जोर दिया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इस बारे में टिप्पणी उसके व्यवहार के विशिष्ट अवसरों पर आधारित हों और मात्र रस्मी हां या ना तक सीमित नहीं रखी जाए। पुलिसकर्मी की तैनाती अथवा पदोन्नति पर विचार करते समय महिलाओं के प्रति उसके रवैये को खासतौर पर ध्यान में रखा जाना चाहिए।
16. पुलिस बल में अधिक महिलाओं को भर्ती करने की अत्यधिक आवश्यकता है। महिलाओं को दिल्ली पुलिस में बड़ी संख्या में भर्ती करना होगा। गृह मंत्रालय इस वित्त वर्ष में इस बारे में आवश्यक स्वीकृति प्राप्त करने की कार्रवाई करेगा। इसी प्रकार राज्यों में भी पुलिस बल में अधिक महिलाओं को भर्ती करने की कार्रवाई करने की आवश्यकता होगी। इस बारे में राज्यों को प्रेरित करने के लिए गृह मंत्रालय चार सप्ताह के भीतर उचित प्रस्ताव/योजना तैयार करेगा और उसके लिए आवश्यक स्वीकृति प्राप्त करेगा।
17. दिल्ली में अतिरिक्त पीसीआर वैनों की आवश्यकता होगी। इस प्रकार की 370 वैन प्राप्त करने का प्रस्ताव दिल्ली पुलिस ने भेजा है। इस बारे में स्वीकृति इसी वित्त वर्ष के भीतर देने की योजना है।
18. खास इलाकों जैसे शिक्षा संस्थानों, सिनेमा घरों, मॉल और बाजारों के आस-पास के इलाकों में पीसीआर वैनों में महिला पुलिसकर्मियों को तैनात करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा बीपीओ में काम करने वाली महिला कर्मचारियों के रात के समय काम से लौटने के मार्गों पर भी पीसीआर वैनों में महिला कर्मियों को तैनात किया जाएगा। समय के साथ कुछ ऐसे थाने भी बनाए जाएंगे जहां सिर्फ महिलाएं काम करेंगी।
19. समुदाय के लोगों को पुलिस के काम में हाथ बंटाने को प्रोत्साहन की भी योजना है। इससे न केवल पुलिस की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकेगा बल्कि प्रत्येक मोहल्ले में जिम्मेदार लोगों को नागरिकों के रूप में अपनी ड्यूटी निभाने के लिए प्रेरित किया जा सकेगा।
20. दिल्ली में अनेक कैमरे लगाए जा रहे हैं और इस समय 34 बाजारों और चार सीमावर्ती चौकियों पर सीसीटीवी प्रणालियां काम कर रही हैं। तथापि सार्वजनिक स्थानों में सीसीटीवी प्रणालियों की संख्या और बढ़ाने की अत्यधिक आवश्यकता है। इसके लिए पुलिस व्यापारिक संघों, आरडब्ल्यूए, व्यावसायिक/कार्यालय भवनों के प्रबंधकों, मॉल, सिनेमाघरों, एनजीओ आदि सभी हितधारकों का सहयोग लेगी। उन्हें अपने परिसरों के बाहर स्वीकृत नमूनों के सीसीटीवी लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। सभी राज्यों में भी इसी प्रकार की कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
21. सार्वजनिक स्थानों में सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था करने पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। नगर निकायों को मौजूदा सुविधाओं की समीक्षा करनी चाहिए तथा जहां कही आवश्यक हो इन्हें मजबूत बनाना चाहिए।
22. महिला और बाल विकास विभाग यौन हिंसा पीड़ितों को मुआवजा देने की योजना तथा यौन हिंसा पीड़ितों को मनोवैज्ञानिक एवं अन्य सहायता उपलब्ध कराने के लिए चुनिंदा अस्पतालों में आपदा राहत केंद्र स्थापित करने की योजना भी लागू करेगा। प्रस्तावित योजना 2013-14 से प्रायौगिक आधार पर देश के 100 जिलों में लागू की जायेगी।
23. सरकार ने सभी आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए देशव्यापी तीन अंकों का नंबर (100 नंबर की तरह) शुरू करने का प्रस्ताव किया है। यह 911 या 990 की तरह जैसे आपातकालीन प्रबंध प्रणालियों जैसी व्यवस्था होगी। इस तरह की व्यवस्था अनेक विकसित देशों में उपलब्ध है। ऐसी सेवा सभी टेलीकॉम सेवा प्रदाताओें के ग्राहकों को उपलब्ध होगी क्योंकि फिलहाल विभिन्न स्थितियों से निपटने या लक्षित समूहों की सुविधा के लिए अलग-अलग टेलीकॉम नंबर इस्तेमाल किये जा रहे है। इसलिए ऐसी व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है जहां किसी भी तरह की मुसीबत में फंसा व्यक्ति एक ही नंबर पर सम्पर्क कर सकेगा। इस नंबर पर कॉल करने के बाद कॉलर को किसी अन्य विशेष अथवा आपातकालीन नंबर पर संपर्क करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए। इसके बजाय कॉल बिना किसी बाधा के मुसीबत संबंधी उचित लाइन पर कनेक्ट की जानी चाहिए। गृह मंत्रालय, दूरसंचार विभाग के साथ मिलकर फरवरी 2013 के आखिर तक इस संबंध में व्यवस्था करने और उसे संचालित के बारे में मूल परिकल्पना तैयार करेगा।
24. सामान्य आपातकालीन हेल्पलाइन के अतिरिक्त एक ऐसी हेल्पलाइन भी होगी जो मुसीबत में फंसी महिलाओं के लिए ही समर्पित होगी। यह हेल्पलाइन देशभर में तीन अंक के विशिष्ट नंबर की होनी चाहिए। इसके लिए पूरे देश में 181 नंबर पर यह सुविधा शुरू की जा सकती है।
25. फिल्मों, टेलीविजन धारावाहिकों और विज्ञापनों में महिलाओं का नकारात्मक, फूहड़ और अथवा अश्लील चित्रण लंबे समय से चिंता का कारण रहा है। यदि इस संबंध में सभी हितधारकों को निरंतर संलग्न रखा जाए तो यह सहायक होगा। सार्वजनिक हित के विज्ञापनों के मीडिया अभियान को भी बनाये रखने की आवश्यकता है।
26. स्कूलों में जीवन मूल्यों से संबंधित शिक्षा की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। हालांकि सिर्फ पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा शामिल करना पर्याप्त नहीं है। शिक्षकों को भी जीवन मूल्यों की शिक्षा में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। स्त्री–पुरूष समानता के बारे में स्थायी जागरूकता अभियान को सभी स्कूलों, कॉलेजों में चलाये जाने की आवश्यकता है तथा शिक्षा के हर स्तर पर स्त्री-पुरूष समानता से संबंधित विषय शामिल करने की जरूरत है।
27. शिक्षण संस्थाओं में लड़कियों को आत्म रक्षा/मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण देना भी उपयोगी होगा। (PIB)
वि. कासोटिया/प्रियंका/क्वात्रा/प्रदीप/सुमन/अर्जुन/सोनिका/राजीव-425
सरकार ने अपराधों से निपटने के लिए बनाई कार्य योजना
कार्य योजना पुलिस और प्रशासन को सुदृढ़ करने की
सरकार ने महिलाओं के प्रति अपराधों से निपटने के लिए एक समयबद्ध कार्य योजना की पहल की है। त्वरित कार्रवाई, लैंगिक संवेदनशील कार्रवाई व्यवस्था तथा प्रवर्तन एजेंसियों की जवाबदेहही बढ़ाने के जरिए महिलाओं के प्रति अपराधों की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और प्रशासन को सुधारने तथा मज़बूत करने के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। 3 फरवरी, 2013 को राष्ट्रपति द्वारा लागू अध्यादेश, फौजदारी कानून में संशोधन से संबंधित है। यह उपाय अध्यादेश के अतिरिक्त हैं। विभिन्न मंत्रालयों के साथ विचार-विमर्श के बाद यह कदम उठाया गया है।
कैबिनेट सचिव ने निश्चित समय-सीमा के भीतर कार्य योजना बनाने के लिए संबंधित मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ हाल ही में कई बैठकें की हैं। सात मुख्य मंत्रालयों के सचिवों ने इन उपायों को लागू करने पर व्यक्तिगत रूप से नज़र रखने और कैबिनेट सचिव तथा प्रधानमंत्री कार्यालय को हर महीने इसकी रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हैं। इन उपायों में पुलिस व्यवस्था में बदलाव, मोटर वाहन अधिनियम की समीक्षा, महिलाओं के प्रति अपराधों से निपटने की कार्रवाई को ज्यादा प्रभावी तथा संवेदनशील बनाने के उपाय और अन्य प्रशासनिक कदम शामिल हैं।
इनमें निम्नलिखित कदम शामिल हैं:
1. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) अपराधियों का डाटाबेस बनाएगी। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने वाले अपराधियों की विस्तृत जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध होगी।
2. किसी भी थाने में उस समय कार्य-क्षेत्र पर ध्यान दिए बिना शीघ्र एफआईआर दर्ज करने की सुविधा दी जाएगी। एफआईआर उसके बाद आगे की जांच के लिए संबंधित थाने में हस्तांतरित की जा सकती है। इससे महिलाओं के प्रति मुद्दों सहित गंभीर अपराधों से निपटने में मदद मिलेगी।
3. यह ज़रूरी है कि जब लोग उत्पीड़ित महिला को सहायता देने के लिए आगे आएं तो उन्हें किसी दिक्कत का सामना न करना पड़े। इसके लिए ऐसे लोगों को बिना किसी हिचकिचाहट के अपराध के बारे में बताने तथा बिना किसी पूछ-ताछ के या गवाह बनने के लिए ज़ोर दिए बगैर पीडि़त/पुलिस की सहायता देने के लिए सुरक्षा दी जानी चाहिए।
4. 'केवल महिलाओं के लिए' बस सेवा शुरू की जानी चाहिए। देशभर में अधिक महिलाओं को बसें/टैक्सी चलाने के लिए प्रोत्साहित करने के वास्ते एक कार्यक्रम का प्रस्ताव किया गया है।
5. वर्तमान मोटर वाहन नियमों की समीक्षा की जाएगी।
6. ऐसी खबरें हैं कि कई वाहनों में फैक्ट्री फिटिड शीशे हैं जिसमें उनपर रंग स्वीकार्य सीमा से अधिक है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव तकनीकी विशेषज्ञों तथा पुलिस प्रतिनिधियों के साथ सलाह-मश्विरे के बाद यह तय करेंगे कि सार्वजनिक परिवहन बसों में शीशों को रंगने की अधिकतम स्वीकार्य मात्रा कितनी होनी चाहिए। पर्दों के इस्तेमाल पर भी गौर किया जाएगा जो कि यात्री की सुविधा और सुरक्षा कारणों के लिए आवश्यक दृश्यता पर निर्भर करेगा। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने उचित रूप से मानकों को संशोधित करने का प्रस्ताव किया है। बसों के निर्माताओं को संशोधित मानकों का पालन करना होगा।
7. समयबद्ध कार्यक्रम में दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन वाहन चला रहे ड्राइवरों/कंडक्टरों/हेल्पर (पूरे कर्मीदल) के लिए शत प्रतिशत सत्यापन की ज़रूरत है जिसमें ऐसे व्यक्तियों की बायो-मीट्रिक पहचान लेना शामिल है। इसे अनिवार्य बनाने के लिए प्रचलित नियमों की समीक्षा के लिए कार्रवाई की जाएगी। सार्वजनिक परिवहन वाहनों के कर्मीदल के सत्यापन के लिए निश्चित समय सीमा में प्रोटोकॉल बनाया जाएगा तथा इसे लागू करने के लिए राज्य सरकारों को उपयुक्त सूचना भी दी जाएगी। नियत समय सीमा के बाद किसी भी सार्वजनिक परिवहन वाहन में किसी ड्राइवर/कंडक्टर/हेल्पर या किसी अन्य कर्मीदल को बस चलाने की तब तक अनुमति नहीं होगी जब तक कि ऐसे व्यक्ति का सत्यापन न हुआ हो और उनके पास सत्यापन प्रमाण पत्र/पहचान अनुमति पत्र न हो।
8. बस मालिक ही इन उपायों का पालन करने के लिए जिम्मेदार होंगे। बार-बार अपराधों में लिप्त वाहन मालिकों पर सार्वजनिक परिवहन वाहन चलाने के लिए उनके वर्तमान परमिट/ कोई नया परमिट उपलब्ध करने पर रोक लगाना भी ज़रूरी है। साथ ही बार-बार अपराधों में लिप्त वाहनों को ज़ब्त करने की भी आवश्यकता है। बस के मालिक/ड्राइवर के विवरण तथा परमिट और लाइसेंस की जानकारी बस के अंदर और बाहर स्पष्ट रूप से दिखनी चाहिए जहां से वह आसानी से पढ़ी जा सके। बसों के चालन पर नज़र रखने के लिए नियंत्रण कक्ष के गठन के साथ सभी. सार्वजनिक परिवहन वाहनों में जीपीएस यंत्रों का इस्तेमाल भी ज़रूरी है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय इस संबंध में सभी राज्यों को उपयुक्त परामर्श जारी करेगा।
9. परमिट शर्तों का उल्लंघन करने पर लगाए जाने वाले जुर्माने की राशि में बढ़ोतरी और एक खास संख्या के बाद अपराधों को बढ़ने से रोकने की आवश्यकता है।
10. दिल्ली सरकार सार्वजनिक परिवहन के वाहनों के परमिटों में संशोधन करने की मसौदा अधिसूचना जारी करेगी। इसमें वाहनों की खिड़कियों के शीशों पर काली फिल्में लगाने पर मनाही, अपराध दोहराने पर दंड में वृद्धि और अन्य आवश्यक उपाय शामिल हैं। अंतिम अधिसूचना एक महीने में जारी की जाएगी।
11. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव सभी राज्यों को दिल्ली सरकार द्वारा परमिट की शर्तों में किए गए संशोधन/परिवर्तन के बारे में लिखेंगे और उनसे वैसे उपाय करने का अनुरोध करेंगे।
12.थाने का निरीक्षण करने के समय निरीक्षण अधिकारी के लिए यह जरूरी होना चाहिए कि वह खास तौर पर थाने में तैनात व्यक्तियों की लिंग संवेदनशीलता के बारे में निष्कर्षों और महिलाओं के प्रति अपराधों से जुड़ी शिकायतों को दर्ज करने के बारे में थाने/एसएचओ के रिकार्ड को दर्ज करें और यह देखें कि थाने में महिलाओं को अपनी शिकायत दर्ज कराने से हतोत्साहित तो नहीं किया जा रहा।
13.इस संबंध में महिलाओं के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया दिखाने अथवा निरीक्षण संबंधी दायित्वों की लापरवाही करने वाले पुलिसकर्मियों और अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
14. पुलिस बल में लिंग संवेदनशीलता बनाए रखने की निरंतर आवश्यकता है, खासकर बीट ड्यूटी अथवा पुलिस स्टेशन पर तैनात सिपाही के स्तर पर। यह बात पुलिसकर्मियों के दिमाग में बिठाने की आवश्यकता है कि महिलाओं पर असंवेदनशील टिप्पणियां पूरी तरह बंद होनी चाहिए। इसके लिए पुलिस द्वारा नियमित आधार पर प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित करने की आवश्यकता है।महिलाओं से पक्षपात करने वाले किसी भी कर्मचारी/अधिकारी के विरुद्ध कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। इस बारे में प्रत्येक स्तर पर की जाने वाली कार्रवाई को रिपोर्ट करना होगा। यदि यह पता चलता है कि गलती करने वाले किसी व्यक्ति पर कार्रवाई नहीं की गई है तो निरीक्षण अधिकारी को जवाबदेह ठहराया जाएगा। इस बारे में निर्देश जारी किए जाएंगे और उनका पालन सुनिश्चित कराया जाएगा।
15. सभी स्तरों पर रिपोर्टिंग अधिकारी के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह पुलिसकर्मी की वार्षिक निष्पादन मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करते समय उसकी महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता के बारे में टिप्पणी करें। इस बात पर जोर दिया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इस बारे में टिप्पणी उसके व्यवहार के विशिष्ट अवसरों पर आधारित हों और मात्र रस्मी हां या ना तक सीमित नहीं रखी जाए। पुलिसकर्मी की तैनाती अथवा पदोन्नति पर विचार करते समय महिलाओं के प्रति उसके रवैये को खासतौर पर ध्यान में रखा जाना चाहिए।
16. पुलिस बल में अधिक महिलाओं को भर्ती करने की अत्यधिक आवश्यकता है। महिलाओं को दिल्ली पुलिस में बड़ी संख्या में भर्ती करना होगा। गृह मंत्रालय इस वित्त वर्ष में इस बारे में आवश्यक स्वीकृति प्राप्त करने की कार्रवाई करेगा। इसी प्रकार राज्यों में भी पुलिस बल में अधिक महिलाओं को भर्ती करने की कार्रवाई करने की आवश्यकता होगी। इस बारे में राज्यों को प्रेरित करने के लिए गृह मंत्रालय चार सप्ताह के भीतर उचित प्रस्ताव/योजना तैयार करेगा और उसके लिए आवश्यक स्वीकृति प्राप्त करेगा।
17. दिल्ली में अतिरिक्त पीसीआर वैनों की आवश्यकता होगी। इस प्रकार की 370 वैन प्राप्त करने का प्रस्ताव दिल्ली पुलिस ने भेजा है। इस बारे में स्वीकृति इसी वित्त वर्ष के भीतर देने की योजना है।
18. खास इलाकों जैसे शिक्षा संस्थानों, सिनेमा घरों, मॉल और बाजारों के आस-पास के इलाकों में पीसीआर वैनों में महिला पुलिसकर्मियों को तैनात करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा बीपीओ में काम करने वाली महिला कर्मचारियों के रात के समय काम से लौटने के मार्गों पर भी पीसीआर वैनों में महिला कर्मियों को तैनात किया जाएगा। समय के साथ कुछ ऐसे थाने भी बनाए जाएंगे जहां सिर्फ महिलाएं काम करेंगी।
19. समुदाय के लोगों को पुलिस के काम में हाथ बंटाने को प्रोत्साहन की भी योजना है। इससे न केवल पुलिस की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकेगा बल्कि प्रत्येक मोहल्ले में जिम्मेदार लोगों को नागरिकों के रूप में अपनी ड्यूटी निभाने के लिए प्रेरित किया जा सकेगा।
20. दिल्ली में अनेक कैमरे लगाए जा रहे हैं और इस समय 34 बाजारों और चार सीमावर्ती चौकियों पर सीसीटीवी प्रणालियां काम कर रही हैं। तथापि सार्वजनिक स्थानों में सीसीटीवी प्रणालियों की संख्या और बढ़ाने की अत्यधिक आवश्यकता है। इसके लिए पुलिस व्यापारिक संघों, आरडब्ल्यूए, व्यावसायिक/कार्यालय भवनों के प्रबंधकों, मॉल, सिनेमाघरों, एनजीओ आदि सभी हितधारकों का सहयोग लेगी। उन्हें अपने परिसरों के बाहर स्वीकृत नमूनों के सीसीटीवी लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। सभी राज्यों में भी इसी प्रकार की कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
21. सार्वजनिक स्थानों में सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था करने पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। नगर निकायों को मौजूदा सुविधाओं की समीक्षा करनी चाहिए तथा जहां कही आवश्यक हो इन्हें मजबूत बनाना चाहिए।
22. महिला और बाल विकास विभाग यौन हिंसा पीड़ितों को मुआवजा देने की योजना तथा यौन हिंसा पीड़ितों को मनोवैज्ञानिक एवं अन्य सहायता उपलब्ध कराने के लिए चुनिंदा अस्पतालों में आपदा राहत केंद्र स्थापित करने की योजना भी लागू करेगा। प्रस्तावित योजना 2013-14 से प्रायौगिक आधार पर देश के 100 जिलों में लागू की जायेगी।
23. सरकार ने सभी आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए देशव्यापी तीन अंकों का नंबर (100 नंबर की तरह) शुरू करने का प्रस्ताव किया है। यह 911 या 990 की तरह जैसे आपातकालीन प्रबंध प्रणालियों जैसी व्यवस्था होगी। इस तरह की व्यवस्था अनेक विकसित देशों में उपलब्ध है। ऐसी सेवा सभी टेलीकॉम सेवा प्रदाताओें के ग्राहकों को उपलब्ध होगी क्योंकि फिलहाल विभिन्न स्थितियों से निपटने या लक्षित समूहों की सुविधा के लिए अलग-अलग टेलीकॉम नंबर इस्तेमाल किये जा रहे है। इसलिए ऐसी व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है जहां किसी भी तरह की मुसीबत में फंसा व्यक्ति एक ही नंबर पर सम्पर्क कर सकेगा। इस नंबर पर कॉल करने के बाद कॉलर को किसी अन्य विशेष अथवा आपातकालीन नंबर पर संपर्क करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए। इसके बजाय कॉल बिना किसी बाधा के मुसीबत संबंधी उचित लाइन पर कनेक्ट की जानी चाहिए। गृह मंत्रालय, दूरसंचार विभाग के साथ मिलकर फरवरी 2013 के आखिर तक इस संबंध में व्यवस्था करने और उसे संचालित के बारे में मूल परिकल्पना तैयार करेगा।
24. सामान्य आपातकालीन हेल्पलाइन के अतिरिक्त एक ऐसी हेल्पलाइन भी होगी जो मुसीबत में फंसी महिलाओं के लिए ही समर्पित होगी। यह हेल्पलाइन देशभर में तीन अंक के विशिष्ट नंबर की होनी चाहिए। इसके लिए पूरे देश में 181 नंबर पर यह सुविधा शुरू की जा सकती है।
25. फिल्मों, टेलीविजन धारावाहिकों और विज्ञापनों में महिलाओं का नकारात्मक, फूहड़ और अथवा अश्लील चित्रण लंबे समय से चिंता का कारण रहा है। यदि इस संबंध में सभी हितधारकों को निरंतर संलग्न रखा जाए तो यह सहायक होगा। सार्वजनिक हित के विज्ञापनों के मीडिया अभियान को भी बनाये रखने की आवश्यकता है।
26. स्कूलों में जीवन मूल्यों से संबंधित शिक्षा की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। हालांकि सिर्फ पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा शामिल करना पर्याप्त नहीं है। शिक्षकों को भी जीवन मूल्यों की शिक्षा में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। स्त्री–पुरूष समानता के बारे में स्थायी जागरूकता अभियान को सभी स्कूलों, कॉलेजों में चलाये जाने की आवश्यकता है तथा शिक्षा के हर स्तर पर स्त्री-पुरूष समानता से संबंधित विषय शामिल करने की जरूरत है।
27. शिक्षण संस्थाओं में लड़कियों को आत्म रक्षा/मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण देना भी उपयोगी होगा। (PIB)
वि. कासोटिया/प्रियंका/क्वात्रा/प्रदीप/सुमन/अर्जुन/सोनिका/राजीव-425
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