src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> वीमेन स्क्रीन : 2022

Monday, October 31, 2022

मध्यप्रदेश:आत्म-निर्भर होते गाँव-सशक्त होती महिलाएँ-महेन्द्र सिंह सिसोदिया

Bhopal: Monday: 31st October 2022 at 19:57 IST

 प्रदेश में महिलाओं के 4 लाख से अधिक स्व-सहायता समूह हैं 

संकेतक तस्वीरें 

भोपाल: सोमवार: 31 अक्टूबर 2022: (वीमेन स्क्रीन डेस्क// इनपुट कार्तिका सिंह)::

पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री
मध्यप्रदेश शासन: 
महेन्द्र सिंह सिसोदिया

हालांकि महिलाओं ने अंतरिक्ष पर भी विजय प्राप्त कर ली है। शायद ही कोई क्षेत्र हो जहाँ महिलाओं की पहुंच न हो चुकी हूँ लेकिन इस सब के बावजूद महिलाओं के लिए घर परिवार की रसोई और अन्य खर्चे चलाना आसान नहीं हो सका। महिला के अपने हाथ में पैसा आए बिना उनका सशक्तिकरण पूरा नहीं हो सकेगा। यह सिथति अमीरी वर्ग की भी है, मध्यवर्ग की भी और गरीब वर्ग की भी। देश के विभिन्न हिस्सों में महिला सशक्तिकरण के लिए बहुत कुछ हो भी रहा है। बहुत सी योजनाएं सक्रियता से चल भी रही हैं। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और दक्षिण भारत में भी बहुत से कदम उठाए गए हैं। आज हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश की जहाँ महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने के प्रयास ज़ोरशोर से हो रहे हैं। उनकी व्यक्तिगत आमदनी उनकी मेहनत की कमाई से बढ़ रही है।  मध्यप्रदेश में सक्रिय स्व-सहायता समूह ४५ लक्ष से भी अधिक परिवारों को आर्थिक तौर पर मज़बूत बनाने में जुटे हुए हैं। इस  तरह के आने स्वस्थ समाज का निर्माण तेज़ी से हो रहा है जो आत्म निर्भरता के अभियान को मज़बूत बनाने में जुटा हुआ है। इस आत्म निर्भर समाज की अधिकतर महिलाएं अब स्वयं भी पूरी तरह से पूरी तरह से पूर्ण सशक्तिकरण की तरफ बढ़ रही हैं। 

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में मूर्त रूप ले रही है। प्रदेश के गाँव आत्म-निर्भर स्वायत्त इकाई के रूप में विकसित हो रहे हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि इनमें से अनेक की कमान महिलाओं के हाथ में है। प्रदेश में महिलाओं के 4 लाख से अधिक स्व-सहायता समूह हैं, जिनसे जुड़े 45 लाख से अधिक परिवार विभिन्न गतिविधियों से न केवल अपने परिवारों को आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बना रहे हैं, अपितु महिलाएँ भी सामाजिक रूप से सशक्त हो रही हैं।

प्रदेश की 23 हजार 12 ग्राम पंचायत, 313 जनपद पंचायत और 52 जिला पंचायत के लिये हुए निर्वाचन में 630 सरपंच, 157 जनपद सदस्य और एक जिला पंचायत सदस्य निर्विरोध निर्वाचित हुए थे, जिनमें 415 महिला सरपंच हैं। विगत वर्षों में पंचायतों द्वारा स्वयं की आय के कर एवं गैर-कर राजस्व के स्रोतों को प्रभावी रूप से क्रियान्वित करते हुए स्वयं की आय के रूप में लगभग 189 करोड़ रूपये अर्जित किये गये हैं। साथ ही पंचायतें नवाचार में भी आगे हैं। “सूर्य शक्ति अभियान’’ में पंचायतों की विद्युत खपत को सौर ऊर्जा पर अंतरित किया जा रहा है। इससे पंचायतें अतिरिक्त वित्तीय संसाधन भी जुटा सकेंगी।

मुख्यमंत्री श्री चौहान द्वारा प्रदेश के लिये तैयार किये गये आत्म-निर्भरता के रोडमेप पर कार्य करते हुए हमारा विभाग (पंचायत एवं ग्रामीण विकास) ग्रामीण क्षेत्रों को आत्म-निर्भर बनाने की दिशा में तेज गति से काम कर रहा है। ग्रामों में न केवल अधो-संरचना विकास, बुनियादी सुविधाएँ, रोजगार, स्वच्छता के क्षेत्र में निरंतर कार्य हो रहे हैं, अपितु प्रत्येक परिवार को पक्का आवास भी सुनिश्चित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना में विद्यार्थियों को पौष्टिक आहार दिलाया जा रहा है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में इस वित्त वर्ष में 152 करोड़ रूपये की लागत से प्रदेश में 125 अमृत सरोवर बनाये जा रहे हैं।

प्रदेश में महात्मा गाँधी नरेगा योजना में इस वित्त वर्ष में 36 लाख से अधिक परिवारों को रोजगार दिलाया गया और 14 करोड़ 93 लाख से अधिक मानव दिवस सृजित हुए। अनुसूचित जनजाति के परिवारों को रोजगार दिलाने में हमारा प्रदेश देश में अग्रणी है। प्रदेश में इस वित्त वर्ष में अनुसूचित जनजाति के 12 लाख से अधिक परिवारों को रोजगार दिलाया गया और 4 करोड़ 79 लाख मानव दिवस सृजित हुए। इसी योजना से "कैच द रेन'' अभियान में ग्रामों में 2 लाख 70 हजार जल-संरचनाओं का निर्माण भी किया गया है।

राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में प्रदेश में 52 जिलों के 47 हजार 22 गाँव में कार्य किया जा रहा है। मिशन में अब तक 4 लाख 3 हजार 172 स्व-सहायता समूह का गठन कर 45 लाख 5 हजार परिवार को जोड़ा गया है। इन्हें बैंकों से 4 हजार 408 करोड़ रूपये का ऋण वितरित किया गया है। मिशन के माध्यम से इन परिवारों के 529 करोड़ 43 लाख रूपये के उत्पादों का विक्रय किया गया है। स्व-रोजगार कार्यक्रमों में 73 हजार ग्रामीण युवाओं को विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षित कर रोजगार मेलों से रोजगार दिलाया जा रहा है। मुख्यमंत्री ग्रामीण पथ-विक्रेता योजना में 3 लाख 81 हजार ग्रामीण लाभान्वित हुए हैं।

स्वच्छ भारत मिशन के प्रथम चरण में हमारे गाँवों द्वारा निर्धारित अवधि के एक वर्ष पूर्व 2 अक्टूबर, 2018 को ही खुले में शौच मुक्ति (ओडीएफ) का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है। मिशन (ग्रामीण) के द्वितीय चरण में ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था की जा रही है। प्रदेश में अब तक 3 लाख 41 हजार व्यक्तिगत शौचालय और 16 हजार 274 स्वच्छता परिसर बनाये गये हैं। साथ ही 15 हजार 164 ग्राम में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और 15 हजार 919 गाँव में तरल अपशिष्ट प्रबंधन किया गया है। प्रदेश के 15 हजार 525 ग्राम को ओडीएफ प्लस बनाया गया है। केन्द्र सरकार द्वारा 2 अक्टूबर, 2022 को हमारे प्रदेश को विभिन्न श्रेणियों में अग्रणी राज्य का पुरस्कार दिया गया है।

प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्यमंत्री श्री चौहान के "सबके लिये पक्का आवास'' के संकल्प को पूरा करने के लिये तेज गति से कार्य हो रहा है। प्रतिमाह लगभग एक लाख प्रधानमंत्री आवास बनाये जा रहे हैं। योजना में अब तक प्रदेश में 38 लाख आवास स्वीकृत हुए हैं, जिनमें 29 लाख आवास पूरे कर लिये गये हैं। इन पर 35 हजार करोड़ रूपये से अधिक की लागत आई है। इस वर्ष 6 माह में ही लगभग 4 लाख 51 हजार आवास पूर्ण किये गये और धनतेरस के पवित्र अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हमारे ग्रामीण हितग्राहियों को वर्चुअल माध्यम से गृह-प्रवेश कराया गया।

ग्रामीण अधो-संरचना विकास के कार्य भी प्रदेश में निरंतर हो रहे हैं। मुख्यमंत्री ग्राम-सड़क योजना में 8 हजार 942 गाँव को जोड़ने के लिये 20 हजार 89 किलोमीटर लम्बाई की 8 हजार 714 सड़क स्वीकृत की गई हैं, जिनमें अभी तक 19 हजार 135 किलोमीटर की 8 हजार 292 सड़क बनाई जा चुकी हैं। प्रदेश के 8 हजार 456 गाँव को बारहमासी एकल सम्पर्कता से जोड़ा जा चुका है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के क्रियान्वयन में गत 3 वर्ष में प्रदेश में 9 हजार 127 किलोमीटर सड़क का निर्माण गुणवत्ता के साथ किया जाकर देश में प्रथम स्थान प्राप्त किया गया है।

इस स्टोरी के बड़े हिस्से की जानकारी लेखक पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री मध्यप्रदेश शासन श्री महेंद्र सिसोदिया ने दी है।


Wednesday, September 7, 2022

बिलकिस बानो के साथ एकजुटता की आवाज पंजाब भर में उठाई

6th September 2022 at 09:24 PM
नरिंदर कौर सोहल और अन्यों के नेतृत्व में हुआ सात ज़िलों में प्रदर्शन


लुधियाना
: 6 सितंबर 2022: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन)::

बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार की हत्या करने वाले अपराधियों की रिहाई के साथ सभी न्यायप्रियक्षेत्रों में विरोध और गुस्सा पैदा हो गया है। इन दरिंदों की रिहाई ने देश की पूरी व्यवस्था को शर्मसार कर दिया है। इस मुद्दे पर देश के कोने-कोने में भारी विरोध हो रहा है। इस विरोध का रंग पंजाब में भी देखने को मिला। 

पंजाब इस्त्री सभा ने सात जिलों में ज़ोरदार रोष और विरोध प्रदर्शन किया। संबंधित अधिकारियों को मांग पत्र भी दिए गए। इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वालों में जोशीली वामपंथी महिला नेता नरेंद्र कौर सोहल भी शामिल थे। इस खबर के साथ दी गई तस्वीरें मोगा, धर्मकोट, जीरा और फिरोजपुर की हैं। 

धूप और गर्मी के बावजूद इन सभी प्रगतिशील महिलाओं ने घर से बाहर निकल कर जनता से कहा कि हम चुपचाप इस जुल्म को सहने वाले नहीं हैं। वे बैनर भी पकड़े हुए थे जिसमें चेतावनी दी गई थी कि अगर महिलाओं का सम्मान नहीं है, तो इन लोगों को महिलाओं की  वोट भी भूल जाना चाहिए। चुनाव में भी महिलाएं उन्हें अच्छा सबक सिखाएंगी। 

इसके साथ ही बिल्किस बानो के साथ एकजुटता व्यक्त करने और इसके खिलाफ दुनिया भर की महिलाओं की आवाज लामबंद के लिए इन विरोध प्रदर्शनों की तस्वीरें और विवरण पूरी दुनिया में इंटरनेट से फैलाया गया था। इसका मकसद था बिलकिस बानो  का मामला हर घर तक पहुंचाना तांकि इन्साफ की आवाज़ पूरी दुनिया में बुलंद हो। जगह जगह हो रहे हैं इस को लेकर रोष प्रदर्शन। 

समाजिक चेतना और जन सरोकारों से जुड़े हुए इस ब्लॉग मीडिया को जारी रखने में आप भी सहयोगी बनें।इस सहयोग के लिए हर रोज़, हैट सप्ताह या हर महीने कुछ न कुछ अपनी क्षमता के मुताबिक अवश्य निकालें। नीचे दिए गए बटन को दबा कर आप सहजता से ऐसा कर सकते हैं। 

Friday, July 29, 2022

सीकर की मदर टेरेसा श्रीमती सुमित्रा शर्मा

29th July 2022 at 03:49 PM

2 हजार 500 से अधिक अनाथ, दिव्यांग छात्रकृछात्राओं के जीवन को संवारा

31 साल में कई बच्चों को पढ़ा-लिखाकर डॉक्टर,सैनिक बनाया

सीकर: 29 जुलाई 2022: (राजस्थान स्क्रीन//वीमेन स्क्रीन)::

सीकर जिले की 94 साल की एक मां वर्तमान में अपने 40 से ज्यादा बच्चों का पालन-पोषण कर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, नौकरी और शादी तक की जिम्मेदारी को निभा रही है। कई बच्चे आज डॉक्टर, सेना, अध्यापक सहित अन्य सरकारी पदों पर कार्यरत हैं। मां ने बच्चों को अपने अनुभव से जिंदगी जीने का सबक सिखाया है। इस मां का जीवन भी आसान नहीं रहा। बचपन कराची में बीता था। महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा को आदर्श मानने वाली इस बुजुर्ग मां ने देश के बंटवारे का दर्द भी देखा था। यह है सीकर के भादवासी गांव में स्थित कस्तुरबा सेवा संस्थान की निदेशक श्रीमती सुमित्रा शर्मा, शेखावाटी की मदर टेरेसा के नाम से भी पहचानी जाती है। अब तक इस मां  ने 2500 से ज्यादा बच्चों की जिंदगी को संवारा हैं।

श्रीमती सुमित्रा शर्मा ने बताया कि वर्तमान में संस्थान में 40 से ज्यादा बच्चे हैं। सभी बच्चे उन्हें मां कहकर बुलाते हैं। उन्होंने बताया कि 6 साल की उम्र से ऊपर के बच्चों को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की स्वीकृति के बाद ही संस्थान में रखा जाता है। उन्होंने बताया कि 18 साल की उम्र के बाद बच्चों को जयपुर में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के छात्रावास में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। इसी अनाथ बच्चों को कई परिवार गोद भी लेकर जाते हैं।  उन्होंने बताया कि संस्थान में बच्चों की देख-रेख की जाती हैं। जब तक बच्चे खुद के पैरों पर खड़े नहीं होते तब तक वह विभाग के संरक्षण में ही रहते हैं।

श्रीमती सुमित्रा शर्मा ने बताया कि उनका जन्म हरियाणा के रोहतक में 1930 में हुआ था। जन्म के 10 दिन बाद ही पिता की मौत हो गई थी। 21 दिन की होने पर नाना शिवदयाल शर्मा मां और उन्हें अपने साथ कराची (अब पाकिस्तान लेकर चले गए। नाना-नानी ने ही परवरिश की, कुछ समय बाद नमक आंदोलन की शुरुआत हुई। अपने नाना के साथ 11 साल की उम्र में ही उन्होंने आंदोलन में जाना शुरू किया। उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा को अनाथ व असहाय बच्चों की मदद करते हुए देखा था। यह देख वह बहुत प्रभावित होने लगी थी। तब बड़े होकर खुद भी ऐसा कुछ करने का सोचा था। यह सफर 3 बच्चों के साथ शुरू किया था। अब तक 2500 बच्चों की परवरिश कर चुकी हैं। उन्होंने बताया कि संस्थान के बच्चे मां कहकर पुकारते हैं तो बहुत अच्छा लगता है। 94 साल की श्रीमती सुमित्रा शर्मा अपने पति के साथ 1955 में सीकर आई थी। उसके बाद बेसहारा बच्चों के लिए काम करना शुरू किया था।  

8 साल तक खुद के खर्चें पर की बच्चों की देखभाल:-

श्रीमती सुमित्रा शर्मा ने बताया कि 1960 में बेसहारा बच्चों के लिए कुछ करने का विचार किया। पति ने भी साथ दिया। शुरुआत 3 बच्चों से की। तीनों बच्चों के माता-पिता की मौत के बाद दादा-दादी पालन-पोषण करने में असमर्थ थे। ऐसे में तीनों बच्चों को निरूशुल्क पढ़ाना शुरू किया। एक वर्ष में करीब 60 बच्चे शामिल हुए। अपने साथ कुछ महिलाओं को जोड़ा। 8 साल तक खुद के खर्चे पर बच्चों की देखभाल की और पढ़ाई-लिखाई करवाई। पति के रिटायरमेंट में मिले रुपयों को भी बच्चों को पढ़ाने में लगा दिया।

2007 के बाद मिली सरकार की मदद-

उन्होंने बताया कि 1990 में अनाथ, बेसहारा बच्चों को आसरा देने के लिए संस्थान खोलने का प्लान बनाया। ताकि कोई बच्चा भीख न मांगे, सड़क पर दर-दर की ठोकर न खाए। किराए के मकान में ही कस्तूरबा संस्थान की शुरुआत की थी। 1998 में इसका रजिस्ट्रेशन करवाया। जिसके बाद सरकार से मदद मिलना शुरू हो गया था।संस्थान को 2006 में राज्य सरकार द्वारा 0.25 हैक्टेयर जमीन आवंटन की गई। संस्थान ने दान दाताओ के सहयोग से 28 कमरों का निर्माण कराया गया है। इसके बाद बच्चों की पढ़ाई, खाने और स्टाफ का खर्च सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से मिलता है। इसके अलावा संस्थान में होने वाले खर्चे को पेंशन से चुकाती है।

संस्थान द्वारा संचालित गतिविधियां :-

संस्थान द्वारा वर्तमान में निराश्रित बालगृह, निराश्रित बालिका गृह, विशेष योग्यजन गृह का संचालन किया जा रहा है ।

संस्थान में बालक, बालिकाओं की स्थिति:-

संस्थान मे पिछले 31 वर्षों से 800-900 बालक, बालिकाओ को लाभान्वित किया है। संस्थान ने बच्चों के लिए आवास, भोजन, चिकित्सा, शिक्षणकृप्रशिक्षण की व्यवस्था की है। संस्थान में वर्तमान समय मे 30 निराश्रित व 15 विशेष योग्यजन बालक आवासित है।

बच्चों के लिए संस्थान मे उपलब्ध सुविधाएं-

संस्थान मे बच्चों के पढने के लिए लाईब्रेरी स्थापित है, जिसमें महापुरूषों, धार्मिक, कहानियां, सामान्य अध्ययन, बच्चों के कोर्स की पुस्तकें उपलब्ध है।

श्रीमती सुमित्रा शर्मा ने बताया कि करीब 31 साल से पहले संस्थान की शुरुआत की थी। इस लंबे सफर में करीब 2500 से ज्यादा दिव्यांग, असहाय और अनाथ बच्चों की परवरिश हो चुकी है। बच्चे पढ़ाई-लिखाई कर अपने पैरों पर खड़े हैं। संस्थान में आवासित बालक प्रदीप वर्मा का आईआईटी मे चयन हुआ तथा उन्होंने इन्जीनियरिंग पूर्ण कर प्राइवेट कम्पनी में जौब कर रहा है। बालक रतन लाल वर्मा ने पी.एम.टी. में विशेष योग्यजन श्रेणी में आल इंडिया में चौथी रैंक प्राप्त की है तथा एस.एम.एस. से एम.बी.बी.एस पूर्ण कर सरकारी चिकित्सक की पोस्ट पर नावां में नियुक्त है। बालिका इन्द्रा कुमारी ने नर्सीग एस.के.अस्पताल से विशेष योग्यजन श्रेणी से पूर्ण कर सरकारी नर्स के पद पर खाचरिया बास सीकर में नियुक्त है। इसी प्रकार छात्र सुनिल कुमार वर्मा द्वितीय श्रेणी अध्यापक,बालक बलराम जाखड सैना में जीडी क्लर्क,संजय कुमार वर्मा एलडीसी तथा संस्था द्वारा बालक देवनारायण को आई.टी.आई.,सचिन कुमार गुजर्र, हरिशंकर, राजेन्द्र कुमार वर्मा को आयुर्वेद नर्सिंग कराई गई है। वर्तमान मे बालक अंकुर कुमार को भी आयुर्वेद नर्सींग कोर्स कराया जा रहा है। उन्होंने भामाशाहों के सहयोग से दिव्यांग और असहाय 6 लड़कियों की शादी भी करवाई गई हैं।

श्रीमती सुमित्रा शर्मा ने बताया कि संस्थान द्वारा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, जिला प्रशासन के समन्वय से विशेष योग्यजन मतदाता जागरूकता अभियान चलाया गया है। संस्थान द्वारा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के संयुक्त तत्वावधान में विशेष योग्यजनों के शिविरों का आयोजन कर उनको कृत्रिम, कैल्पिर, बैसाखी, श्रवण यंत्र, ट्राईसाईकल, व्हील चौयर, ब्लाइंड स्टीक आदि उपलब्ध कराना व निःशुल्क प्रमाण पत्र बनवाने के साथ ही बाल मेलों का आयेजन बाल अधिकारिता विभाग के सहयोग से किया जाता रहा हैं। संस्थान के बच्चों द्वारा स्वछ भारत अभियान के तहत भादवासी व शिवसिंहपुरा में अभियान चला कर लोगों को जागरूक करने का काम किया जा रहा है।

----

-पूरण मल ज-स-अ-, सीकर

Thursday, January 27, 2022

बेटी और बहन//आर्थिक स्टेटस पर कटाक्ष करती रचना

आरती गुप्ता की पोस्ट कई बार विवादित हो जाती हैं लेकिन उनमें तर्क के लिहाज़ से कुछ गलत नहीं होता। उनकी एक काव्य पोस्ट आज कीस्थितियों पर हैं। परिवारों में बढ़ती हुई औपचारिकताएं  पोस्ट के निशाने पर हैं। साथ ही आर्थिक स्थिति देख कर रिश्ते पालने पर भी कटाक्ष है। पढ़िए ज़रा इस रचना को।  आपके  इंतज़ार रहेगी ही। --सम्पादक आर्थिक स्टेटस पर कटाक्ष करती रचना 

 पिता जी ज़ोर से चिल्लाते हैं.

प्रिंस दौड़कर आता है, और पूछता है ~

          क्या बात है पिताजी ? 

       पिताजी ~ तुझे पता नहीं है,

    आज तेरी बहन रश्मि आ रही है ?

    वह इस बार हम सभी के साथ 

      अपना जन्मदिन मनायेगी.

       अब जल्दी से जा, और 

      अपनी बहन को लेके आ, 

             हाँ और सुन ...

  तू अपनी नई गाड़ी लेकर जा, जो तूने 

    कल खरीदी है. उसे अच्छा लगेगा,

    प्रिंस~ लेकिन मेरी गाड़ी तो मेरा 

        दोस्त ले गया है , सुबह ही.

       और आपकी गाड़ी भी ड्राइवर ...

          ये कहकर ले गया, कि 

      गाड़ी की ब्रेक चेक करवानी है.

पिताजी ~ ठीक है, तो तू स्टेशन तो जा,

                किसी की गाड़ी लेकर या 

                   किराया की करके.

               उसे बहुत खुशी मिलेगी.

     प्रिंस ~ अरे वह बच्ची है क्या ?

                 जो आ नहीं सकेगी ? 

   आ जायेगी, आप चिंता क्यों करते हो,

          कोई टैक्सी या ऑटो लेकर.

   पिताजी ~ तुझे शर्म नहीं आती ...

                    ऐसा बोलते हुए ? 

  घर में गाड़ियाँ होते हुए भी घर की बेटी 

      किसी टैक्सी या ऑटो से आयेगी ?

   प्रिंस ~ ठीक है, आप चले जाओ !

 मुझे बहुत काम हैं , मैं नहीं जा सकता.

पिताजी ~ तूझे अपनी बहन की 

                 थोड़ी भी फिकर नहीं ?

                   शादी हो गई, तो क्या 

                     बहन पराई हो गई ?

    क्या उसे हम सबका प्यार पाने का

               हक नहीं ?

   तेरा जितना अधिकार है इस घर में,

    उतना ही ... तेरी बहन का भी है.

          कोई भी बेटी या बहन 

            मायका छोड़ने के बाद

              पराई नहीं होती.

    प्रिंस ~ मगर ... मेरे लिए तो वह 

   पराई हो चुकी है, और इस घर पर 

     सिर्फ मेरा अधिकार है.

            तडाक ...!!

अचानक पिताजी का हाथ उठ जाता है 

  प्रिंस पर,  और तभी माँ आ जाती है.

मम्मी ~ आप कुछ शर्म तो कीजिए,

              ऐसे जवान बेटे पर हाथ 

                 बिल्कुल नहीं उठाते.

     पिताजी ~ तुमने सुना नहीं ,

                      इसने क्या कहा ?

     अपनी बहन को पराया कहता है,

         ये वही बहन है जो इससे 

     एक पल भी जुदा नहीं होती थी.

    हर पल इसका ख्याल रखती थी.

 पॉकेट मनी से भी बचाकर इसके लिए 

       कुछ न कुछ खरीद देती थी.

     बिदाई के वक्त भी हमसे ज्यादा 

   अपने भाई से गले लगकर रोई थी.

    और ये .... आज उसी बहन को 

                     पराया कहता है.

         प्रिंस (मुस्कुराकर) ~

           बुआ का भी तो

     आज ही जन्मदिन है, पापा ..!!

  वह कई बार इस घर में आई है, मगर

         हर बार अॉटो से आई है.

   आप कभी भी अपनी गाड़ी लेकर

           उन्हें लेने नहीं गये.

  माना वह आज वह तंगी में है, मगर 

     कल वह भी बहुत अमीर थी.

       आपको-मुझको-इस घर को,

    उन्होंने दिल खोलकर सहायता और

             सहयोग किया है.

    बुआ भी इसी घर से बिदा हुई थी,

फिर रश्मि दीदी और बुआ में फर्क कैसा ?

         रश्मि मेरी बहन है, तो ....

       बुआ भी तो आपकी बहन है.

    पापा ..!! आप मेरे मार्गदर्शक हो.

                आप मेरे हीरो हो, मगर ....

             बस इसी बात से मैं हर पल

                  अकेले में रोता हूँ , 

     कि तभी बाहर ....

   गाड़ी रूकने की आवाज आती है.

    तब तक पापा भी प्रिंस की बातों से 

  पश्चाताप की आग मे जलकर रोने लगे,

           कि तभी रश्मि दौड़कर 

       पापा मम्मी से गले मिलती है.

  लेकिन उनकी हालत देखकर पूछती है 

         कि .... क्या हुआ पापा ? 

          पापा बोले ~ तेरा भाई ,

       आज मेरा भी पापा बन गया है.

    रश्मि ~ ए पागल  ..!! नई गाड़ी न ? 

                    बहुत ही अच्छी है.

          मैं ड्राइवर को पीछे बिठाकर

               खुद चलाके आई हूँ ,

       और कलर भी मेरी पसंद का है.

प्रिंस ~ Happy birthday to you दी.

वह गाड़ी आपकी है, और हमारे तरफ से 

      आपको birthday gift .!!

      बहन ... सुनते ही खुशी से 

            उछल पड़ती है, कि तभी 

              बुआ भी अंदर आती है.

  बुआ ~ क्या भैया, आप भी न, ??? 

              न फोन न ... कोई खबर,

        अचानक भेज दी गाड़ी आपने, 

           भागकर आई हूँ , खुशी से.

            ऐसा लगा कि पापा

             आज भी जिंदा हैं.

               इधर पिताजी ....

       अपनी पलकों में आँसू लिये 

             प्रिंस की ओर देखते हैं.

           और प्रिंस, पापा को

      चुप रहने का इशारा करता है.

    इधर बुआ कहती जाती है, कि मैं 

        कितनी भाग्यशाली हूँ.

      कि मुझे आप जैसा भैया मिला, 

  पापा-मम्मी को पता चल गया था, कि

        ये सब प्रिंस की करतूत है,

     मगर आज ... एक बार फिर

  रिश्तों को मजबूती से जुड़ते देखकर

           वे खुशी  से रोने लगे.

        उन्हें अब पूरा यकीन था, कि ...

       मेरे जाने के बाद भी मेरा प्रिंस 

    रिश्तों को सदा हिफाजत से रखेगा.

           ◆  बेटी और बहन  ◆

        ये दो बेहद अनमोल शब्द हैं.

     जिनकी उम्र बहुत कम होती है, 

            क्योंकि 

       शादी के बाद बेटी और बहन

   किसी की पत्नी तो किसी की भाभी 

 और किसी की बहू बनकर रह जाती हैं.

     शायद लड़कियाँ इसीलिए

      मायके आती होंगी, कि...

            उन्हें फिर से

   बेटी और बहन शब्द सुनने को

      बहुत मन करता होगा.

   •┅═══❁✿❁❁✿❁═══┅•

आरती गुप्ता के प्रोफ़ाइल से साभार