src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> वीमेन स्क्रीन : September 2020

Saturday, September 12, 2020

समर्पित आत्‍मा:सिस्‍टर निवेदिता, आज के भारत के लिए एक प्रेरणा

 विशेष सेवा और सुविधाएँ25-October, 2017 09:33 IST                                 *अर्चना दत्‍ता मुखोपाध्‍याय
 विशेष लेखः सिस्‍टर निवेदिता की 150वी जयंती (28 अक्टूबर)  

महान स्‍वतंत्रता सेनानी बिपिन चन्‍द्र पाल ने
कहा था, ‘मुझे संदेह है कि किसी और भारतीय ने उस प्रकार भारत से प्रेम किया होगा, जैसे निवेदिता ने किया था।’ टैगोर ने भारत को उनकी स्‍व-आहूतिपूर्ण सेवाओं के लिए उन्‍हें ‘लोक माता’ की उपाधि दी थी। सुश्री मार्ग्रेट एलिजाबेथ नोबल को स्‍वामी विवेकानंद द्वारा ‘समर्पित’ निवेदिता का नया नाम दिया गया था।
अर्चना दत्‍ता मुखोपाध्‍याय
भारतीय महिलाओं के उत्‍थान के लिए
स्‍वामीजी के उत्‍कट आह्वान से प्रेरित होकर निवेदिता 28 जनवरी, 1898 को अपनी ‘कर्म भूमि’ भारत के तटों पर पहुंची और वास्‍तविक भारत को जानने का कार्य आरंभ कर दिया।  
 निवेदिता ने एक राष्‍ट्र के रूप में भारत के आंतरिक मूल्‍यों एवं भारतीयता के महान गुणों की खोज की। उनकी पुस्‍तक ‘द वेब ऑफ इंडियन लाइफ’ अनगिनत निबंधों, लेखों, पत्रों एवं 1899-1901 के बीच एवं 1908 में विदेशों में दिए गए उनके व्‍याख्‍यानों का एक संकलन है। ये सभी भारत के बारे में उनके ज्ञान की गहराई के प्रमाण हैं।
भारतीय मूल्‍यों एवं परम्‍पराओं की महान समर्थक निवेदिता ने ‘वास्‍तविक शिक्षा--- राष्‍ट्रीय शिक्षा’ के ध्‍येय को आगे बढ़ाया और उनकी आकांक्षा थी कि भारतीयों को ‘भारत वर्ष के पुत्रों एवं पुत्रियों’ के रूप में न कि ‘यूरोप के भद्दे रूपों’ में रूपांतरित किया जाए। वे चाहती थीं कि भारतीय महिलाएं कभी भी पश्चिमी ज्ञान और सामाजिक आक्रामकता के मोह में न फंसे और ‘अपने वर्षों पुराने लालित्‍य एवं मधुरता, विनम्रता और धर्म निष्‍ठा’ का परित्‍याग न करें। उनका विश्‍वास था कि भारत के लोगों को ‘भारतीय समस्‍या के समाधान के लिए’ एक ‘भारतीय मस्तिष्‍क’ के रूप में शिक्षा प्रदान की जाए।
निवेदिता ने 1898 में
कोलकाता के उत्‍तरी हिस्‍से में एक पारम्‍परिक स्‍थान पर अपना प्रायोगिक विद्यालय खोला न कि नगर के मध्‍य हिस्‍से में जहां अधिकतर यूरोप वासी रहते थे। उन्‍हें वास्‍तव में अपने पड़ोस के हर दरवाजे पर जाकर छात्रों के लिए भीख मांगनी पड़ती थी। उनकी इच्‍छा थी कि उनका विद्यालय आधुनिक युग की ‘मैत्रेयी’ और ‘गार्गी’ का निर्माण करें और इसे एक ‘महान शैक्षणिक आंदोलन’ का केन्‍द्र बिन्‍दु बनाए।
विद्यालय की गतिविधि‍यां सच्‍चे राष्‍ट्रवादी उत्‍साह में डूबी हुई थीं। जब देश में ‘वन्‍दे मातरम’ पर प्रतिबद्ध लगा हुआ था, उस वक्‍त यह प्रार्थना उनके विद्यालय में गाई जाती थी। जेलों से स्‍वतंत्रता सैनानियों की रिहाई उनके लिए जश्‍न का एक अवसर हुआ करता था। निवेदिता अपने वरिष्‍ठ छात्रों को स्‍वतंत्रता आंदोलन के महान भाषणों को सुनने के लिए ले जाया करती थीं जिससे उनमें स्‍वतंत्रता संग्राम के मूल्‍यों को पिरोया जा सके।
1904 में निवेदिता ने महान संत ‘दधीचि’ स्‍व आहुति के आदर्शों पर केन्‍द्र में ‘व्रज’ के साथ पहले भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज की एक प्रतिकृति की डिजाइन बनाई थी। उनके छात्रों ने बंगला भाषा में ‘वंदे मातरम’ शब्‍दों की कशीदाकारी की थी। इस ध्‍वज को 1906 में भारतीय कांग्रेस द्वारा आयोजित एक प्रदर्शनी में भी किया गया था।
उनके लिए शिक्षा सशक्तिकरण का एक माध्‍यम थी। निवेदिता ने अपने छात्रों को उनके घरों से आजीविका अर्जित करने में सक्षम बनाने के लिए उन्‍हें पारंपरिक ज्ञान के साथ-साथ हस्‍तकलाओं एवं स्‍व-रोजगार प्रशिक्षण भी दिया। वह वयस्‍क एवं युवा विधवाओं को शिक्षा एवं कौशल विकास के क्षेत्र में लेकर आईं। निवेदिता ने अपने दिमाग में पुराने भारतीय उद्योगों के पुरुत्‍थान एवं उद्योग तथा शिक्षा के बीच संपर्क स्‍थापित करने की एक छवि बना रखी थी।
निवेदिता ने भारतीय मस्तिष्‍कों में राष्‍ट्रवाद प्रज्‍ज्वलित करने में महान भूमिका निभाई। उन्‍होंने भारत के पुरुषों एवं महिलाओं से अपील की कि वे अपनी मातृभूमि से प्रेम करने को अपना नैतिक कर्तव्‍य बनाए, देश के हितों की रक्षा करना अपनी ‘जिम्‍मेदारी’ समझें और मातृभूमि की पुकार पर किसी भी आहूति के लिए तैयार रहें।
भारत का एकीकरण उनके दिमाग में सबसे ऊपर था और उन्‍होंने भारत के लोगों से अपने दिल एवं दिमाग में इस ‘मंत्र’ का उच्‍चारण करने का आग्रह किया कि ‘भारत एक है, देश एक है और हमेशा एक बना रहेगा।’
 निवेदिता ने 1905 में पूरे मनोयोग से स्‍वदेशी आंदोलन का स्‍वागत किया और कहा कि विदेशी वस्‍तुओं का बहिष्‍कार करना केवल राजनीति या अर्थव्‍यवस्‍था का मसला ही नहीं है बल्कि यह भारतीयों के लिए एक ‘तपस्‍या’ भी है।
निवेदिता विभिन्‍न विषयों पर एक सफल लेखिका थीं। ज्‍वलंत मुद्दों पर भारत के दैनिक समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में छपे उनके लेख लोगों में देशभक्ति की भावना जगाते थे और उन्‍हें कदम उठाने के लिए प्रेरित करते थे, चाहे यह स्‍वतंत्रता आंदोलन हो, कला एवं संस्‍कृति का उत्‍थान हो या आधुनिक विज्ञान या शिक्षा के क्षेत्र में उन्‍हें आगे बढ़ाना हो। 
निर्धनों एवं जरूरतमदों के प्रति निवेदिता की सेवाएं, चाहे कोलकाता में प्‍लेग महामारी के दौरान हो या बंगाल में बाढ़ के दौरान, उनके बारे में बहुत कुछ कहती हैं। निवेदिता भारत में किसी भी प्रगतिशील आंदोलन में एक उल्‍लेखनीय ताकत बन गई।
वास्‍तव में उनकी 150वीं जयंती मनाने के इस अवसर पर राष्‍ट्र को उनके बहुआयामी व्‍यक्तित्‍व के योगदान का पुनर्मूल्‍यांकन करने की जरूरत है। निवेदिता ने भारत में महिलाओं के लिए ‘प्रभावी शिक्षा’ एवं ‘वास्‍तविक मुक्ति’ को ‘कार्य करना, तकलीफें झेलना और उच्‍चतर  स्थितियों में प्रेम करना, सीमाओं से आगे निकल जाना; महान प्रयोजनों के प्रति संवेदनशील रहना; राष्‍ट्रीय न्‍यायपरायणता द्वारा रूपांतरित होना, के रूप में परिभाषित किया है। यह आज के भारत में महिलाओं के लिए एक बड़ी प्रेरणा है जो जीवन के कठिन कार्यक्षेत्र में सामाजिक पूर्वाग्रहों, वर्जनाओं एवं सांस्कृतिक रूढि़यों के खिलाफ लड़ते हुए अपने कौशलों को प्रखर बना रही हैं। (PIB)
******
* अर्चना दत्‍ता प्रशासनिक सेवा की एक पूर्व अधिकारी हैं। वह महानिदेशक (समाचार), आकाशवाणी एवं दूरदर्शन थीं।
इस रचना में दिखाई दे रहीं तस्वीरें  सिस्टर  निवेदिता गर्ल्ज़ स्कूल से साभार ली गई हैं। 

Friday, September 11, 2020

कोविड-19: महिलाएँ सर्वाधिक प्रभावित,

 चरम ग़रीबी मिटाने में हुई प्रगति पलटने का जोखिम 


बांग्लादेश की राजधानी ढाका में कोविड-19 के कारण बड़ी संख्या में लोगों की आय का स्रोत खो गया है
     ---UN Women/Fahad Kaizer

2 सितम्बर 2020//महिलाएं

वैश्विक महामारी कोविड-19 और उसके सामाजिक-आर्थिक दुष्प्रभाव चार करोड़ 70 लाख महिलाओं को ग़रीबी के गर्त में धकेल सकती है. संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को एक नई रिपोर्ट जारी की है जो दर्शाती है कि कोरोनावायरस संकट के कारण चरम ग़रीबी से निपटने में अब तक हुई दशकों की प्रगति की दिशा उलटने का ख़तरा पैदा हो गया है। यूएन के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा है कि कोविड-19 से उबरने के दौरान पुनर्बहाली कार्रवाई और नीतिगत प्रयासों के केन्द्र में महिलाओं को रखना होगा। 

महिला सशक्तिकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र संस्था (UN Women) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा कराए गए इस अध्ययन में महिलाओं के लिये ग़रीबी दर में 9.1 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। 

कोविड-19 से पहले वर्ष 2019 से 2021 के बीच इस दर के 2.7 फ़ीसदी घटने का अनुमान था। 

अनुमान दर्शाते हैं कि विश्वव्यापी महामारी से दुनिया भर में ग़रीबी पर असर पड़ा है लेकिन इसका महिलाओं, विशेषत: प्रजनन उम्र की महिलाओं पर ज़्यादा असर हुआ है। 

वर्ष 2021 तक, 25 से 34 वर्ष आयु वर्ग में चरम ग़रीबी का सामना करने वाले हर 100 पुरुषों की तुलना में 118 महिलाएँ चरम ग़रीबी का शिकार होंगी. प्रतिदिन 1 डॉलर 90 सेंट (लगभग 140 रुपये) या उससे कम रक़म पर गुज़ारा करने वाले लोग चरम ग़रीबी की श्रेणी में आते हैं। 

वर्ष 2030 तक यह अन्तर 100 पुरुषों की तुलना में 121 महिलाओं तक बढ़ने की आशंका है। 

'From Insights to Action: Gender Equality in the Wake of COVID-19' शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के आँकड़े दर्शाते हैं कि कोविड-19 के कारण साढ़े नौ करोड़ से ज़्यादा लोग वर्ष 2021 तक चरम ग़रीबी के गर्त में धँस जाएँगे. इनमे क़रीब साढ़े चार करोड़ महिलाएँ व लड़कियाँ हैं। 

इन हालात में चरम ग़रीबी का शिकार हुए कुल लोगों की संख्या बढ़कर 43 करोड़ 50 लाख हो जाएगी और इस आँकड़े को महामारी से पहले के स्तर पर वर्ष 2030 से पहले नहीं लाया जा सकेगा।   

पुनर्बहाली के केन्द्र में महिलाएँ

संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था की कार्यकारी निदेशक पुमज़िले म्लाम्बो-न्गुका ने बताया कि चरम ग़रीबी का दंश झेलने वाली महिलाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी, समाज और अर्थव्यवस्था की विसंगतियाँ व ख़ामियाँ उजागर करती है। 

“हम जानते हैं कि परिवार की देखरेख करने की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी महिलाएँ निभाती हैं. वे कम आमदनी अर्जित करती हैं, कम बचत कर पाती हैं और उनके रोज़गार भी कम निश्चित होते हैं।” 

उन्होंने बताया कि कुल मिलाकर पुरुषों की तुलना में महिलाओं के रोज़गारों पर 20 फ़ीसदी ज़्यादा जोखिम है। 

यूएन की वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इतनी सारी विषमताओं के तथ्यों के बाद महामारी से उबरते समय नीतिगत कार्रवाई को तेज़ गति से आगे बढ़ाया जाना होगा और उसके केन्द्र में महिलाओं को रखना होगा।  

लैंगिक विषमताओं से निपटना 

टिकाऊ विकास के 2030 एजेण्डा में वर्ष 2030 तक चरम ग़रीबी के उन्मूलन का लक्ष्य रखा गया है लेकिन कोरोनावायरस संकट की वजह से ना इस पर सिर्फ़ गम्भीर ख़तरा पैदा हो गया है बल्कि हालात और भी ख़राब होने की आशंका जताई जा रही है। 

महिलाओं व लड़कियों के लिये ग़रीबी दर बढ़ने का अर्थ सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में गिरावट दर्ज होना भी है।  

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के प्रशासक एख़िम श्टाइनर ने बताया कि 10 करोड़ महिलाओं व लड़कियों को ग़रीबी से निकाला जा सकता है बशर्ते के सरकारें शिक्षा के अवसरों, परिवार नियोजन, न्यायसंगत और समान वेतन व सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाने पर ध्यान दे। 

“महिलाएँ कोविड-19 संकट के प्रकोप का सामना कर रही हैं क्योंकि उनके लिये अपनी आय का स्रोत खोने और सामाजिक संरक्षा उपायों से बाहर रहने की आशंका ज़्यादा है।”

ये भी पढ़ें - कोविड-19: महिलाओं व लड़कियों के लिये पीढ़ियों की प्रगति खो जाने का ख़तरा

“लैंगिक विषमताओं को घटाने में निवेश करना ना केवल स्मार्ट और किफ़ायती उपाय है बल्कि यह एक ऐसा ज़रूरी चयन है जिससे सरकारें ग़रीबी घटाने के प्रयासों पर महामारी के असर को उलट सकती हैं।”

वैसे तो अध्ययन के निष्कर्ष चिन्ताजनक है लेकिन अनुमान लगाया गया है कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के महज़ 0.14 फ़ीसदी (2 ट्रिलियन डॉलर) की मदद से दुनिया को चरम ग़रीबी के चंगुल से निजात दिलाई जा सकती है।  

48 अरब डॉलर की धनराशि की ज़रूरत लैंगिक स्तर पर ग़रीबी की खाई को पाटने में होगी। 

लेकिन अगर सरकारें असरदार कार्रवाई करने में विफल रहती हैं या देर करती हैं तो प्रभावितों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा होने की आशंका है। 


Thursday, September 10, 2020

लैंगिक समानता और युवा विकास

 हर तीन में एक व्यक्ति युवा है                                 


महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण समावेशी आर्थिक विकास के केंद्र में है और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजीज़) को हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण है। दुनिया की प्रत्येक महिला और बालिका की समानता सुनिश्चित करने वाले परिवर्तनकारी उपायो को एसडीजीज़ ऐतिहासिक मंच प्रदान करते हैं। महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु निवेश करने से लैंगिक समानता, गरीबी उन्मूलन और समावेशी आर्थिक वृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। लेकिन अर्थव्यवस्था में महिलाओं और बालिकाओं को समाहित करने और कार्यस्थलों एवं सार्वजनिक स्थानों को सुरक्षित बनाने के साथ-साथ महिलाओं और बालिकाओं के साथ होने वाली हिंसा को रोकने की भी जरूरत है। साथ ही समाज में उनकी पूर्ण भागीदारी और उनके स्वास्थ्य एवं संपन्नता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

भारत में युवाओं की संख्या बहुत अधिक है। हर तीन में एक व्यक्ति युवा है, यानी 15 से 24 वर्ष के बीच, और देश की जनसंख्या में बच्चों की संख्या 37% के करीब है। 2020 तक देश की औसत आयु 29 वर्ष होगी। भारत की आर्थिक वृद्धि की संभावनाएं और एसडीजीज़ की उपलब्धियां बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि युवाओं में कौशल, ऊर्जा और सफलता की कितनी इच्छा है तथा क्या नेतृत्व, भागीदारी और स्वेच्छा को पोषित करने वाली प्रभावशाली प्रक्रियाएं उपलब्ध हैं। एसडीजीज़ के 169 उद्देश्यों में से 65 में स्पष्ट या अस्पष्ट रूप से युवाओं का उल्लेख है और ये उद्देश्य सशक्तीकरण, भागीदारिता और जन कल्याण पर केंद्रित हैं। उचित अवसर मिलने पर युवा वर्ग देश का सामाजिक और आर्थिक भाग्य बदल सकता है। लेकिन इस परिवर्तन के लिए सतत निवेश और भागीदारी की जरूरत है, साथ ही युवाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा एवं रोजगार से संबंधित मुद्दों पर व्यापक रूप से काम करना भी। युवाओं का मनोबल बढ़ाया जाना चाहिए और जिन क्षेत्रों का प्रत्यक्ष प्रभाव उनके भविष्य पर पड़ने वाला है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों से संबंधित फैसलों में उन्हें सहभागी बनाया जाना चाहिए।

चुनौती

महिलाएं एक हिंसा मुक्त परिवेश में सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें, इसके लिए उन्हें सहयोग देने के साथ-साथ उनका आर्थिक सशक्तीकरण भी जरूरी है। बाल लिंगानुपात (सीएसआर) में गिरावट, पक्षपातपूर्ण तरीके से लिंग चयन की परंपरा और बाल विवाह, इन सभी से पता चलता है कि लैंगिक भेदभाव और लैंगिक असमानता किस हद तक भारत के लिए एक चुनौती बनी हुई है। महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की घटनाएं भी बहुत होती हैं, विशिष्ट अल्पसंख्यक समूहों की महिलाएं अपने जीवनसाथियों की हिंसा का सर्वाधिक सामना करती हैं। पिछले 10 वर्षों में भारत में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, देश का सबसे अधिक हिंसक अपराध रहा है। चूंकि हर पांच मिनट में घरेलू हिंसा की एक घटना दर्ज होती है।

किसी भी समाज का युवा वर्ग ऐसा दृष्टिकोण, प्रभाव, कौशल और आचरण विकसित कर सकता है जो सूचनाओं और सेवाओं को सुरक्षित, स्वस्थ रखने की मांग करे, भेदभाव और हिंसा समाप्त हो, विशेष रूप से बालिकाओं के खिलाफ, और ऐसा नागरिक समाज तैयार हो जिसका परिवेश सभी को समान रूप से दक्षता हासिल करने का मौका दे। ऐसी नीतियां बनाने और आचरण विकसित करने में उन्हें भागीदार बनाया जाना चाहिए जिनमें सभी लिंगों को मान्यता मिले और लैंगिक रूढ़ियों और मानदंडों को चुनौती दी जा सके।

सरकार के कार्यक्रम और पहल

सरकार ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने को अपनी प्राथमिकता बनाया है। साथ ही उनकी तस्करी, घरेलू हिंसा तथा यौन शोषण रोकने के लिए विशेष उपाय किए हैं। नीतिगत कार्यक्रमों में लैंगिकता को प्रस्तावित और एकीकृत करने के लिए प्रयास भी किए गए हैं। जनवरी 2015 में बालिकाओं का संरक्षण और सशक्तीकरण करने वाले अभियान ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत की गई जिसे राष्ट्रीय स्तर पर संचालित किया जा रहा है। वित्त पोषण सेवाओं के साथ महिलाओं के दक्षता और रोजगार कार्यक्रम देश के कोने-कोने में सुविधाओं से वंचित ग्रामीण महिलाओं तक पहुंच रहे हैं। यौन शोषण, घरेलू हिंसा और असमान पारिश्रमिक से संबंधित कानूनों को भी मजबूती दी जा रही है।

राष्ट्रीय युवा नीति 2014 में युवाओं को सशक्त बनाने का दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से व्यक्त होता है। इस नीति में पांच सुपरिभाषित उद्देश्यों और 11 प्राथमिक क्षेत्रों की पहचान की गई है तथा इसमें प्रत्येक के लिए नीतिगत हस्तक्षेप का सुझाव है। प्राथमिक क्षेत्रों में शिक्षा, दक्षता विकास और रोजगार, उद्यमिता, स्वास्थ्य और स्वस्थ जीवनशैली, खेल, सामाजिक मूल्यों का प्रचार, सामुदायिक भागीदारी, राजनीति और प्रशासन में भागीदारी, युवाओं का जुड़ाव, समावेश और सामाजिक न्याय शामिल हैं। सरकार ने रोजगार बाजार में पूर्ण भागीदारी और रोजगार सेवाओं की उपलब्धता हासिल करने के लिए युवाओं को सक्षम बनाने की पहल की है। सरकार ने ग्रामीण युवाओं के क्षमता निर्माण के लिए दक्षता विकास कार्यक्रम शुरू किए हैं, खासतौर से गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले (बीपीएल), तथा अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के अंतर्गत आने वाले युवाओं के लिए। स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों, शारीरिक विकास, डिजिटल समावेश, किशोर अपराध और बाल अपराध, नशीली दवाओं के दुरुपयोग, युवतियों के प्रति भेदभाव और अन्य युवा-विशिष्ट विषयों पर कार्य करने के प्रयास किए गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र का सहयोग

लैंगिक समानता पर प्राथमिक समूह (यूएन विमेन द्वारा संयोजित) निम्नलिखित के माध्यम से लैंगिक समानता पर संयुक्त राष्ट्र के प्रभाव को मजबूत करता है (i) लैंगिक समानता के मुद्दों पर जानकारी को व्यापक करना, (ii) साझा प्रोग्रामिंग, जनसमर्थन जुटाना, शोध और संवाद, और (iii) अंतर-सरकारी प्लेटफॉर्म्स के जरिए लैंगिक समानता के लिए संयुक्त राष्ट्र के साझा सहयोग को समर्थन देना और उसका निरीक्षण करना, ये प्लेटफॉर्म हैं, 2015 उपरांत कार्यसूची, बीजिंग + 20, महिलाओं की स्थिति पर गठित आयोग और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1325।

पक्षपातपूर्ण लिंग चयन पर केंद्रित उपसमूह, जिसमें यूएन विमेन, यूनिसेफ, यूएनडीपी और यूएनएफपीए शामिल हैं, का उद्देश्य लिंग चयन और बाल विवाह के खिलाफ किए जाने वाले कार्य को समर्थन देना है।

इसके लिए जन समर्थन अभियान चलाए जा रहे हैं जैसे HeForShe और लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ 16 दिनों का एक्टिविज्म (प्रत्येक वर्ष 25 नवंबर से 10 दिसंबर तक)।  मार्च 2016 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर साझा संयुक्त राष्ट्र संवाद और जनसमर्थन अभियान शुरू किया गया। संयुक्त राष्ट्र ने नीति आयोग और MyGov के साथ मिलकर पहला Women Transforming India अभियान शुरू किया। इस ऑनलाइन अभियान में देश भर की महिलाओं की लगभग 1000 प्रेरणादायी आपबीतियां प्राप्त हुईं। इनमें से 12 उत्कृष्ट महिलाओं को चुना गया जो देश में उल्लेखनीय परिवर्तन कर रही हैं।

विमेन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया 2017 के बारे में अधिक जानें

यूएनफपीए औऱ उसके साझेदारों ने किकस्टार्ट इक्वालिटी कैंपेन के जरिए 200 विद्यार्थियों को जोड़ा  तथा यूथ की आवाज की साझेदारी में पुरुषों और लड़कों को संलग्न करने वाला एक ऑनलाइन अभियान चलाया गया।

लिंग आधारित सांख्यिकी में डेटा गैप्स को दूर करने के लिए सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की सलाह एक फ्रेमवर्क बनाया गया, जिसने तीन क्षेत्रों का विश्लेषण किया- महिलाओं के समय का सदुपयोग, परिसंपत्ति का स्वामित्व और महिलाओं से होने वाली हिंसा की व्यापकता।

संयुक्त राष्ट्र के स्वयंसेवियों ने युवा मामले एवं खेल मंत्रालय के सहयोग से एक राष्ट्रीय बैठक का आयोजन किया ताकि राष्ट्रीय युवा नीति के कार्यान्वयन के लिए इनपुट्स दिए जा सकें। इस बैठक में समावेश, सामाजिक उद्यमशीलता, पर्यावरण और आपदा प्रबंधन, लैंगिक न्याय और समानता पर युवाओं और तकनीकी विशेषज्ञों ने चर्चा की।

यूएनएफपीए और यूएनवी ने दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर युवा लड़कों और लड़कियों के लिए यूथ अड्डा का आयोजन किया। इसका उद्देश्य युवाओं में राजनीतिक समझदारी विकसित करना था। यह क्या है, सिस्टम किस तरह काम करता है और व्यक्तिगत रूप से युवा किस प्रकार निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।

आरकेएसके में यह परिकल्पना की गई है कि भारत में सभी किशोरों-किशोरियों  को अपने स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित सूचनापरक और जिम्मेदारीपूर्ण फैसले लेने का हक मिले और उन्हें अपनी पूर्ण क्षमता की अनुभूति हो।

भारत में यूएन ने गुवाहाटी में ब्रिक्स युवा वार्ता और उसके कार्रवाई संबंधी आह्वान के लिए युवा मामलों के मंत्रालय को तकनीकी सहयोग दिया। वार्ता का शीर्षक था, यूथ एज ब्रिज फॉर इंट्रा ब्रिक्स एक्सचेंज। इसके चार सत्र दक्षता विकास और उद्यमशीलता, सामाजिक समावेश, युवाओं में स्वयंसेविता और शासन प्रणाली में युवा भागीदारिता जैसे विषयों पर आधारित थे। (UNO in India)


Tuesday, September 8, 2020

महिलाएं और कोरोना का बढ़ता हुआ खतरा

गरीबी में लैंगिक अंतर बढ़ने की भी गंभीर आशंका


सोशल मीडिया
: 10 सितंबर 2020: (यू एन हिंदी//वीमेन स्क्रीन):: 

क्या कोरोना का खतरा महिलाओं को कुछ ज़्यादा होता है। भारत में  स्थित संयुक्त राष्ट्र ने इस तरह की आशंका का  ज़िक्र करते हुए कहा है कि यदि  ऐसा होता है तो बहुत से और खतरे भी बढ़ जायेंगे। अपने टवीट में UN  हिंदी ने कहा,"#COVID19 से पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं के प्रभावित होने से गरीबी में लैंगिक अंतर बढ़ने की आशंका है। साथ ही यह हवाला भी दिया गया है कि @undp और @un_women

की नई रिपोर्ट ने पाया है कि 4.7 करोड़ अतिरिक्त महिलाएं और लड़कियां गरीबी में धकेली जाएंगी जिससे दशकों में हुई प्रगति पलट सकती है। इस लिहाज़ से महिलाओं का ध्यान रखे जाने की आवश्यकता अधिक है। (तस्वीर यू एन हिंदी से साभार)