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Thursday, December 31, 2020

लड़कियां: जन्‍म के साथ भी जन्म के बाद भी भेदभाव का सिलसिला जारी

 23-जनवरी-2017 19:35 IST

विशेष लेख//राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाना//बरनाली दास

Pexels Photo by Anete Lusina
देश कल राष्‍ट्रीय बालिका दिवस मनाने जा रहा है। प्रत्‍येक वर्ष 24 जनवरी को हम बालिका दिवस मनाते हैं, समाज में बालिकाओं के लिए समान स्थिति और स्‍थान स्‍वीकार करते है और एक साथ मिलकर हमारे समाज में बालिकाओं के साथ हो रहे भेदभाव और असमानता के विरूद्ध संघर्ष का संकल्‍प लेते हैं।

लेकिन यह बहुत दुर्भाग्‍यपूर्ण और अत्‍यधिक चिंता का विषय है कि देश में वर्ष 1961 से ही बाल लिंग अनुपात तेजी से गिरता रहा है। हम वर्ष 2017 में है और 21वीं शताब्‍दी के दूसरे दशक को पूरा करने जा रहे है, लेकिन हम विचारधारा को बदलने में सफल नहीं हुए है।

एक शिक्षित, आर्थिक रूप से स्‍वतंत्र महिला और कार्य स्‍थल तथा घर में सम्‍मानित महिला के लिए यह वास्‍तविकता जानकर कठिनाई होती है कि भारतीय समाज में सभी वर्गों में बड़ी संख्‍या में लोग बेटा होने की इच्‍छा रखते हैं और नहीं चाहते कि उन्‍हें बेटी हो। ऐसे लोग भ्रूण हत्‍या की सीमा तक जाते हैं।

विभिन्‍न क्षेत्रों में कुछ लड़कियों द्वारा ऊंची उपलब्धि हासिल करने के बावजूद भारत में जन्‍म लेने वाली अधिकतर लड़कियों के लिए यह कठोर वास्‍तविकता है कि लड़कियां शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य जैसे बुनियादी अधिकारों और बाल विवाह से सुरक्षा के अधिकार से वंचित हैं। परिणामस्‍वरूप, आर्थिक रूप से सशक्‍त नहीं है, प्रताड़ित और हिंसा की शिकार हैं। जनगणना आंकड़ों के अनुसार बाल लिंग अनुपात (सीएसआर) 1991 के 945 से गिरकर 2001 में 927 हो गया और इसमें फिर 2011 में गिरावट आई और बाल लिंग अनुपात 918 रह गया। यह महिलाओं के कमजोर होने का प्रमुख सूचक है, क्‍योंकि यह दिखाता है कि लिंग आधारित चयन के माध्‍यम से जन्‍म से पहले भी लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है और जन्‍म के बाद भी भेदभाव का सिलसिला जारी रहता है।

लड़कियों के साथ व्‍यापक स्‍तर पर सामाजिक भेदभाव तथा नैदानिक उपायों की उपलब्‍धता और दुरूपयोग दोनों के कारण बाल लिंग अनुपात (सीएसआर) में कमी आई है। इस वास्‍तविकता से निपटना था और परिणामस्‍वरूप बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) योजना लागू की गई है। यह योजना विभिन्‍न क्षेत्रों में पूरे देश में विचार विमर्श के बाद तैयार की गई है। 

22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत में प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी द्वारा लॉन्‍च की गई बीबीबीपी योजना का प्राथमिक लक्ष्‍य बाल लिंग अनुपात में सुधार करना तथा महिला सशक्तिकरण से जुड़े अन्‍य विषयों का समाधान करना है। दो वर्ष पुरानी यह योजना तीन मंत्रालयों-महिला तथा बाल विकास मंत्रालय, स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय तथा मानव संसाधान तथा विकास मंत्रालय द्वारा संचालित है। महिला तथा बाल विकास मंत्रालय नोडल मंत्रालय है। यह योजना अनूठी है और मनोदशा रिवाजों तथा भारतीय समाज में पितृसत्‍ता की मान्‍यताओं को चुनौती देती है।

Pexels-Photo by Vladi karpovich
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना को लागू करने के लिए बहुक्षेत्रीय रणनीति अपनाई गई है। इसमें लोगों की सोच को बदलने के लिए राष्‍ट्रव्‍यापी अभियान चलाना स्‍थानीय नवाचारी उपायों से समुदाय तक पहंचने पर बल देना, केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय द्वारा गर्भ पूर्व तथा जन्‍म पूर्व नैदानिक तकनीकी अधिनियम लागू करना और स्‍कूलों में लड़कियों के अनुकूल संरचना बनाकर बालिका शिक्षा को प्रोत्‍साहित करना तथा शिक्षा के अधिकार को कारगर ढंग से लागू करना शामिल है। शुरू में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना देश के सौ जिलों में लागू की गई। पिछले एक वर्ष में रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, डिजिटल मीडिया तथा सोशल मीडिया सहित विभिन्‍न मीडिया में कार्यक्रम को लेकर अभियान चलाने से जागरूकता बढ़ी है। इस अभियान के तहत सामूहिक सामुदायिक कार्य और उत्‍सवों का आयोजन किया गया जैसे लड़की का जन्‍मदिन मनाना, साधारण तरीके से विवाह को बढ़ावा देना, महिलाओं के संपत्ति के अधिकार को समर्थन देना, सामाजिक तौर-तरीकों को चुनौती देने वाले स्‍थानीय चैम्पियनों को पुरस्‍कृत करना और युवाओं तथा लड़कों को शामिल‍ किया गया।

विभिन्‍न स्‍तरों पर ग्राम पंचायतों के माध्‍यम से लोगों से संवाद किया गया। बातचीत में प्रत्‍यायित सामाजिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता (आशा), आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (एडब्‍ल्‍यूडब्‍ल्‍यू) ऑक्‍सीलियरी नर्सिंग मिडवाइफ (एएनएम) तथा स्‍वयं सहायता समूह के सदस्‍यों, निर्वाचित प्रतिनिधियों, धार्मिक नेताओें और समुदाय के नेताओं को शामिल किया गया।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान को व्‍यापक बनाने के लिए, विशेषकर युवाओं में व्‍यापकता के लिए सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्मों का भी इस्‍तेमाल किया गया और  जन साधारण में बालिका के महत्‍व को लेकर सार्थक संदेश दिेये गये।

बे‍टी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के क्रियान्‍वयन के दूसरे वर्ष में गर्भ पूर्व तथा जन्‍म पूर्व नैदानिक तकनीकी अधिनियम को कठोरता से लागू करने पर ध्‍यान दिया जा रहा है और  मानव संसाधन विकास मंत्रालय लड़कियों की शिक्षा पर विशेष रूप से फोकस कर रहा है। गर्भावस्‍था के पंजीकरण, संस्‍थागत डिलीवरी तथा जन्‍म पंजीकरण जैसे उपायों पर भी बल दिया जा रहा है।

अभी देश के 161 जिलों में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना चलाई जा रही है। सौ जिलों से मिली प्रारंभिक रिपोर्ट संतोषपद्र है। यह संकेत मिलता है कि अप्रैल-मार्च 2014-15 तथा 2015-16 के बीच 58 बीबीबीपी जिलों में बाल लिंग अनुपात को लेकर समझदारी बढ़ी। 69 जिलों में त्रैमासिक पंजीकरण में बढ़ोतरी हुई और पिछले वर्ष की कुल डिलीवरी की तुलना में 80 जिलों में संस्‍थागत डिलीवरी में सुधार हुआ। हरियाणा में दिसम्‍बर, 2016 में दो दशकों में पहली बार जन्‍म पर लिंग अनुपात 900 पर पहुंचा।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के विभिन्‍न हितधारकों को सतत रूप से सक्रिय बनाए रखने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा सिविल सोसाइटी, अंतर्राष्‍ट्रीय संगठनों और औद्योगिक संघों को भागीदार बनाया गया। इससे नागरिक समाज के संगठनों को अपने कार्यों को बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना से जोड़ने के लिए प्रेरणा मिली।

भारत में बालिका के भविष्‍य के लिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना अत्‍याधिक महत्‍वपूर्ण और सफल योजना है। पहले वर्ष की सफलता से दिखता है कि देश में विपरीत बाल लिंग अनुपात को समाप्‍त करना सभी के सहयोग से संभव है।

* लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं और अभी एसओएस चिल्‍ड्रर्न विलिजेज ऑफ इंडिया में कम्‍युनिकेशन प्रमुख हैं। वह महिला और बाल विकास मंत्रालय की बीबीबीपी की कार्यक्रम प्रबंधन ईकाई के सहयोग को स्‍वीकार करती हैं।

*****वीके/एजी/जीआरएस -06

Wednesday, December 30, 2020

नारी शक्ति:गुमनामी की ज़िंदगी से शक्ति केंद्र तक का सफल सफर

 07-मार्च-2017 11:15 IST

विशेष लेख//तांकि महिला दिवस आने तक सभी के लिए विशेष अभियान चल सके 

                                                                                                                       *अनुपमा जैन

नारी संघर्ष की प्रतीकत्मक तस्वीर 


स्त्री शक्ति के जरिये परिवार,समाज और राष्ट्र को सशक्त तथा समृद्ध बनाने की राजस्थान की विभिन्न कल्याण योजनाओ से लगभग डेढ करोड़ परिवार की महिलाओ के'पॉवरफुल वुमेंन' बनने की दिशा में एक सकारात्‍मक कदम है। गुमनाम सी अंधेरी जिंदगी जी रही जयपुर की केसर देवी, बीकानेर की नानू देवी  जैसी लाखों महिलाओं को 'भामाशाह योजना' के तहत परिवार की मुखिया बना कर उन्‍हें अधिकार सम्पन्न बनाने से उनके परिवार लाभान्वित हो रहे हैं। 

लेखिका अनुपमा जैन 

दरअसल राजस्थान में इन दिनो महिला सशक्तिकरण को लेकर क्रांति हो रही है। प्रदेश की 'भामाशाह योजना' से दूर दराज के गांव, शहर की महिलायें 'पॉवरफुल वुमेंन' बन रही है। इसका अर्थ यह है कि अब लगभग एक करोड़ 30 लाख परिवारों के अहम फैसलों में मुखिया होने के नाते उनकी भूमिका खास बनती जा रही है। इस योजना के तहत आवश्यक जानकारियों के सत्यापन के बाद परिवार की महिला मुखिया के नाम से बहु उद्देशीय भामाशाह परिवार कार्ड बनाया जाता है। जानकारों का मानना है कि देश में महिला और उनके वित्तीय सशक्तीकरण की सबसे बड़ी भामाशाह योजना से राजस्थान में­ महिला आत्मनिर्भरता के एक नये युग का सूत्रपात हो रहा है। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे का यह 'ड्रीम प्रोजेक्ट' है जिसके तहत महिलाओं को परिवार की मुखिया बना सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत मिलने वाले नगद लाभ सीधे उनके बैंक खातों में जमा करवाने और गैर नगद लाभ दिलवाने की अभिनव पहल है। भामाशाह योजना शुरू होने से राजस्थान में युगान्तरकारी परिवर्तन होने जा रहा है। यह योजना देश में अपनी तरह की पहली सीधी लाभ हस्तान्तरण योजना है।   

खास बात यह है कि भामाशाह योजना में राज्य के सभी परिवार अपना नामांकन करवा सकते हैं। भामाशाह योजना में नामांकन और भामाशाह कार्ड बनवाने को लेकर लोगों में अक्सर यह भ्रान्ति रहती है कि यह सुविधा केवल बीपीएल, बीपीएल महिला या किसी वर्ग विशेष के लिए है, जबकि वास्तविकता में इस योजना में राज्य के सभी परिवार अपना नामांकन करा सकते है। साथ ही यदि नामांकन में­ कोई त्रुटि अथवा अपूर्णता रह जाती है तो उसे संशोधित भी करवाया जा सकता है। इसी प्रकार भामाशाह कार्ड की यह विशेषता है कि यदि कार्ड गुम जाए अथवा चोरी हो जाता है तो भी कोई इसका दुरूपयोग नही कर पाएगा। चूंकि भामाशाह कार्ड बायोमैट्रिक पहचान सहित कोर बैंकिंग सुविधा युक्त है अतः यह पूरी तरह सुरक्षित है और लाभार्थी के खाते में जमा राशि उसके अलावा अन्य किसी के द्वारा निकालना संभव नही है। नामांकित परिवारों को संबंधित ग्राम पंचायत/शहरी निकाय के माध्यम से भामाशाह कार्ड निःशुल्क देने का प्रावधान है। सूत्रो के अनुसार  ऐसे परिवार जिनका भामाशाह योजना में ­ नामांकन होना है अथवा जिन्हे भामाशाह कार्ड जारी नही हुआ है उन परिवारों अथवा सदस्यों को सभी राजकीय सेवाएं आगामी आदेश तक पूर्व की तरह ही मिलती रहें­गी।

     राज्य सरकार द्वारा भामाशाह योजना में­ आवश्यक बदलाव कर इसे अधिक बड़े रूप में­ और अधिक व्यापक स्तर पर लागू किया जा रहा है और इसे प्रधानमंत्री की जन-धन योजना से भी जोड़ा गया है। भामाशाह योजना का उद्देश्य सभी राजकीय योजनाओं के नगद एवं गैर नगद लाभ सीधा पारदर्शी रुप से प्रत्येक लाभार्थी को पहुंचाना है। यह योजना के अंतर्गत राशन कार्ड, पेन्शन, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा के लिए छात्रावृत्ति पाने वाले लाभार्थियों को भी सम्मिलित किया जायेगा। यह योजना परिवार को आधार मानकर उनके वित्तीय समावेश के लक्ष्य को पूरा करती है और इसके तहत हर परिवार को भामाशाह कार्ड दिया जाएगा जो उनके बैंक खातों से जुड़े होंगे। यह बैंक खाता परिवार की मुखिया,जो कि महिला होगी के नाम से होगा और वह ही इस खाते की राशि को परिवार के उचित उपयोग में­ कर सकेगी। यह कार्ड बायो-मैट्रिक पहचान सहित कोर बैकिंग को सुनिश्चित करता है। इसके अन्तर्गत, प्रत्येक परिवार का सत्यापन किया जाएगा और पूरे राज्य का एक समग्र डेटाबेस बनाया जाएगा। इसके माध्यम से जाली कार्डों की भी जांच की जाएगी। विभिन्न विभागों द्वारा पात्राता के लिए सभी जनसांख्यिकी और सामाजिक मापदण्डों को भी इसमें सम्मिलित किया जाएगा। 

     आधिकारिक आंकड़ो के अनुसार अब तक राज्य के एक करोड़ 35 लाख परिवारों के 4 करोड़ 62 लाख व्यक्तियों का नामांकन हो चुका है एवं उन्हे बहुउद्देश्यीय भामाशाह परिवार पहचान कार्ड आवंटित किए जाने की प्रक्रिया चल रही है।  इस के तहत बैंक खातों में 4700 करोड़ रूपये का लाभ हस्तातंरित हो चुका है।

     जयपुर जिले की ग्राम पंचायत जमवारगढ़ की बीपीएल परिवार की बुजुर्ग श्रीमती केसर देवी मानती है भामाशाह कार्ड ने उन्हें एक नई पहचान दी है। अब भामा शाह कार्ड उनके लिये जादुई चिराग बन गया है क्‍योंकि केवल भामाशाह कार्ड के जरिए ही विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ प्राप्‍त किया जा सकता है। इसी तरह बीकानेर पंचायत समिति की बंबलू ग्राम पंचायत की बैसाखियों के सहारे चलने वाली नानू देवी  मानती है भामाशाह कार्ड उनकी लाठी है, भले ही वह चलने फिरने से लाचार हैं, लेकिन यह कार्ड उन्हें हर काम में सहारा देता है, चाहे वह पेंशन प्राप्‍त करना हो या कोई और कार्य। कार्ड के कारण उनमें नया आत्म विश्वास से भर गया है।

    आधिकारिक जानकारी के अनुसार यह सुविधा अटल सेवा केन्द्र तथा ई-मित्र केन्द्रों पर स्थाई रूप से उपलब्ध है। जहां किसी परिवार के सभी सदस्य एक साथ जाकर आधार कार्ड व बैंक खाता संख्या के अलावा आवश्यक जानकारी देकर नामांकन करा सकते हैं। यदि किसी परिवार का बैंक खाता नही हो तो उसे भी ई-मित्र केन्द्र पर खुलवाने की सुविधा उपल्ब्ध है। ई-मित्र केन्द्र या भामाशाह योजना की वेबसाइट के माध्यम से ऑनलाइन नामांकन भी कराया जा सकता है। नामांकन और कार्ड से संबंधित समस्याओं व शिकायतों के समाधान के लिए भामाशाह का प्रबंधक जिला कलेक्टर और सांख्यिकी अधिकारियों को इसका अधिकारी और उपखंड अधिकारियों को नोडल अधिकारी बनाया गया है।

    परिवार का कोई भी सदस्य अगर अपना व्यक्तिगत कार्ड बनवाने का इच्छुक हो तो वह 30 रुपये का शुल्क जमा करवाकर यह कार्ड बनवा सकता है। बीपीएल परिवार की महिला मुखिया को सरकार द्वारा भामाशाह कार्ड बनवाने पर दो किश्तों में 2 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है जो महिला मुखिया के खाते में­ जमा करवा दी जाती है। इसकी पहली किश्त के रुप में­ एक हजार रुपये तथा छः महीने बाद दूसरी किश्त के रुप में लाभार्थी के खाते में एक हजार रुपये डालने का प्रावधान किया गया है।

भामाशाह योजना में पें­शन और छात्रावृति जैसे नगद लाभ तथा राशन सामग्री जैसे गैर नगद लाभों के वितरण की शुरूआत हो चुकी है। परिवारों के नामांकन के बाद सत्यापन और भामाशाह परिवार कार्ड बनने की प्रक्रिया के बीच पें­शन, छात्रावृति व राशन कार्ड से जुड़े महत्वपूर्ण विभागों के आंकड़ों के साथ भामाशाह के आंकड़ों का मिलान करते हुए इनमें एकरूपता लाई जा रही है। इससे परिवारों के बारे में दर्ज जानकारी से पें­शन, छात्रावृति व राशन सामग्री के पात्र वर्ग को 'नगद और गैर नगद लाभ’ का पारदर्शी तरीके से वितरण सुनिश्चित होगा। भविष्य में­ इस दूरदर्शी योजना में­ विभिन्न विभागों के अलग-अलग लाभ भी जोड़े जाएंगे। सूत्रो के अनुसार दरअसल इस योजना की परिकल्पना श्रीमती राजे ने अपने पिछले शासनकाल वर्ष 2008 में­ 'आधार कार्यक्रम' से बहुत पहले की थी।

   मुख्यमंत्री श्रीमती राजे ने दिसम्बर, 2013 में पुनः मुख्यमंत्री बनने के बाद भामाशाह योजना का कार्यान्‍वयन फिर से शुरु करने का निर्णय लिया और इसी क्रम में­ भामाशाह योजना का पुनः शुभारंभ गत वर्ष 15 अगस्त को इतिहास पुरूष महाराणा प्रताप को अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले महान दानवीर भामाशाह की पवित्र धरा मेवाड़ के खुबसूरत शहर उदयपुर में­ हुआ। भामाशाह योजना के प्रभावी कार्यान्‍वयन के लिये भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015-16 में राष्ट्रीय-ई-गवर्नेंस का "स्वर्ण पुरस्कार" राजस्थान को प्रदान किया गया था।  सूत्रों के अनुसार अब इस योजना के लाभ व्यापक पैमाने पर नजर आने लगा है।

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 *लेखिका स्‍वतंत्र पत्रकार और डॉक्‍युमेंट्री निर्माता है। इस लेख में व्‍यक्‍त किये गये विचार उनके स्‍वयं के हैं।

वीके/एके/वाईबी/37

Tuesday, December 29, 2020

विशेष लेख//महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर समानता//*डॉ. साशा रेखी

 14-मार्च-2017 16:10 IST

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस–08 मार्च को याद दिलाते हुए तांकिकोई अभियान छेड़ा जा सके 

महिला समानता की प्रतीकत्मक तस्वीर Pexels-photo by Fauxels

इस वर्ष महिला दिवस का विषय “कार्यस्थल की दुनिया में समानता- वर्ष 2030 तक दुनिया में महिला-पुरुष अनुपात 50-50 करने का लक्ष्य” पर केन्द्रित है।

      यद्यपि कार्यस्थल की दुनिया एवं माहौल महिलाओं के लिए तेज़ी से बदल रहा है, इसके बावजूद, महिलाओं के लिए ‘कार्यस्थल पर समानता’ हासिल करने के लक्ष्य को पाने के लिए अभी हमे लंबी दूरी तय करनी है। हमें महिलाओं के वेतन, अवकाश, विशेषरूप से भुगतान सहित मातृत्व एवं शिशु देखभाल अवकाश, परिवार एवं बुज़ुर्गों की देखभाल के लिए विशेष अवकाश, गर्भावस्था के दौरान संरक्षण, स्तनपान कराने वाली महिलाओं की स्थिति के प्रति संवेदनशीलता और कार्यस्थल पर होने वाले यौन शोषण के क्षेत्र में महिलाओं के लिए पूर्ण समानता की ओर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है।

हमें अपने घरों की लड़कियों को पारंपरिक शिक्षक, बैंकर आदि नौकरियों के अलावा रोज़गार की व्यापक श्रेणियों (जैसे सेना, खेल आदि) में आगे बढ़ने और रोज़गार हासिल करने के लिए भी प्रेरित करने की ज़रूरत है। हमें अपनी बेटियों को यह सिखाने की आवश्यकता है कि वे बड़े सपने देखें और बड़ा कार्य करने की दिशा में सकारात्मक दृष्टि से कार्य करें।

महिलाओं के करियर में एक अन्य बाधा आत्मविश्वास में कमी और पूर्वाग्रह से ग्रसित होना है, जिसकी वजह से वह ख़ुद अपने आप से ही हार रही हैं। शादी, गर्भावस्था, शिशु जन्म, स्तनपान एवं शिशु देखभाल आदि को महिलाओं के करियर में बाधा या किसी रोक के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

अपने जीवन में विभिन्न भूमिकाएं निभाने की वजह से आजकल महिलाएं कार्यस्थल, घर एवं समाज में विभिन्न चुनौतियां का सामना कर रही हैं। हम महिलाओं से अपेक्षा रखते हैं कि वे मेहनत एवं ईमानदारी से नौकरी करने के अलावा गृहिणी, बेटी, बहु, पत्नी एवं समाज में निर्धारित कई अन्य भूमिकाओं को शानदार तरीके से निभाए। परिणामस्वरूप, परिवार एवं आसपास के लोगों की अपेक्षाओं को पूरी न कर पाने की वजह से ज़्यादातर महिलाएं अपराधबोध से ग्रसित हैं। इसकी वजह से महिलाओं में चिंता, अवसाद, खाने का विकार आदि समस्याएं बढ़ रही हैं। कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए सुरक्षित एवं बेहतर माहौल के अलावा, महिलाओं के प्रति समाज के दृष्टिकोण एवं व्यवहार में भी व्यापक स्तर पर बदलाव लाने की आवश्यकता है। घर एवं कार्यस्थल, दोनों ही जगहों पर काबिले-तारीफ भूमिका निभाने के लिए, महिलाओं के ऊपर उनकी सीमा से अधिक कार्य करने के लिए दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए।

हमें कार्यस्थल पर महिलाओं की सफलता को सकारात्मक नज़रिए के साथ स्वीकृति देने की आवश्यकता है। यदि कोई महिला सफल होती है तो उसे घर एवं कार्यस्थल दोनों ही जगहों पर विरोध एवं शत्रुता का सामना करना पड़ता है, जबकि वास्तविक तथ्य यह है कि यदि किसी परिवार की महिला भी कार्य करती है तो उस परिवार के जीवन की गुणवत्ता में सकारात्मक रूप से काफी अधिक सुधार हो जाता है। महिलाओं को अपने पेशेवर कार्य के लिए दोषी महसूस नहीं कराया जाना चाहिए, क्योंकि दोनों अभिभावकों का घर से बाहर कार्य करना, बच्चों के लिए खासतौर पर लड़कियों के समग्र विकास के लिए काफी अच्छा होता है। “वह करियर को लेकर अत्यधिक केन्द्रित एवं सकारात्मक है”, इस वाक्य को आज भी समाज में नकारात्मक तारीफ के रूप में देखा जाता है।

हमें युवाओं के बीच ऐसे मूल्यों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है कि वे बढ़े होने के क्रम में ही महिलाओं के साथ कार्य करने और कार्यस्थल पर उनके बेहतर सहयोगी बनने में गर्व महसूस करें। महिलाओं के कार्य करने को नकारात्मक नज़रिए से देखने के बजाय, उनकी प्रतिभा और कार्य की सराहना करें। हमें ऐसे परिवारों की आवश्यकता है, जहां स्वस्थ कार्य वातावरण उपलब्ध कराने के लिए पुरुष भी घरेलू ज़िम्मेदारियों को महिलाओं के साथ मिलकर साझा करें। जिन परिवारों में लिंग के आधार पर भेदभाव कम है (जैसेः मां कार्यस्थल पर नौकरी के लिए जाती हैं और पिता घरेलू ज़िम्मेदारियां संभालते हैं), ऐसे परिवारों के बच्चे अधिक आत्मबल से परिपूर्ण होते हैं। जैसे कि एक बार प्रधानमंत्री ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था कि हमें अपने लड़कों के व्यवहार में व्यापक स्तर पर बदलाव लाने के ज़रूरत है ताकि वे महिलाओं का सम्मान करना सीख सकें। युवा पीढ़ी के पुरुषों को अपने जीवनसाथी के करियर में अहम योगदान देना चाहिए। हमें अपने लड़कों को जीवन में अपने व्यक्तित्व को सौम्य एव सह्रदय बनाने की शिक्षा देनी चाहिए। उन्हें खाना बनाना, कपड़े धोना, बच्चों और बुज़ुर्गों की सेवा करना और उनकी ज़रूरतों को पूरा करना आदि कार्य सिखाने चाहिए ताकि वे भी ज़रूरत पड़ने पर महिलाओं के समान इन पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को अपना कर्तव्य समझकर निभा सकें। हमें अपने लड़कों को संतुलित परिवार एवं करियर के मूल्यों को सिखाना चाहिए। हमें उनको यह समझाने की ज़रूरत है कि शरीर की संपूर्ण रचना और शारीरिक दृष्टि से महिलाओं के भी समान सपने और महत्वाकांक्षाएं हैं। लड़कियों को कठोर एवं मज़बूत होने की प्रेरणा देने के अलावा, हमें लड़कों के प्रति अपने रवैये को बदलने की भी आवश्यकता है।

पिछले कुछ समय के दौरान, उच्च श्रेणी की नौकरियों एवं वित्तीय सशक्तता में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में व्यापक सुधार दर्ज किया गया है, इसके बावजूद, हमें पेशवर महिलाओं के प्रति अपने अचेतन पूर्वाग्रहों को बदलने की ज़रूरत है। महिलाओं में व्यावहारिक परिवर्तन लाने की भी ज़रूरत है। महिलाओं को ख़ुद के भीतर मौजूद अपार संभावनाओं को लेकर आश्वस्त एवं गौरवान्वित होना चाहिए। महिलाओं के लिए समानता का मतलब केवल समान वेतन नहीं, बल्कि समान अवसर, करियर चुनने की समान स्वतंत्रता और विभिन भूमिकाओं को अदा करना होना चाहिए।

महिला दिवस पर, पूर्वाग्रह एवं असमानताओं को चुनौती और महिलाओं की उपलब्धियों की यात्रा के जश्न द्वारा “बदलाव के लिए सशक्त बनने” की दिशा में महिलाओं को समाधान निकालना चाहिए। आओ, सभी बाधाओं पर काबू पाने के बाद, हम करियर के क्षेत्र में महिलाओं की जीत को सुदृढ़ बनाएं एवं उसका समर्थन करें। महिलाओं के लिए नई रोज़गार के अवसरों का सृजन करें, बदलाव के लिए अत्यंत सशक्त एवं खुले विचारों वाले बनें। (PIB)