src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> वीमेन स्क्रीन : लड़कियां: जन्‍म के साथ भी जन्म के बाद भी भेदभाव का सिलसिला जारी

Thursday, December 31, 2020

लड़कियां: जन्‍म के साथ भी जन्म के बाद भी भेदभाव का सिलसिला जारी

 23-जनवरी-2017 19:35 IST

विशेष लेख//राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाना//बरनाली दास

Pexels Photo by Anete Lusina
देश कल राष्‍ट्रीय बालिका दिवस मनाने जा रहा है। प्रत्‍येक वर्ष 24 जनवरी को हम बालिका दिवस मनाते हैं, समाज में बालिकाओं के लिए समान स्थिति और स्‍थान स्‍वीकार करते है और एक साथ मिलकर हमारे समाज में बालिकाओं के साथ हो रहे भेदभाव और असमानता के विरूद्ध संघर्ष का संकल्‍प लेते हैं।

लेकिन यह बहुत दुर्भाग्‍यपूर्ण और अत्‍यधिक चिंता का विषय है कि देश में वर्ष 1961 से ही बाल लिंग अनुपात तेजी से गिरता रहा है। हम वर्ष 2017 में है और 21वीं शताब्‍दी के दूसरे दशक को पूरा करने जा रहे है, लेकिन हम विचारधारा को बदलने में सफल नहीं हुए है।

एक शिक्षित, आर्थिक रूप से स्‍वतंत्र महिला और कार्य स्‍थल तथा घर में सम्‍मानित महिला के लिए यह वास्‍तविकता जानकर कठिनाई होती है कि भारतीय समाज में सभी वर्गों में बड़ी संख्‍या में लोग बेटा होने की इच्‍छा रखते हैं और नहीं चाहते कि उन्‍हें बेटी हो। ऐसे लोग भ्रूण हत्‍या की सीमा तक जाते हैं।

विभिन्‍न क्षेत्रों में कुछ लड़कियों द्वारा ऊंची उपलब्धि हासिल करने के बावजूद भारत में जन्‍म लेने वाली अधिकतर लड़कियों के लिए यह कठोर वास्‍तविकता है कि लड़कियां शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य जैसे बुनियादी अधिकारों और बाल विवाह से सुरक्षा के अधिकार से वंचित हैं। परिणामस्‍वरूप, आर्थिक रूप से सशक्‍त नहीं है, प्रताड़ित और हिंसा की शिकार हैं। जनगणना आंकड़ों के अनुसार बाल लिंग अनुपात (सीएसआर) 1991 के 945 से गिरकर 2001 में 927 हो गया और इसमें फिर 2011 में गिरावट आई और बाल लिंग अनुपात 918 रह गया। यह महिलाओं के कमजोर होने का प्रमुख सूचक है, क्‍योंकि यह दिखाता है कि लिंग आधारित चयन के माध्‍यम से जन्‍म से पहले भी लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है और जन्‍म के बाद भी भेदभाव का सिलसिला जारी रहता है।

लड़कियों के साथ व्‍यापक स्‍तर पर सामाजिक भेदभाव तथा नैदानिक उपायों की उपलब्‍धता और दुरूपयोग दोनों के कारण बाल लिंग अनुपात (सीएसआर) में कमी आई है। इस वास्‍तविकता से निपटना था और परिणामस्‍वरूप बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) योजना लागू की गई है। यह योजना विभिन्‍न क्षेत्रों में पूरे देश में विचार विमर्श के बाद तैयार की गई है। 

22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत में प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी द्वारा लॉन्‍च की गई बीबीबीपी योजना का प्राथमिक लक्ष्‍य बाल लिंग अनुपात में सुधार करना तथा महिला सशक्तिकरण से जुड़े अन्‍य विषयों का समाधान करना है। दो वर्ष पुरानी यह योजना तीन मंत्रालयों-महिला तथा बाल विकास मंत्रालय, स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय तथा मानव संसाधान तथा विकास मंत्रालय द्वारा संचालित है। महिला तथा बाल विकास मंत्रालय नोडल मंत्रालय है। यह योजना अनूठी है और मनोदशा रिवाजों तथा भारतीय समाज में पितृसत्‍ता की मान्‍यताओं को चुनौती देती है।

Pexels-Photo by Vladi karpovich
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना को लागू करने के लिए बहुक्षेत्रीय रणनीति अपनाई गई है। इसमें लोगों की सोच को बदलने के लिए राष्‍ट्रव्‍यापी अभियान चलाना स्‍थानीय नवाचारी उपायों से समुदाय तक पहंचने पर बल देना, केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय द्वारा गर्भ पूर्व तथा जन्‍म पूर्व नैदानिक तकनीकी अधिनियम लागू करना और स्‍कूलों में लड़कियों के अनुकूल संरचना बनाकर बालिका शिक्षा को प्रोत्‍साहित करना तथा शिक्षा के अधिकार को कारगर ढंग से लागू करना शामिल है। शुरू में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना देश के सौ जिलों में लागू की गई। पिछले एक वर्ष में रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, डिजिटल मीडिया तथा सोशल मीडिया सहित विभिन्‍न मीडिया में कार्यक्रम को लेकर अभियान चलाने से जागरूकता बढ़ी है। इस अभियान के तहत सामूहिक सामुदायिक कार्य और उत्‍सवों का आयोजन किया गया जैसे लड़की का जन्‍मदिन मनाना, साधारण तरीके से विवाह को बढ़ावा देना, महिलाओं के संपत्ति के अधिकार को समर्थन देना, सामाजिक तौर-तरीकों को चुनौती देने वाले स्‍थानीय चैम्पियनों को पुरस्‍कृत करना और युवाओं तथा लड़कों को शामिल‍ किया गया।

विभिन्‍न स्‍तरों पर ग्राम पंचायतों के माध्‍यम से लोगों से संवाद किया गया। बातचीत में प्रत्‍यायित सामाजिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता (आशा), आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (एडब्‍ल्‍यूडब्‍ल्‍यू) ऑक्‍सीलियरी नर्सिंग मिडवाइफ (एएनएम) तथा स्‍वयं सहायता समूह के सदस्‍यों, निर्वाचित प्रतिनिधियों, धार्मिक नेताओें और समुदाय के नेताओं को शामिल किया गया।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान को व्‍यापक बनाने के लिए, विशेषकर युवाओं में व्‍यापकता के लिए सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्मों का भी इस्‍तेमाल किया गया और  जन साधारण में बालिका के महत्‍व को लेकर सार्थक संदेश दिेये गये।

बे‍टी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के क्रियान्‍वयन के दूसरे वर्ष में गर्भ पूर्व तथा जन्‍म पूर्व नैदानिक तकनीकी अधिनियम को कठोरता से लागू करने पर ध्‍यान दिया जा रहा है और  मानव संसाधन विकास मंत्रालय लड़कियों की शिक्षा पर विशेष रूप से फोकस कर रहा है। गर्भावस्‍था के पंजीकरण, संस्‍थागत डिलीवरी तथा जन्‍म पंजीकरण जैसे उपायों पर भी बल दिया जा रहा है।

अभी देश के 161 जिलों में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना चलाई जा रही है। सौ जिलों से मिली प्रारंभिक रिपोर्ट संतोषपद्र है। यह संकेत मिलता है कि अप्रैल-मार्च 2014-15 तथा 2015-16 के बीच 58 बीबीबीपी जिलों में बाल लिंग अनुपात को लेकर समझदारी बढ़ी। 69 जिलों में त्रैमासिक पंजीकरण में बढ़ोतरी हुई और पिछले वर्ष की कुल डिलीवरी की तुलना में 80 जिलों में संस्‍थागत डिलीवरी में सुधार हुआ। हरियाणा में दिसम्‍बर, 2016 में दो दशकों में पहली बार जन्‍म पर लिंग अनुपात 900 पर पहुंचा।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के विभिन्‍न हितधारकों को सतत रूप से सक्रिय बनाए रखने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा सिविल सोसाइटी, अंतर्राष्‍ट्रीय संगठनों और औद्योगिक संघों को भागीदार बनाया गया। इससे नागरिक समाज के संगठनों को अपने कार्यों को बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना से जोड़ने के लिए प्रेरणा मिली।

भारत में बालिका के भविष्‍य के लिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना अत्‍याधिक महत्‍वपूर्ण और सफल योजना है। पहले वर्ष की सफलता से दिखता है कि देश में विपरीत बाल लिंग अनुपात को समाप्‍त करना सभी के सहयोग से संभव है।

* लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं और अभी एसओएस चिल्‍ड्रर्न विलिजेज ऑफ इंडिया में कम्‍युनिकेशन प्रमुख हैं। वह महिला और बाल विकास मंत्रालय की बीबीबीपी की कार्यक्रम प्रबंधन ईकाई के सहयोग को स्‍वीकार करती हैं।

*****वीके/एजी/जीआरएस -06

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