रोकथाम से जुड़ी स्वास्थ्य सेवा की एक नई पहल
स्वास्थ्य:विशेष लेख
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से हाल ही में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरूआत की गई है, जिसके माध्यम से अधिकतम 18 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के एक पैकेज का प्रावधान किया गया है। यह पहल राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का एक हिस्सा है, जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री पृथ्वीराज चव्हाण की उपस्थिति में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा महाराष्ट्र के ठाणे जिले के जनजातीय बहुल ब्लॉक पालघर में 06 फरवरी को शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम का विस्तार चरणबद्ध तरीके से देश के सभी जिलों तक किया जाएगा।
शीघ्र पहचान; शीघ्र निदान
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम को बाल स्वास्थ्य परीक्षण और शीघ्र निदान सेवा के रूप में भी जाना जाता है, जिसका लक्ष्य बच्चों की मुख्य बीमारियों का शीघ्र पता लगाना और उसका निदान करना है। इन बीमारियों में जन्मजात विकृतियों, बाल रोग, कमियों के लक्षणों और विकलांगताओं सहित विकास संबंधी देरी शामिल हैं। स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अधीन बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण एक जाना-माना कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का विस्तार करके इसमें जन्म से लेकर 18 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों को शामिल किया जा रहा है। इन सुविधाओं का लक्ष्य सरकारी और सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों में पहली कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक में पंजीकृत बच्चों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी झुग्गी बस्तियों के जन्म से लेकर छह वर्ष की उम्र के सभी बच्चों को शामिल करना है। शीघ्र परीक्षण और शीघ्र निदान के लिए 30 सामान्य बीमारियों/स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों की पहचान की गई है।जन्मजात विकृति
विश्वभर में प्रतिवर्ष लगभग 79 लाख ऐसे बच्चों का जन्म होता है, जो जन्म के समय गंभीर आनुवंशिक अथवा आंशिक तौर पर आनुवंशिक विकृतियों से पीडि़त होते हैं। ऐसे बच्चे जन्म लेने वाले कुल बच्चों का छह प्रतिशत हैं। भारत में प्रतिवर्ष 17 लाख ऐसे बच्चे जन्म लेते हैं, जो जन्मजात विकृतियों का शिकार होते हैं। यदि उनका विशेषतौर पर और समय पर निदान नहीं हो और इसके बावजूद भी वे बच जाते हैं, तो ये बीमारियां उनके लिए जीवन पर्यन्त मानसिक, शारीरिक, श्रवण संबंधी अथवा दृष्टि संबंधी विकलांगता का कारण हो सकती हैं।
पोषक तत्वों की कमियां
पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग 70 प्रतिशत बच्चों में लौह तत्व की कमी के कारण रक्ताल्पता पाई गई है। इस संदर्भ में पिछले दशक की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग आधे बच्चे (48 प्रतिशत) कुपोषण का शिकार पाए जाते हैं। स्कूल से पहले के वर्षों के दौरान बच्चे रक्ताल्पता, कुपोषण और विकासात्मक विकलांगताओं के प्रतिकूल प्रभावों का निरंतर सामना करते हैं, जो अंतत: स्कूल में उनके निष्पादन को भी प्रभावित करता है।
बीमारियां
विभिन्न सर्वेक्षणों के द्वारा इस बात का पता चला है कि भारत के स्कूली बच्चों में से 50 से 60 प्रतिशत बच्चे दांतों से संबंधित बीमारियों से पीडि़त होते हैं। स्कूली बच्चों में पांच वर्ष से लेकर नौ वर्षों के उम्र समूह में लगभग प्रति हजार एक दशमलव पांच बच्चे रूमाटिक हृदय रोग से पीडि़त होते हैं। ऐसे बच्चों में 4.75 प्रतिशत अस्थमा जैसी बीमारियां पाई जाती है।
विकासात्मक विलंब
वैश्विक तौर पर गरीबी, खराब स्वास्थ्य, कुपोषण और शुरूआती देखरेख की कमी के कारण पांच वर्ष तक के लगभग 20 करोड़ बच्चे अपनी विकासात्मक क्षमता को प्राप्त नहीं कर पाते है। बचपन में शुरूआती आरंभिक देखरेख की कमी होना और पूर्णत: गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या का इस्तेमाल पांच वर्ष से कम उम्र में अल्प विकास के संकेतकों के रूप में किया जा सकता है। ये दोनों संकेतक आपस में संबंधित है,जिनके परिणाम स्वरूप बच्चों का शैक्षिक निष्पादन और विकासात्मक क्षमता प्रभावित होती है।
जन्मजात विकृतियां
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· न्यूरल ट्यूब विकृति
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· डाउंस सिंड्रोंम
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· क्लेफ्ट लीप और पैलेट/क्लेफ्ट पैलेट मात्र
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· टेलिप्स (क्लब फूट)
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· हिप में विकास संबंधी कमियां
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· जन्मजात मोतियाबिंद
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· जन्मजात श्रवणबाधा
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· जन्मजात हृदय रोग
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· रेटिनोपेथी पूर्व परिपक्वता
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पोषक तत्वों की कमियां
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· रक्ताल्पता विशेषकर गंभीर रक्ताल्पता
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· विटामिन ए की कमी
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· विटामिन डी की कमी
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· गंभीर कुपोषण
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· घेघा रोग
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बचपन की बीमारियां
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· चर्म रोग
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· ओटाइटिस मीडिया
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· रूमाटिक हृदय रोग
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· रिएक्टिव एयरवे रोग
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· दंत क्षय
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· आपेक्षी विकार
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विकासात्मक विलंब और नि:शक्तता
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· दृष्टि क्षति
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· श्रवण क्षति
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· तांत्रिका मोटर क्षति
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· संचालन यंत्र विलंब
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· संज्ञानात्मक विलंब
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· भाषा विलंब
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· व्यवहार विकार
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· अध्ययन विकार
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· ध्यान विलंब अतिसक्रियता विकार
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· जन्म जात हाईपोथाईरोडिज्म, सिकल सेल एनिमिया, बीटा थेलेसिमिया (वैकल्पिक)
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समुदाय आधारित नवजात शिशु जांच
मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता(आशा) नवजात शिशु के जन्म के दौरान घरों और संस्थात्मक दौरे के दौरान शिशुओ की जांच घर पर और 6 हफ्ते की सीमा तक की जाती है। आशा को जन्मजात विकारों को दूर करने के लिए आसान उपकरणों से प्रशिक्षित किया जाता है। आशा को जन्मजात विकारों की पहचान करने के लिए एक टूल-किट दी जाती है जिससे वे बीमारियों की पहचान आसानी से कर सकती हैं।
आंगनवाड़ी केन्द्रों और विद्यालयों में जांच 6 सप्ताह से लेकर 6 वर्ष तक के आयु समूह के बच्चों की जांच आंगनवाड़ी केन्द्रों में निर्धारित सचल स्वास्थ्य दलों द्वारा की जाती है। 6 से 18 वर्ष के बच्चों की जांच सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में की जाती है। आंगनवाड़ी केन्द्रों में बच्चों की जांच वर्ष में कम से कम दो बार की जाती है और विद्यालय जाने वाले बच्चों की जांच शुरूआती स्तर पर वर्ष में एक बार की जाती है।गतिविधियों का केन्द्र
इस कार्यक्रम के लिए खंड गतिविधियों का केन्द्र होता है। कम से कम तीन निर्धारित सचल स्वास्थ्य दल प्रत्येक खंड में बच्चों की जांच करने के लिए सुनिश्चित किये गये हैं। खंडों की न्यायिक सीमा के अंदर आने वाले गांवों को तीन दलों में वितरित किया जाता है। दलों की संख्या आंगनवाड़ी केन्द्रों की संख्या, केन्द्र तक पहुंचने में आने वाली दिक्कतों और विद्यालयों में बच्चों की संख्या पर निर्भर करता है। सचल स्वास्थ्य दल में चार सदस्य – दो चिकित्सक (आयुष) एक पुरूष और एक महिला, एक नर्स और फार्मेसिस्ट सम्मलित होते हैं। खंड कार्यक्रम प्रबंधक विद्यालयों, आंगनवाड़ी केन्द्रों और स्वास्थ्य अधिकारी से परामर्श के बाद तीनों दलों के कार्यक्रमों को निर्धारित करता है। खंड स्वास्थ्य दलों द्वारा दौरे का पूरा ब्यौरा रखा जाता है।जिला स्तर पर प्रारंभिक मध्यवर्ती केन्द्र
जिला अस्पताल में प्रारंभिक मध्यवर्ती केन्द्र स्थापित किया जाता है। इस केन्द्र का उद्देश्य स्वास्थ्य जांच के दौरान ऐसे बच्चे जिनमें स्वास्थ्य संबंधी कमियां पाई गई हो को, संदर्भ सहायता प्रदान करना है। बाल रोग विशेषज्ञ, स्वास्थ्य अधिकारी, नर्स, पेरामेडिक, सेवा प्रदान करने के लिए दल में सम्मिलित किये जाते हैं। केन्द्र में श्रवण, तंत्रिका संबंधी परीक्षण और व्यवहार संबंधी जांच के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है।
प्रशिक्षण और प्रबंधन बाल स्वास्थ्य जांच केन्द्रों और प्रारंभिक हस्तक्षेप सेवाओं में सम्मिलित कर्मियों को ध्यानपूर्वक प्रशिक्षण पद्धति से प्रशिक्षित किया जाता है। तकनीकी सहायता संस्थाओं और सहभागी केन्द्रों के सहयोग से मानक प्रशिक्षण पद्धति का विकास किया जाता है। महाराष्ट्र में केईएम अस्पताल, मुम्बई और पुणे तथा अलीयावर जंग राष्ट्रीय श्रवण बाधता संस्थान, मुंबई प्रशिक्षण देने के लिए चुने गए है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस कार्यक्रम की प्रभावी योजना और प्रभावी क्रियान्वयन के लिए एक दिशा-निर्देश बनाए है। ये दिशा-निर्देश भारत में बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान और प्रबंधन की प्रक्रिया का विवरण देते है।कार्यक्रम का प्रभाव
प्रारंभिक मध्यवर्ती सेवा की यह नई शुरूआत लंबे समय में स्वास्थ्य सेवा ख़र्चों में कटौती कर आर्थिक रूप से लाभ प्रदान करेंगी। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि ''रोकथाम'' और समर्थित स्वास्थ्य देखभाल राष्ट्रीय मानव संसाधन को प्रभावित कर बीमारियों पर होने वाले खर्च और सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च को भी कम कर सकेंगी। पूर्ण रूप से क्रियान्वित होने पर राष्ट्रीय बाल-स्वास्थ्य कार्यक्रम से देशभर के 27 करोड़ बच्चों को लाभ प्राप्त हो सकेगा। (पसूका) {PIB}
*पीआईबी मुम्बई से साभार
वि.कासोटिया/सुधीर/जुयाल/सुनील/तारा/लक्ष्मी/सोनिका–38
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