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Tuesday, August 13, 2024

26 वर्षीय अफ़गान पत्रकार लीना की कहानी देती है प्रेरणा

 खतरों भरे माहौल में भी चलाती है महिला रेडियो स्टेशन  

फोटो साभार: यूएन विमेन/ सईद हबीब बिडेल  Photo credit: UN Women/ Sayed Habib Bidell
अंतर्राष्ट्रीय फीचर डेस्क//चंडीगढ़//12 अगस्त 2024:(वीमेन स्क्रीन)::

सन 1985 में एक हिंदी फिल्म आई थी-मेरी जंग-जिसमें एक गीत था--ज़िंदगी हर कदम इक नई जंग है। इस गीत के इस मुखड़े में जो सच्चाई छिपी है वह सच्चाई ज़िन्दगी के हर क्षेत्र में एक हकीकत की तरह नज़र आती महसूस है। उस फिल्म की दुनिया बेशक भारत वर्ष की ज़मीन थी लेकिन भारत से बाहर भी यह जंग सचमुच ज़रूरी होती चली जा रही है। घर हो या बाहर, गली हो या बाजार, कॉलेज हो या अस्पताल..हर जगह हर कदम इक नई जंग है। जंग का मैदान अपना देश हो या विदेश लड़नी ही पड़ती है। आज हम बात कर रहे हैं अफगानिस्तान की। 


कदम कदम पर खतरों और सख्तियों के बावजूद
अफ़गानिस्तान में महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना बंद नहीं किया है, और न ही हमें करना चाहिए। अफ़गानिस्तान में तालिबान के कब्जे के तीन साल बाद, यूएन महिलाएँ अफ़गान महिलाओं और लड़कियों के साथ काम करना जारी रखती हैं जो अपनी आज़ादी और अधिकारों के लिए लगातार अनथक संघर्ष कर रही हैं।

पश्चिमी अफगानिस्तान में फराह दरिया के किनारे एक पश्तो इलाका है जो बहुत महत्व का भी है। इसकी सीमा ईरान से लगती है। इसी ख़ास शहर फराह की 26 वर्षीय अफ़गान पत्रकार लीना सचमुच बहुत बहादुर है। उसने खतरों के संसार को नज़दीक से देखा है। वह बताती है-"मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई की थी और एक पत्रकार के रूप में सात साल तक लगातार काम भी किया। यह सब आसान नहीं था लेकिन मैंने इसे जारी रखना ही उचित समझा। इस संकल्प के बावजूद जब यह मुल्क तालिबान के कब्जे में आ गया तो मैंने अपने काम से छुट्टी ले ली।  शायद मुझे डर लग रहा था।"

हालांकि लीना को कभी भी सीधे तौर पर धमकियों का सामना नहीं करना पड़ा था लेकिन 15 अगस्त 2021 को तालिबान के अफ़गानिस्तान पर कब्ज़ा करने और "वास्तविक अधिकारी" (DFA-The Taliban (referred to as the de facto authorities) बनने के बाद से कई अन्य महिलाओं को धमकियों का सामना करना पड़ा। 

इससे नज़र आने लगा था कि हालात कितने भयावह होने लगे हैं। स्थिति लैंगिक समानता पर दशकों की प्रगति तालिबान द्वारा पेश किए गए 70 से अधिक आदेशों, निर्देशों और बयानों के ढेर से मिट गई। इसमें देर नहीं लगी। प्रगति अतीत की बात होती चली गई। गौरतलब है कि तालिबान के बयान और नीतियां महिलाओं और लड़कियों के जीवन के लगभग हर पहलू में उनके अधिकारों को प्रतिबंधित करते हैं। 

इसके बावजूद अफगानिस्तान में कहीं न कहीं  महिला संकल्पों ने अपनी मज़बूती का अहसास कराया। इस पोस्ट के साथ जो यह छवि आप देख रहे हैं यह एक महिला संचालित रेडियो स्टेशन के स्टूडियो के अंदर क्लिक की गई है। यह रेडियो चेतने जगाता रहता है। 

यह रेडियो स्टेशन तमाम सख्तियों और खतरों के बावजूद अफ़गानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों को अधिकारों के बारे में शिक्षा और जागरूकता ला रहा है। क्या आपको यह तस्वीर और यह सच्चा ब्यौरा  देता। यदि यह महिलाएं कर सकती हैं तो आप क्यूं नहीं? खुद के मन भी टटोलिये और अपनी सहेलियों से भी पूछिए। जो आपको नहीं जानती लेकिन आपके आसपास कुछ न कुछ करते हुए सक्रिय रहती हैं उनसे भी पूछिए। 

विवरण और फोटो यूएन विमेन से साभार 

Wednesday, July 3, 2024

म्याँमार में सैन्य तख़्तापलट से महिलाएं भी उदास और निराश

Tuesday 2 जुलाई 2024 मानवाधिकार

लैंगिक समानता हासिल करने के प्रयासों को लगा है एक गहरा झटका

   © UNICEF/Minzayar Oo पूर्वी म्याँमार:एक गाँव में परिवार एक स्वच्छता जागरूकता सत्र में हिस्सा लेने के लिए जाता हुआ 

म्यांमार:2 जुलाई 2024: (संयुक्त राष्ट्र//वीमेन स्क्रीन डेस्क)::

गरीबी, असमानता, शोषण, हिंसा और भेदभाव सभी महिलाओं को एक्स प्रभावित करते हैं चाहे वे किसी भी जगह क्यूं न हों। संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जारी महिलाओं से सबंधित यह रिपोर्ट बता रही है म्यांमार की हालत जहां सैन्य तख्त पलटे महिला समानता के सभी प्रयासों को गहरा झटका लगा है। वहां की महिलाओं में निराशा है, उदासी है और उनके दिलो-दिमाग में एक भय है। इसे देखिए-पढ़िए और अपने विचारों से अवगत करवाइए। हो सके तो आपने आसपास भी नज़र डालिए। पैनी दृष्टी से देखिए कि कैसी है आपके आसपास महिलाओं की हालत? आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी ही। -सम्पादक 

म्याँमार में सैन्य तख़्तापलट, लैंगिक समानता हासिल करने के प्रयासों को एक गहरा झटका साबित हुआ है, जिससे महिलाओं, लड़कियों और एलजीबीटी समुदाय के लिए भेदभाव, हिंसा व शोषण का शिकार होने का जोखिम बढ़ा है. म्याँमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर विशेष रैपोर्टेयर की नई रिपोर्ट में यह बात कही गई है.

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ टॉम एंड्रयूज़ ने मंगलवार को जारी अपनी रिपोर्ट, “Courage amid Crisis: Gendered impacts of the coup and the pursuit of gender equality in Myanmar”, में बताया है कि सैन्य शासन के दौरान मानवाधिकार उल्लंघन के ऐसे मामले सामने आए, जिनका महिलाओं, लड़कियों व एलजीबीटी समुदायों पर भयावह असर हुआ है.

रिपोर्ट में महिलाओं, लड़कियों व एलजीबीटी व्यक्तियों के आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकारों के लिए उपजे ख़तरों के प्रति सचेत किया गया है. उनकी आर्थिक स्वतंत्रता का पतन हुआ है, शिक्षा व स्वास्थ्य देखभाल के लिए जगह सिकुड़ी है और लम्बे समय तक विस्थापित रहने का असर हुआ है.

“देश भर में शहरों, गाँवों और विस्थापन केन्द्रों में महिलाएँ अपने परिवार का बोझ निभा रही हैं. वे स्वयं भोजन नहीं कर रही हैं, ताकि उनके बच्चे खाना खा सकें. घरों में नई ज़िम्मेदारियाँ संभालते हुए हिंसक व उथलपुथल भरे माहौल में अपने परिवारों को सुरक्षित बनाए रखने में संघर्ष कर रही हैं.”

इस पृष्ठभूमि में, अनेक महिलाएँ व लड़कियाँ, तस्करी, यौन शोषण व कम उम्र में ही शादी कराए जाने का शिकार हो रही हैं.

रोहिंज्या महिलाओं व लड़कियों के लिए हालात विशेष रूप से ख़राब हैं, जिन्हें भेदभाव, सुरक्षा जोखिमों की कई परतों से जूझना पड़ता है. उनके नागरिकता अधिकारों और बुनियादी अधिकारों को ख़ारिज किया गया है, और उनके अपने समुदाय में भी भेदभावपूर्ण विश्वास व तौर-तरीक़े प्रचलित हैं.

'प्रेरणादायक स्रोत'

रिपोर्ट बताती है कि इन चुनौतियों के बावजूद, महिलाओं ने क्रांतिकारी मुहिम में अग्रिम मोर्चे पर अहम भूमिका निभाई है, ताकि समानता, न्याय और ग़ैर-भेदभाव की नींव पर भविष्य में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित की जा सके.

महिला व एलजीबीटी समुदाय के नेता अर्थपूर्ण राजनैतिक भागीदारी के लिए अथक रूप से प्रयास कर रहे हैं, और उन जवाबदेही उपायों को साहसिक ढंग से तैयार कर रहे हैं, जिनके ज़रिये यौन और लिंग-आधारित हिंसा के दोषियों को कटघरे में खड़ा किया जा सकेगा.

टॉम एंड्रयूज़ ने कहा कि इन महिलाओं व एलजीबीटी नेताओं के साहस, सहनसक्षमता और दृढ़ता, प्रेरणादायक है, जो एक क्रांति के भीतर क्रांति को आगे बढ़ा रहे हैं ताकि पितृसत्तात्मक वर्गीकरण को मिटाना और भावी पीढ़ियों के लिए लैंगिक समानता सुनिश्चित करना सम्भव हो सके.

अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह

टॉम एंड्रयूज़ ने आगाह किया है कि सैन्य नेतृत्व ने महिलाओं, लड़कियों व एलजीबीटी व्यक्तियों के साथ काम करने वाले संगठनों को ख़त्म करने के लिए एक समन्वित मुहिम चलाई है.

इन मुद्दों पर सक्रिय पैरोकारों को गिरफ़्तार कर लिए जाने, जेल में बन्दी बनाने के ख़तरों का निरन्तर सामना करना पड़ता है, जिसकी वजह से कुछ कार्यकर्ता अब निर्वासन में रहकर अपना काम कर रहे हैं.

“महिलाओं व एलजीबीटी नेताओं को निशाना बनाते हुए द्वेषपूर्ण मुहिम चलाते हुए हिंसक व यौन धमकियाँ दी जाती हैं.

इसके मद्देनज़र, उन्होंने अपने वक्तव्य में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि स्थानीय स्तर पर नागरिक समाज संगठनों के साथ मिलकर महिलाओं, लड़कियों और एलजीबीटी लोगों के लिए समर्थन बढ़ाया जाना होगा.

यह ज़रूरी है कि यौन व लिंग-आधारित हिंसा का शिकार बनने वाले लोगों की आवश्यकताओं को पूरा किया जाए, और उनके लिए सहायता धनराशि की व्यवस्था हो.

विशेष रैपोर्टेयर ने देशों की सरकारों और दानदाताओं से अपील की है कि शासन व्यवस्था के उभरते हुए ढाँचों, जातीय प्रतिरोध संगठनों और नागरिक समाज संगठनों के साथ मिलकर काम करना होगा, ताकि महिलाओं, लड़कियों व एलजीबीटी व्यक्तियों के विरुद्ध हुए अपराधों की जवाबदेही तय की जा सके. 

मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है. ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.

“यौन व लिंग-आधारित हिंसा का ख़तरा, एक ऐसी काली परछाई है, जोकि म्याँमार में महिलाओं, लड़कियों व एलजीबीटी व्यक्तियों का पीछा करती है. क्रूरता व अमानवीयकरण, व्यापक स्तर पर फैली हुई उस यौन हिंसा का चेहरा हैं, जिसे हिंसक टकराव वाले क्षेत्रों में सैन्य बलों द्वारा अंजाम दिया जाता है. जाँच चौकियों पर और हिरासत वाले स्थानों पर.”

Friday, May 17, 2024

लोकसभा चुनाव में होगा महिलाओं का महत्वपूर्ण रोल मनीषा कपूर

Saturday 17th May 2024 at 19:05 

लुधियाना महिला कांग्रेस संसद के लिए हुई सड़कों पर भी सक्रिय 

लुधियाना में भी महिला शक्ति खुल कर आई कांग्रेस के हक़ में 

लुधियाना: 17 मई 2024: (मीडिया लिंक//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::
इस बार लोकतंत्र के ज़रिए सत्ता पलटने की तैयारी ज़ोरों पर है। आर पार की इस लड़ाई में कांग्रेस ने एक बार फिर अपनी मौजूदगी का अहसास दिलाया है। कांग्रेस समर्थक महिला शक्ति घर बार छोड़ कर इस बड़े परिवार के लिए मैदान में हैं। सड़क हो या सर्कट हाऊस, शहर हो या गांव-ये महिलाएं हर जगह पार्टी के लिए सिर-धड़ की बाज़ी लगाने को सरगर्म हैं। महिलाएं जब ठान लेती हैं तो फिर नतीजे वही आते हैं जो वे चाहती हैं। 

स्थानीय आत्म नगर में महिला कांग्रेस की टीम को और सक्रिय कर के आगे बढ़ाते हुए सोनीका शर्मा को आत्म नगर से, वंदना रानी को हल्का साउथ से महिला कांग्रेस में जनरल सेक्रेटरी नियुक्त किया गया है। मनीषा कपूर ने कहा कि महिला कांग्रेस की प्रत्येक साथी लोक सभा निर्वाचन में राजा वड़िंग को ज़्यादा से ज़्यादा वोट दिलवाएगी क्योंकि महिला दूसरी महिला के घर रसोई तक जाकर वोट मांग सकती है। महिलाओं को ही महिलाओं के सभी दुःख दर्द मालुम होते हैं। 

प्रत्येक महिला बूथ लेवल तक अपना सशक्त रोल निभाएंगी सोनिका शर्मा तथा वंदना रानी ने कांग्रेस पार्टी के हाईकमान का धन्यवाद किया। इन्होने ज़ेह भी कहा कि है पार्टी लीडरशि की आशाओं पर पूरी उतरेंगे और सरे माहौल का रंग बदल कर दिखा देंगीं। इस बार कांग्रेस ही आएगी। 

इस अवसर पर राजेंद्र सिंह भानु प्रताप सिंह मोहिंद्र सिंह नीलम पनेसर इन्द्र पनेसर सविता कपूर, निम्मी रानी, सुमति रानी, नीलम शर्मा, शगुन कपूर,  बलजिंदर कौर आदि महिला कांग्रेस के साथी बड़ी संख्या में पहुंची महिला लीडर मनीषा कपूर ने कहा कि लुधियाना में महिला कांग्रेस पहले दिन से ही अलग अलग क्षेत्र में काम कर रही है। कांग्रेस के साथियों का धन्यवाद करती हूँ जिन्होंने कांग्रेस के प्रचार प्रसार में हमेशा हर क़दम पर सरगर्मी से साथ दिया। 

"कोई भी पीछे न छूटे: सभी के लिए समानता, स्वतंत्रता और न्याय"

Thursday16th May 2024 at 8:11 PM

पर संयुक्त राष्ट्र महिला का बयान का ख़ास ब्यान:

होमोफोबिया//बाइफोबिया// ट्रांसफोबिया के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस

Courtesy> International Trade Union Confederation

होमोफोबिया, बाइफोबिया और ट्रांसफोबिया के खिलाफ इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय दिवस का विषय 'किसी को भी पीछे न छोड़ें: समानता, स्वतंत्रता और सभी के लिए न्याय', समलैंगिकों द्वारा सामना किए जाने वाले लगातार भेदभाव, हिंसा और हाशिए पर रहने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। दुनिया भर में समलैंगिक, उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स और क्वीर (LGBTIQ+) व्यक्ति।

सतत विकास के लिए 2030 के एजेंडे में 'किसी को भी पीछे न छोड़ें' को सकारात्मक बदलाव के लिए हमारे सामूहिक कार्यों का एक परिभाषित सिद्धांत बनाए जाने के लगभग एक दशक बाद, हम स्वागत योग्य प्रगति देखते हैं। 2023 के अंत तक, 100 से अधिक देशों ने एलजीबीटीआईक्यू+ व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए सक्रिय कदम उठाए थे। संयुक्त राष्ट्र के 35 सदस्य देशों में कानूनी सुधारों ने समान-लिंग वाले जोड़ों के लिए पूर्ण विवाह समानता की शुरुआत की है। संयुक्त राष्ट्र के 43 सदस्य देशों में यौन रुझान, लिंग पहचान या यौन विशेषताओं के आधार पर भेदभाव निषिद्ध है।

हालाँकि, कई देशों में एलजीबीटीआईक्यू+ लोगों के ख़िलाफ़ उत्पीड़न चिंताजनक स्तर पर जारी है। कई देशों में समलैंगिकता विरोधी प्रवृत्तियाँ देखी जा रही हैं, साथ ही समलैंगिक संबंधों को स्पष्ट रूप से अपराधीकरण भी किया जा रहा है। ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों को प्रतिबंधित करने के लिए विधायी प्रयासों की लहर भी आई है, और 'प्रचार-विरोधी' कानूनों का उदय भी हुआ है। केवल 37 सदस्य राज्य औपचारिक रूप से उन व्यक्तियों को शरण देते हैं जिन्होंने यौन अभिविन्यास, लिंग पहचान, लिंग अभिव्यक्ति या यौन विशेषताओं के आधार पर भेदभाव का अनुभव किया है। इसके अलावा, संकटों में, एलजीबीटीआईक्यू+ समूहों सहित हाशिए पर रहने वाले समूहों को उन संकटों के सबसे बुरे प्रभावों का अनुभव होता है और फिर भी उन्हें नियमित रूप से बहुत जरूरी सहायता से वंचित कर दिया जाता है।

2024 इतिहास का सबसे बड़ा चुनावी वर्ष है-निर्णय निर्माताओं और सत्ता धारकों से जवाबदेही की मांग करने, दमनकारी प्रणालियों को खत्म करने, विधायी सुधारों और अधिकारों की रक्षा करने वाली समावेशी नीतियों को बढ़ावा देने, समावेशन, भागीदारी और नेतृत्व को बढ़ावा देने और संरक्षित करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में LGBTIQ+ व्यक्तियों को सभी के लिए समानता, स्वतंत्रता और न्याय प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग बताया गया है।

जैसा कि हम इस दिन को मनाते हैं, संयुक्त राष्ट्र महिला सभी हितधारकों से पारस्परिक गठबंधन को बढ़ावा देने और सभी के लिए समानता, न्याय और स्वतंत्रता को साकार करने के हमारे सामान्य लक्ष्य को पूरा करने में मदद करने के लिए अन्य महत्वपूर्ण आंदोलनों के साथ एकजुटता से काम करने का आग्रह करती है।

दिन के शीर्षक के संबंध में, संयुक्त राष्ट्र महिला विविध यौन विशेषताओं वाले व्यक्तियों की अंतर्निहित केंद्रीयता को रेखांकित करती है।

Wednesday, March 13, 2024

बहुत फायदेमंद हैं प्लास्टिक वाले चावल-पीजीआई से पता चली हकीकत

डा. पंकज मल्होत्रा ने ‘चावल किलेबंदी’ पर बताए महत्वपूर्ण रहस्य 

"महिलाओं और बच्चों के जीवन में एनीमिया" की चुनौती से लड़ने में कारगर है यह  


चंडीगढ़
: 22 फरवरी 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//महिला स्क्रीन डेस्क)::

पिछले कुछ अरसे से यह अफवाह ज़ोरों पर है कि चावलों में प्लास्टिक के बने नकली चावल मिला कर बाज़ार में बिकने लगे हैं जो मानव शरीर में जा कर बेहद नुक्सान करते हैं। पीजीआई  के एक खास आयोजन में पता चला कि वास्तविकता इस अफवाह के बिलकुल ही विपरीत है। जिन चावलों को प्लास्टिक मिले चावल कह कर बदनाम किजा जाता है वे चावल वास्तव में फोर्टीफाईड राईस हैं। किलेबंदी की तरह सुरक्षित चावल जो आपके शरीर को भी मज़बूती से किलेबंदी जैसा ही बना देते हैं। जी हां-राईस फोर्टीफिकेशन-की तकनीक बेहद लोकप्रिय होती जा रही है। जिसे आप चावलों के साथ  होने वाली स्वास्थ्य किलेबंदी भी कह सकते हैं आजकल के दौर में यह  सब एक महत्वपूर्ण अविष्कार की तरह सामने आया है।  

गौरतलब है कि यह चावल भी आज के दौर का एक विशेष सप्लीमेंट जैसा ही होता है। किलेबंदी जैसा चावल या फिर फोर्टीफाइड राइस का मतलब है, बहुत ही अच्छा पोषणयुक्त चावल। इस विशेष किस्म के चावल में आम चावल की तुलना में आयरन, विटामिन बी-12, फॉलिक एसिड की मात्रा बहुत अधिक होती है। इसके अलावा जिंक, विटामिन ए, विटामिन बी वाले फोर्टिफाइड राइस भी विशेष तौर पर तैयार किए जा सकते हैं। 

इस  Fortified rice को आम चावल में मिलाकर खाया जाता है। इसके फायदों से अनजान लोग इसकी हकीकत नहीं जानते इस लिए वे अफवाहों का शिकार हो जाते हैं। इसकी एक वजह यह भी कि Fortified rice देखने में बिल्कुल आम चावल जैसे ही लगते हैं। अंतर कर पाना नामुमकिन नहीं तो बेहद कठिन ज़रूर होता है। इनका स्वाद भी बेहतर होता है और रंग भी।  भारत के फूड सेफ्टी रेग्युलेटर FSSAI के मुताबिक Fortified rice खाने से भोजन में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है और स्वास्थ्य अच्छा रहता है.

अब सवाल उठता है कि फोर्टिफाइड राइस कैसे तैयार किया जाता है? तो जवाब यह है की इसे पूर्ण सुरक्षित ढंग से बनाया जाता है। फोर्टिफाइड चावलों को मिलों में बनाया जाता है. इस दौरान इनमें सूक्ष्म पोषक तत्वों, विटामिन और खनिजों की मात्रा को कृत्रिम तरीके से बढ़ाया जाता है. इसके लिए कोटिंग, डस्टिंग और एक्सट्रूजन (उत्सारण) जैसी तकनीक अमल में लाई जाती हैं. पहले सूखे चावल को पीसकर आटा बनाया जाता है. फिर उसमें सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाए जाते हैं. पानी के साथ इन्हें अच्छे से मिक्स किया जाता है. फिर मशीनों की मदद से सुखाकर इस मिक्स्चर को चावल का आकार दिया जाता है, जिसे फोर्टिफाइड राइस कर्नेल (FRK) कहा जाता है. तैयार होने के बाद इन्हें आम चावलों में मिला दिया जाता है. FSSAI के नियम कहते हैं कि इसे 1:100 के अनुपात में मिलाया जाता है, मतलब 1 किलो चावल में 10 ग्राम फोर्टिफाइड राइस मिलाए जाते हैं.    

20 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के सहयोग से चंडीगढ़ के स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान संस्थान में हेमटोलॉजी विभाग द्वारा तकनीकी सहायता इकाई के तहत ‘चावल किलेबंदी ’ पर एक सार्वजनिक व्याख्यान आयोजित किया गया था। 2024. 

डॉ. रीना दास, प्रो और हेड, हेमटोलॉजी विभाग, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ ने अतिथि और प्रतिभागियों का स्वागत किया. मुख्य अतिथि डॉ. अनीता खारब, संयुक्त निदेशक, खाद्य विभाग, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले, हरियाणा सरकार. गेस्ट ऑफ ऑनर डॉ. सुनीधि करोल, एनीमिया कार्यक्रम के तहत कार्यक्रम अधिकारी और आकांक्षात्मक जिले के लिए नोडल अधिकारी, हरियाणा सरकार. डॉ. सुनीधी ने महिलाओं और बच्चों के बीच एनीमिया के बढ़ते प्रसार और सुरक्षा कार्यक्रमों के तहत भारत सरकार द्वारा सभी कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला. डॉ. शरीयत यूनुस, यूनिट एंड प्रोग्राम ऑफिसर (स्वास्थ्य और पोषण) के प्रमुख, विश्व खाद्य कार्यक्रम ने भारत में चावल के किलेबंदी पर एक व्याख्यान दिया. 

उन्होंने उल्लेख किया कि केवल इस तरह की पोषणयुक्त किलेबंदी ही एनीमिया और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का मुकाबला करने का आसान और सुरक्षित तरीका उपलब्ध है। डॉ. रीना दास ने विस्तार से बताया कि यह अकादमिक सार्वजनिक व्याख्यान राइस फोर्टिफिकेशन पर उनकी पहली सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (SBCC) गतिविधि है जिसका उद्देश्य हमारी चिकित्सा बिरादरी को जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें सामुदायिक जागरूकता गतिविधियों में शामिल करना और संलग्न करना है. 

यह गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है जिसके साथ निपटने के लिए इसी अभियान के तहत एनीमिया हो जाने के बाद से कमजोर आबादी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी और एनीमिया से निपटने के लिए पहल की जाती है। उन्होंने हीमोग्लोबिनोपैथियों के मरीजों के बीच लोहे के गढ़ वाले  शक्तिशाली चावल की सुरक्षा पर भी चर्चा की। डब्ल्यूएफपी के वरिष्ठ कार्यक्रम एसोसिएट सुश्री प्रीप्सा सैनी ने भारत में गढ़ वाले चावल की गुठली और चावल की स्थिति–मिथकों और गलतफहमी की तैयारी के चरणों के महत्व पर एक प्रस्तुति दी।  

पीजीआईएमईआर से क्लिनिकल हेमेटोलॉजी और मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. पंकज मल्होत्रा ने प्रतिभागियों को बताया कि एनीमिया विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के बीच एक प्रमुख मुद्दा है. उन्होंने उल्लेख किया कि आपके हीमोग्लोबिन को नियमित रूप से जांचना और उचित चिकित्सा लेना आवश्यक है ताकि रुग्णता कम हो सके. 

कार्यक्रम का समापन विभाग और संस्थान की ओर से धन्यवाद के एक वोट द्वारा किया गया था जिसकी औपचारिकता संस्थान के आधार पर हेमटोलॉजी विभाग, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के सहायक प्रोफेसर  प्रवीण शर्मा ने निभाई। 

Thursday, March 7, 2024

दुष्कर्म की शिकायत दर्ज करवाने महिला को थाने न जाना पड़े

 7th March 2024 at 10:45 AM rkgm

*एल.एस. हरदेनिया ने महिला दिवस पर महिलाओं के हित में फिर जारी की विशेष अपील


भोपाल7 मार्च 2024: (मीडिया लिंक//वीमेन स्क्रीन डेस्क):: 

एक जो बेहद दुखद बात है कि महिलाओं को अभी तक पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकी। दुष्कर्म और बलात्कार जैसी जघन्य घटनाएं दुनिज़ा के दुसरे देशों में भी होने की खबरें आती रहती हैं लेकिन हमारा देश और समाज इसलिए भी महान गिना जाता है कि ज़हन हम शक्ति की पूजा अर्चना देवी के नौ रूपों को सामने रख कर करते हैं। हमारा अतीत, हमारा धर्म और हमारे  रीति रिवाज बताते हैं कि जब जब नारी का अपमान हुआ तब तब महाभारत जैसे हालात बनते रहे हैं। इस हकीकत के बावजूद नारी का अपमान लगातार जारी है। कही उसे जलाया  जा रहा है, कहीं उसकी बेरहमी से हत्या हो रही है और कहीं इसी तरह का कुछ और भी। इस तरह की घटनाओं को लेकर जानेमाने समाज सेवी और बहुत से मुद्दों पर बार बार  जागरूकता लाने के प्रयासों में तेज़ी लाते हुए जनाब एल एस हरदेनिया ने एक बार फिर से अपनी आवाज़ बुलंद की है। इस वृध्दा अवस्था में भी वह युवाओं को जगाने में जुटे हुए हैं। 

श्री हरदेनिया कहते हैं कि 8 मार्च सारी दुनिया में महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सभी देशों  में महिलाओं से सम्बन्धित समस्याओं पर चर्चा होती है। इस अवसर पर मैं दो समस्याओं पर चर्चा करना चाहूंगा। इन दोनों समस्याओं पर मैं पहले भी चर्चा कर चुका हूँ। वर्तमान  में यदि कोई महिला या बच्ची दुष्कर्म की शिकार होती है तो उसे शिकायत करने के लिए पुलिस थाने जाना पड़ता है। जो महिला या बच्ची दुष्कर्म की शिकार होती है तो वह मानसिक और शारीरिक रूप से इस स्थिति में नहीं होती है कि वह पुलिस थाने जा सके और अपनी शिकायत दर्ज करवा सके। इसके अतिरिक्त पुलिस थानों में प्रायः ऐसा वातावरण नहीं रहता है कि वह खुले रूप से अपनी शिकायत रख सके। इसलिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि दुष्कर्म से पीड़ित महिला या बच्ची को थाने न जाना पड़े और पुलिस अधिकारी स्वयं उसकी शिकायत दर्ज करने उसके निवास पर जायें। यदि 8 मार्च को इस तरह का फैसला होता है तो अत्यधिक महिलाओं के हित में होगा। इसलिए मैं आज फिर 8 मार्च को अपनी यह माँग दोहरा रहा हूँ। आशा है कि मेरी इस माँग को लोगों का समर्थन मिलेगा।

दूसरी जो समस्या है उसका सम्बन्ध अंधविश्वास से है। अंधविश्वास से भी बड़े पैमाने पर महिलाएँ ही पीड़ित होती हैं। यह देखा गया है कि तांत्रिक विशेषकर महिलाओं को ही टार्गेट करते हैं। अंधविश्वास सम्बंधी गतिविधियों को देश के अनेक राज्यों में प्रतिबंधित कर दिया गया है परंतु मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं हुआ है। यह भी देखा गया है कि आदिवासी अंधविश्वास से ज्यादा सताये जाते हैं। हमारे प्रदेश में आदिवासियों की संख्या दूसरे प्रदेशों से ज्यादा है इसलिए यहाँ यह कदम उठाना आवश्यक है।

दोनों मामलों में मेरा शासन से निवेदन है कि वे शीघ्र ही इस संबंध में आवश्यक कदम उठायें। आशा है मुख्यमंत्री समेत शासन में बैठे लोगों तक मेरी यह बात पहुंच रही होगी।              

*एल.एस. हरदेनिया राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के संयोजक हैं और समाज के लिए अभिशाप बने मुद्दों पर अक्सर  मीडिया में कुछ न कुछ प्रसारित करते रहते हैं। इसके साथ ही समाज के सक्रिय लोगों, बुद्धिजीवियों, लेखकों और पत्रकारों को बुला कर बहुत बार कुछ न कुछ विशेष आयोजन भी करते रहते हैं। इन आयोजनों के मकसद और रिपोर्ट भी वह मीडिया में लाते रहते हैं। उनका मोबाईल नंबर है: +91  9425301582 इस पोस्ट पर भी आपके विचार और टिप्पणियां आमंत्रित हैं। 

L.S. Herdenia is a journalist by profession and a well-known activist & fighter for the cause of

Wednesday, January 17, 2024

जीजाबाई-जिसने संघर्षों से जीती ज़िंदगी की हर जंग

 17 जनवरी 2024//महिलाएँ//भारत 

बाधाओं से लड़ती अकेली माँ का सहारा बनी यूएनडीपी परियोजना


महिला संसार के संघर्षों की एक और सच्ची कहानी 

संयुक्त राष्ट्र संघ:17 जनवरी 2024: (UNDP India//वीमेन स्क्रीन डेस्क)::

जीवन एक निरंतर संग्राम ही तो है। एक गीत भी बहुत लोकप्रिय हुआ था--ज़िंदगी हर कदम इक नई जंग है। वास्तव में हम सभी को जीवन में कदम कदम पर चुनौतियों का सामना करना ही पड़ता है। संघर्षों के इस तूफ़ान में मदद के हाथ भी उठते हैं। कभी सरकार की मदद तो कभी समाज की मदद। कोविद में भी बहुत से लोगों का जीवन कठिन हो गया था।  

कोविड-19 के दौरान सफ़ाई साथियों के लिए आरम्भ की गई, यूएनडीपी की उत्थान पहल, 2022 के बाद से लगभग साढ़े 11 हज़ार सफ़ाई साथियों को, सरकार की कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँचाने में सफल हुई है। इस कार्यक्रम से लाभ उठाने वाली एक महिला सफ़ाई कर्मी-जीजाबाई अशोक मकासरे की कहानी। 

54 वर्षीय जीजाबाई अशोक मकासरे, चार बच्चों की माँ और अकेली अभिभावक हैं. उनके पति भी सफ़ाई साथी थे. ''हम दोनों कचरा बीनने का काम करते थे।  हमने साथ मिलकर बहुत कठिन समय गुज़ारा. उनके निधन के बाद मेरी यही इच्छा है कि मैं बच्चों को उत्कृष्ट सुविधाएँ प्रदान कर सकूँ।"

जीजाबाई, महाराष्ट्र के जलना गाँव में अकाल पड़ने पर युवावस्था में ही अपने परिवार के साथ मुम्बई आ गई थीं। 

उनके पिता ने शहर आकर कूड़ा बीनने का काम शुरू किया, लेकिन गुज़ारा मुश्किल से होने के कारण जीजाबाई भी इसी काम में लग गईं।  

"मैं पढ़ी-लिखी नहीं थी, और हमें जीवित रहने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था, इसलिए मैंने भी अपने पिता के साथ काम पर जाना शुरू किया और फिर ख़ुद भी यही पेशा अपना लिया।”

जीजाबाई, स्वयं सहायता समूह की चर्चाओं में हिस्सा लेने लगीं और बाद में  नए सफ़ाई साथियों को कचरे से खाद बनाना सिखाने लगीं। 

चूँकि मैं इतने लम्बे समय से काम कर रही हूँ, नए सफ़ाई साथियों को कुछ हुनर ​​सिखा सकती हूँ. जैसेकि अपशिष्ट से मिट्टी किस तरह बनाई जाती है या फिर कामकाज के दौरान अपने-आप को ख़तरों से सुरक्षित कैसे रखा जाए।"

“मैं काफ़ी समय तक अस्वस्थ रही, काम छूट गया था और मेरे पास ज़्यादा बचत भी नहीं थी. उम्मीद है कि स्वास्थ्य कार्ड और बीमा योजना के कारण अब कभी मुझे दोबारा ऐसा बुरा वक़्त नहीं देखना पड़ेगा।”

जीजाबाई स्वयं सहायता समूह की चर्चाओं में भाग लेती हैं और अन्य सफ़ाई साथियों को कचरे से ख़ाद बनाना भी सिखाती हैं। 

जीजाबाई ने बताया कि काम के दौरान, किस तरह कई बार उन्हें आवारा कुत्तों ने काट लिया, या फिर काँच के टुकड़ों या अन्य चीज़ों पर पैर पड़ने से कई दुर्घटनाएँ घटीं। 

“यह आसान काम नहीं है. काम करते समय पता नहीं चलता कि अगले पल क्या होने वाला है. आप केवल इतना कर सकते हैं कि तैयार और सतर्क रहें।”

जीजाबाई को उत्थान के बारे में स्त्री मुक्ति संगठन से पता चला, जिसने मुम्बई में सफ़ाई साथियों के बीच जागरूकता का नेतृत्व किया है। 

उसने एक नया बैंक खाता खोला और उसे अनिवार्य दस्तावेज़ों के साथ जोड़ा। 

उन्होंने पैन व आधार कार्ड, तथा ई-श्रम के लिए नामांकन कराया और वो प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना में भी धनराशि जमा कर रही हैं। 

जीजाबाई का कहना है, “उत्थान सदस्यों की मदद से, मैंने सभी सामाजिक कल्याण योजनाओं का विकल्प चुना, ताकि हमारे बच्चे भी सीखकर आगे बढ़ें और ख़ुद की रक्षा करने में समर्थ हों।"