src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> वीमेन स्क्रीन : बहुत फायदेमंद हैं प्लास्टिक वाले चावल-पीजीआई से पता चली हकीकत

Wednesday, March 13, 2024

बहुत फायदेमंद हैं प्लास्टिक वाले चावल-पीजीआई से पता चली हकीकत

डा. पंकज मल्होत्रा ने ‘चावल किलेबंदी’ पर बताए महत्वपूर्ण रहस्य 

"महिलाओं और बच्चों के जीवन में एनीमिया" की चुनौती से लड़ने में कारगर है यह  


चंडीगढ़
: 22 फरवरी 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//महिला स्क्रीन डेस्क)::

पिछले कुछ अरसे से यह अफवाह ज़ोरों पर है कि चावलों में प्लास्टिक के बने नकली चावल मिला कर बाज़ार में बिकने लगे हैं जो मानव शरीर में जा कर बेहद नुक्सान करते हैं। पीजीआई  के एक खास आयोजन में पता चला कि वास्तविकता इस अफवाह के बिलकुल ही विपरीत है। जिन चावलों को प्लास्टिक मिले चावल कह कर बदनाम किजा जाता है वे चावल वास्तव में फोर्टीफाईड राईस हैं। किलेबंदी की तरह सुरक्षित चावल जो आपके शरीर को भी मज़बूती से किलेबंदी जैसा ही बना देते हैं। जी हां-राईस फोर्टीफिकेशन-की तकनीक बेहद लोकप्रिय होती जा रही है। जिसे आप चावलों के साथ  होने वाली स्वास्थ्य किलेबंदी भी कह सकते हैं आजकल के दौर में यह  सब एक महत्वपूर्ण अविष्कार की तरह सामने आया है।  

गौरतलब है कि यह चावल भी आज के दौर का एक विशेष सप्लीमेंट जैसा ही होता है। किलेबंदी जैसा चावल या फिर फोर्टीफाइड राइस का मतलब है, बहुत ही अच्छा पोषणयुक्त चावल। इस विशेष किस्म के चावल में आम चावल की तुलना में आयरन, विटामिन बी-12, फॉलिक एसिड की मात्रा बहुत अधिक होती है। इसके अलावा जिंक, विटामिन ए, विटामिन बी वाले फोर्टिफाइड राइस भी विशेष तौर पर तैयार किए जा सकते हैं। 

इस  Fortified rice को आम चावल में मिलाकर खाया जाता है। इसके फायदों से अनजान लोग इसकी हकीकत नहीं जानते इस लिए वे अफवाहों का शिकार हो जाते हैं। इसकी एक वजह यह भी कि Fortified rice देखने में बिल्कुल आम चावल जैसे ही लगते हैं। अंतर कर पाना नामुमकिन नहीं तो बेहद कठिन ज़रूर होता है। इनका स्वाद भी बेहतर होता है और रंग भी।  भारत के फूड सेफ्टी रेग्युलेटर FSSAI के मुताबिक Fortified rice खाने से भोजन में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है और स्वास्थ्य अच्छा रहता है.

अब सवाल उठता है कि फोर्टिफाइड राइस कैसे तैयार किया जाता है? तो जवाब यह है की इसे पूर्ण सुरक्षित ढंग से बनाया जाता है। फोर्टिफाइड चावलों को मिलों में बनाया जाता है. इस दौरान इनमें सूक्ष्म पोषक तत्वों, विटामिन और खनिजों की मात्रा को कृत्रिम तरीके से बढ़ाया जाता है. इसके लिए कोटिंग, डस्टिंग और एक्सट्रूजन (उत्सारण) जैसी तकनीक अमल में लाई जाती हैं. पहले सूखे चावल को पीसकर आटा बनाया जाता है. फिर उसमें सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाए जाते हैं. पानी के साथ इन्हें अच्छे से मिक्स किया जाता है. फिर मशीनों की मदद से सुखाकर इस मिक्स्चर को चावल का आकार दिया जाता है, जिसे फोर्टिफाइड राइस कर्नेल (FRK) कहा जाता है. तैयार होने के बाद इन्हें आम चावलों में मिला दिया जाता है. FSSAI के नियम कहते हैं कि इसे 1:100 के अनुपात में मिलाया जाता है, मतलब 1 किलो चावल में 10 ग्राम फोर्टिफाइड राइस मिलाए जाते हैं.    

20 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के सहयोग से चंडीगढ़ के स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान संस्थान में हेमटोलॉजी विभाग द्वारा तकनीकी सहायता इकाई के तहत ‘चावल किलेबंदी ’ पर एक सार्वजनिक व्याख्यान आयोजित किया गया था। 2024. 

डॉ. रीना दास, प्रो और हेड, हेमटोलॉजी विभाग, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ ने अतिथि और प्रतिभागियों का स्वागत किया. मुख्य अतिथि डॉ. अनीता खारब, संयुक्त निदेशक, खाद्य विभाग, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले, हरियाणा सरकार. गेस्ट ऑफ ऑनर डॉ. सुनीधि करोल, एनीमिया कार्यक्रम के तहत कार्यक्रम अधिकारी और आकांक्षात्मक जिले के लिए नोडल अधिकारी, हरियाणा सरकार. डॉ. सुनीधी ने महिलाओं और बच्चों के बीच एनीमिया के बढ़ते प्रसार और सुरक्षा कार्यक्रमों के तहत भारत सरकार द्वारा सभी कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला. डॉ. शरीयत यूनुस, यूनिट एंड प्रोग्राम ऑफिसर (स्वास्थ्य और पोषण) के प्रमुख, विश्व खाद्य कार्यक्रम ने भारत में चावल के किलेबंदी पर एक व्याख्यान दिया. 

उन्होंने उल्लेख किया कि केवल इस तरह की पोषणयुक्त किलेबंदी ही एनीमिया और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का मुकाबला करने का आसान और सुरक्षित तरीका उपलब्ध है। डॉ. रीना दास ने विस्तार से बताया कि यह अकादमिक सार्वजनिक व्याख्यान राइस फोर्टिफिकेशन पर उनकी पहली सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (SBCC) गतिविधि है जिसका उद्देश्य हमारी चिकित्सा बिरादरी को जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें सामुदायिक जागरूकता गतिविधियों में शामिल करना और संलग्न करना है. 

यह गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है जिसके साथ निपटने के लिए इसी अभियान के तहत एनीमिया हो जाने के बाद से कमजोर आबादी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी और एनीमिया से निपटने के लिए पहल की जाती है। उन्होंने हीमोग्लोबिनोपैथियों के मरीजों के बीच लोहे के गढ़ वाले  शक्तिशाली चावल की सुरक्षा पर भी चर्चा की। डब्ल्यूएफपी के वरिष्ठ कार्यक्रम एसोसिएट सुश्री प्रीप्सा सैनी ने भारत में गढ़ वाले चावल की गुठली और चावल की स्थिति–मिथकों और गलतफहमी की तैयारी के चरणों के महत्व पर एक प्रस्तुति दी।  

पीजीआईएमईआर से क्लिनिकल हेमेटोलॉजी और मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. पंकज मल्होत्रा ने प्रतिभागियों को बताया कि एनीमिया विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के बीच एक प्रमुख मुद्दा है. उन्होंने उल्लेख किया कि आपके हीमोग्लोबिन को नियमित रूप से जांचना और उचित चिकित्सा लेना आवश्यक है ताकि रुग्णता कम हो सके. 

कार्यक्रम का समापन विभाग और संस्थान की ओर से धन्यवाद के एक वोट द्वारा किया गया था जिसकी औपचारिकता संस्थान के आधार पर हेमटोलॉजी विभाग, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के सहायक प्रोफेसर  प्रवीण शर्मा ने निभाई। 

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