src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> वीमेन स्क्रीन : 26 वर्षीय अफ़गान पत्रकार लीना की कहानी देती है प्रेरणा

Tuesday, August 13, 2024

26 वर्षीय अफ़गान पत्रकार लीना की कहानी देती है प्रेरणा

 खतरों भरे माहौल में भी चलाती है महिला रेडियो स्टेशन  

फोटो साभार: यूएन विमेन/ सईद हबीब बिडेल  Photo credit: UN Women/ Sayed Habib Bidell
अंतर्राष्ट्रीय फीचर डेस्क//चंडीगढ़//12 अगस्त 2024:(वीमेन स्क्रीन)::

सन 1985 में एक हिंदी फिल्म आई थी-मेरी जंग-जिसमें एक गीत था--ज़िंदगी हर कदम इक नई जंग है। इस गीत के इस मुखड़े में जो सच्चाई छिपी है वह सच्चाई ज़िन्दगी के हर क्षेत्र में एक हकीकत की तरह नज़र आती महसूस है। उस फिल्म की दुनिया बेशक भारत वर्ष की ज़मीन थी लेकिन भारत से बाहर भी यह जंग सचमुच ज़रूरी होती चली जा रही है। घर हो या बाहर, गली हो या बाजार, कॉलेज हो या अस्पताल..हर जगह हर कदम इक नई जंग है। जंग का मैदान अपना देश हो या विदेश लड़नी ही पड़ती है। आज हम बात कर रहे हैं अफगानिस्तान की। 


कदम कदम पर खतरों और सख्तियों के बावजूद
अफ़गानिस्तान में महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना बंद नहीं किया है, और न ही हमें करना चाहिए। अफ़गानिस्तान में तालिबान के कब्जे के तीन साल बाद, यूएन महिलाएँ अफ़गान महिलाओं और लड़कियों के साथ काम करना जारी रखती हैं जो अपनी आज़ादी और अधिकारों के लिए लगातार अनथक संघर्ष कर रही हैं।

पश्चिमी अफगानिस्तान में फराह दरिया के किनारे एक पश्तो इलाका है जो बहुत महत्व का भी है। इसकी सीमा ईरान से लगती है। इसी ख़ास शहर फराह की 26 वर्षीय अफ़गान पत्रकार लीना सचमुच बहुत बहादुर है। उसने खतरों के संसार को नज़दीक से देखा है। वह बताती है-"मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई की थी और एक पत्रकार के रूप में सात साल तक लगातार काम भी किया। यह सब आसान नहीं था लेकिन मैंने इसे जारी रखना ही उचित समझा। इस संकल्प के बावजूद जब यह मुल्क तालिबान के कब्जे में आ गया तो मैंने अपने काम से छुट्टी ले ली।  शायद मुझे डर लग रहा था।"

हालांकि लीना को कभी भी सीधे तौर पर धमकियों का सामना नहीं करना पड़ा था लेकिन 15 अगस्त 2021 को तालिबान के अफ़गानिस्तान पर कब्ज़ा करने और "वास्तविक अधिकारी" (DFA-The Taliban (referred to as the de facto authorities) बनने के बाद से कई अन्य महिलाओं को धमकियों का सामना करना पड़ा। 

इससे नज़र आने लगा था कि हालात कितने भयावह होने लगे हैं। स्थिति लैंगिक समानता पर दशकों की प्रगति तालिबान द्वारा पेश किए गए 70 से अधिक आदेशों, निर्देशों और बयानों के ढेर से मिट गई। इसमें देर नहीं लगी। प्रगति अतीत की बात होती चली गई। गौरतलब है कि तालिबान के बयान और नीतियां महिलाओं और लड़कियों के जीवन के लगभग हर पहलू में उनके अधिकारों को प्रतिबंधित करते हैं। 

इसके बावजूद अफगानिस्तान में कहीं न कहीं  महिला संकल्पों ने अपनी मज़बूती का अहसास कराया। इस पोस्ट के साथ जो यह छवि आप देख रहे हैं यह एक महिला संचालित रेडियो स्टेशन के स्टूडियो के अंदर क्लिक की गई है। यह रेडियो चेतने जगाता रहता है। 

यह रेडियो स्टेशन तमाम सख्तियों और खतरों के बावजूद अफ़गानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों को अधिकारों के बारे में शिक्षा और जागरूकता ला रहा है। क्या आपको यह तस्वीर और यह सच्चा ब्यौरा  देता। यदि यह महिलाएं कर सकती हैं तो आप क्यूं नहीं? खुद के मन भी टटोलिये और अपनी सहेलियों से भी पूछिए। जो आपको नहीं जानती लेकिन आपके आसपास कुछ न कुछ करते हुए सक्रिय रहती हैं उनसे भी पूछिए। 

विवरण और फोटो यूएन विमेन से साभार 

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