3 साल की बच्ची भी नहीं बचती, इन हैवानों से
यह रचना कहां पढ़ी थी.अब यह भी भूल गया। लेखक का पता पश्ते वक्त भी पता नहीं चल सका। इसे इस उम्मीद से सहेज कर रख लिया की शायद जल्द ही लेखक का पता चल सके सम्भव न हो सका। आज दशहरा। सीता माता का हरण करने वाले रावण के अंत की बातें दोहराता दिन। अतीत की बातें करता दिन। अतीत के किस्से दोहराता दिन लेकिन जो आज के रावण हैं उनकी तरफ से आज भी ऑंखें बंद हैं। उनकी चर्चा क्यों नहीं? कौन जलाएगा उन्हें। पढ़िए ज़रा इस रचना को। अंदर तक झंकझोर डालती है। -रेक्टर कथूरिया
बेशर्मी की हद
सब एक सा तो हे,
DTC की बस नहीं,
तो Metro ही सही,
तम्बाकू खाने वाला ज़ाहिल नहीं,
तो Tie लगाने वाला पढ़ाकू सही,
कमर बस लड़की की चाहिए,
सीने पर हाथ फिराने की मोहलत,
और चलते हुए हाथों को छूने का मौका,
घर पर बहन ठीक है काफी है,
बाहर की हर लड़की एक चीज़ है,
ज़्यादा लिप्सटिक, टाइट कपड़े,
और चाल में उछाल बस काफी है बहाने को,
3 साल की बच्ची भी नहीं बचती, इन हैवानो से,
पहले दूर से देखो, फिर मुस्कुरा दो,
अकेले हो तो हाथ पकड़ लो,
अंधेरा हो तो कमर जकड़ लो,
एक हाथ सीने पर, दूजे से मूह दबा दो,
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