बाढ़ की संभावनाओं पर घर बनाने का जतन --प्रशान्त कुमार दूबे
An Article by the Asian Human Rights Commission
बाढ़ की संभावनायें सामने हैं, और नदियों के किनारे घर बने हैं।
मशहूर शायर दुष्यंत कुमार का यह शेअर प्रदेश में घनघोर जल्दबाजी में की जा रही एक कसरत पर मौजूं है | देश में पहली बार महिला नीति बनाने का तमगा हासिल करने वाले और विगत एक साल से बगैर महिला नीति के सांसे भरते मध्यप्रदेश में नई महिला नीति को बनाने की कवायद जोर-शोर से चल रही है। महिला एवं बाल विकास विभाग और प्रशासन अकादमी की महिला शाखा इस पर कसरत कर रही है। पर यह सब बहुत ही जल्दबाजी में हो रहा है। क्यूंकि खबर है कि प्रदेश के घोषणावीर मुख्यमंत्री इस नीति को अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर लागू कर इसे भुनाना चाहते हैं। यह जनसंपर्क विभाग का एक महत्वपूर्ण काम है कि चुनावी साल में दिवसों की महत्ता को जम कर भुनायें और कमोबेश वही हो रहा है। बहरहाल जल्दबाजी में बन रही इस महिला नीति के काफी उथले होने के आसार हैं। यह नीति यदि 8 मार्च को लागू नहीं की गई तो भी मार्च में यह लागू हो ही जायेगी |
प्रदेश सरकार के साथ एक जुमला साथ चलता है कि गलती करना और उसे दोहराते रहना | यह महिला नीति के साथ भी हो रहा है | ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश की महिला नीति 2008-12 तैयार की गई थी जिसका लक्ष्य विकास की मुख्य धारा में महिला की गरिमापूर्ण भागीदारी सुनिश्चित कर उसके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से संबंधित नीतियों का परिणाममूलक क्रियान्वयन करना रखा गया। इस महिला नीति में महिलाओं के घटते लिंग अनुपात,बालिका भ्रूण हत्या की रोकथाम, महिलाओं के प्रति हिंसा, महिलाओं व किशोरी बालिकाओं की शिक्षा व गुणात्मक स्वास्थ्य सेवायें, प्रत्येक स्तर पर निर्णय प्रक्रिया एवं व्यवस्था में भागीदारी, जेण्डर पर आधारित बजट व्यवस्था तथा नीतिगत प्रावधानों की मानिटरिंग, मूल्याकंन और प्रतिवेदन को शामिल किया गया था । पर एसा कुछ हुआ नहीं और नयी नीति की तैयारी चालू हो गयी है |
आइये जरा पिछली नीति के कुछेक वायदों और आज के हालात पर गौर करें | अव्वल तो यही कि बलात्कार और छेड़छाड़ के मामलों में मध्यप्रदेश पिछले 10 वर्षों से पहले स्थान पर है | इस कलंक को धोने के लिए पिछली नीति में प्रदेश के प्रत्येक पुलिस थानों में महिला पुलिस अधिकारी की नियुक्ति करना था, जो आज तक नहीं हुई। ट्रेफिकिंग को रोकने के लिये निगरानी व्यवस्था बनाई जानी थी जो बनी नहीं, बल्कि ट्रेफिकिंग पिछले पांच सालों में और बढ़ी है। केवल पिछले सात सालों में ही 8108 बालिकाओं की गुमशुदगी दर्ज है | हालाँकि अभी 2 माह पहले जरूर एक हेल्पलाइन बनी है जो स्वागत योग्य कदम है लेकिन वह भी दिल्ली प्रकरण से उपजे चौतरफा दवाब का नतीजा है |
पिछली नीति में महिलाओं के भू अधिकारों के संदर्भ में समानाधिकार दिये जाने पर जोर दिया गया था, लेकिन इसी राज्य सरकार ने महिलाओं के नाम पर रजिस्ट्री करने पर 1 प्रतिशत शुल्क की छूट के प्रावधान तक को खत्म कर दिया गया। इसके लिए कानून भी बनाया जाना था, पर कोई बात आगे नहीं बढ़ी। एनएफएचएस-3 के अनुसार 56 फीसदी खून की कमी वाली महिलाओं के प्रदेश में किशोरी स्वास्थ्य को बेहतर करने और पोषण देने की बात कही गई थी लेकिन अभी भी यह सरकार हर गांव में केवल दो ही किशोरी बालिकाओं को पोषण आहार उपलब्ध करवा रही है, ना कि सभी बालिकाओं को । सबला योजना(केंद्र प्रवर्तित) भी प्रदेश के 15 जिलों तक सीमित है बाकी 35 जिलों के लिए कुछ नहीं।
नीति यह भी कहती थी कि गर्भकाल में महिलाओं से मेहनत करवाने से ठेकेदार पर कार्यवाही होगी। परन्तु आज तक एक भी ठेकेदार के खिलाफ प्रदेश में कोई कोई भी कार्यवाही नहीं हुई बल्कि गर्भवती महिलायें तो मनरेगा जैसे सरकारी कार्यक्रमों में ही काम करती पाई जा रही हैं। इस पूरे मसले पर महत्वपूर्ण था कि हर साल महिलाओं की स्थिति पर नवीन आंकड़ों और राज्य स्तर पर उठाये जा रहे कदमों के संबंध में एक स्थिति पत्र बनाने और उसे सार्वजनिक करने की जिम्मेदारी योजना आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग की थी, लेकिन अब तक यह पत्र एक बार भी नहीं निकला है। क्रियान्वयन की निगरानी इसी विभाग के पास थी लेकिन निगरानी हुई होती तो शायद हमें यह मर्सिया गाने की जरूरत थी ही नहीं।
हां कुछ हुआ है तो वह है पंचायती राज्य एवं शहरी निकायों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण। यह काबिल-ए-गौर है और इसलिये सरकार बधाई की पात्र है लेकिन यह भी देखना सरकार का ही काम है कि उन जनप्रतिनिधियों की क्षमतावृद्धि कैसे की जाये ताकि वे बेहतर काम कर सकें। इसी प्रकार बालिका भ्रूण हत्या की रोकथाम और बालिका शिक्षा पर तो ध्यान दिया जा रहा है पर बालिकायें स्कूल क्यों छोड़ती हैं उस पर ज्यादा कसरत नहीं हुई है।
सरकार ने यह भी कहा था कि गरीबी परिवारों की बालिकाओं को विवाह में विशेष सहायता दी जायेगी। सरकार ने इसके लिये प्रावधान तो बढ़-चढ़कर किये पर कन्या को दान की वस्तु समझते हुये ‘कन्यादान’ योजना लागू कर दी। ‘कन्यादान’ शब्द यदि राज्य उपयोग करता है तो इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति नहीं होगी। समझ से परे यह भी है कि एक राज्य महिला नीति बनाते समय महिलाओं को समता, समानता, गरिमा व क्षमताओं के साथ महिला को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने की बात करता है लेकिन दूसरी ओर उसी महिला की गरिमा के साथ खिलवाड़ करते हुये कन्यादान योजना लागू करता है। खबर यह भी है कि नई महिला नीति का प्रारुप भी इस पर मौन है और नीति नियंता भी।
तो सवाल यह है कि यदि पिछली नीति के क्रियान्वयन का यह स्तर है तो क्या यह माना जाये कि यह नीतियां महज रस्मअदायगी ही होती हैं ताकि यदि विकास के तराजू पर तौला जाये तो राज्य कह सके कि हमने महिला नीति बनाई है। पिछली महिला नीति 2008-2012 में सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान किये थे पर छः साल बाद भी ढांक के तीन पात, तो फिर ऐसी नीति का क्या औचित्य .....? क्या यह नीतियां दिखावे या वेबसाईट पर शोभा बढ़ाने के काम आती हैं ताकि जब गूगल पर सर्च किया जाये तो टप से उछल कर महिला नीति, मध्यप्रदेश सामने आ जाये और महिलाओं के हक में मध्यप्रदेश का यशगान गाया जा सके। सवाल तो यह भी है कि क्या यह नीतियाँ मुख्यमंत्री और प्रशासन के खम ठोंकने के काम ही आती हैं या संदर्भित समूह के उत्थान की वास्तविक चिंता भी समाहित होती है। जवाब है नहीं। क्यूंकि यदि नीतियों और उनके प्रावधानों को सरकार गंभीर मानती तो फिर पिछले एक साल से प्रदेश में तो नीति ही नहीं है तो सरकार इतनी कछुआ चाल से क्यूँ रेंगती रही ? अब जबकि दिल्ली प्रकरण से देश भर में बने माहौल से प्रदेश सरकार की लुटिया भी ना डूबने लगे तो सरकार आनन-फानन में यह नीति बनाने पर विचार कर रही है |
प्रदेश के तमाम महिला संगठनों ने इन सभी मुद्दों पर अपनी तल्ख़ टिप्पणी करते हुये यह मांग की है कि ना केवल बेहतर नीति बनाई जाये बल्कि पुरानी महिला नीति के प्रावधानों और उनके हश्र को ध्यान में रखते हुये सरकार उसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का खाका भी खींचा जाए। प्रदेश के करीब 20 संगठनों ने महिला नीति को लेकर व्यापक सुझाव भी राज्य सरकार को सौंपे हैं | नागरिक अधिकार मंच की उपासना बेहार कहती हैं कि सरकार को इतनी जल्दबाजी की बजाय प्रस्तावित महिला नीति को जनमंचों पर लाना चाहिये, ताकि उस पर गंभीर चर्चायें हों और उसके बाद ही सरकार आगे बढ़े । इससे हटकर एक बड़ा सवाल कि सरकार जो नीति में लिखेगी, वो अपनाने के लिये कितना तैयार है, यह भी वह बताये । देखना यह भी होगा कि पिछली बार के नीति दस्तावेज की प्रथम पंक्ति की तरह सरकार इस बार भी महिला को प्रकृति की सबसे सुंदर कृति बतायेगी या महिला को सुन्दर और कुरुप की छवि से बाहर निकलकर एक स्वतंत्र व्यक्तित्व मानेगी और उसे आगे लाने के प्रयास भी करगी।
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About the Author: Mr. Prashant Kumar Dubey is a Rights Activist working with Vikas Samvad, AHRC's partner organisation in Bophal, Madhya Pradesh. He can be contacted at prashantd1977@gmail.com
About AHRC: The Asian Human Rights Commission is a regional non-governmental organisation that monitors human rights in Asia, documents violations and advocates for justice and institutional reform to ensure the protection and promotion of these rights. The Hong Kong-based group was founded in 1984.