src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> वीमेन स्क्रीन : 2013

Tuesday, December 3, 2013

Beautiful Young Chinese Girls Executed


Uploaded on Aug 9, 2011
10 tragic stories of young girls sentenced to death and killed in the past years. Pictures show the last moments of the short lives of the girls.

AND TO ALL OF YOU HATERS WHO ATTACK AND INSULT ME, I FOUND THE ENTIRE CONTENT OF THIS VIDEO ON A CHINESE WEBSITE. I THOUGHT THE STORIES ARE INTERESTING AND SO I MADE THIS VIDEO TO SHARE THOSE STORIES WITH YOU GUYS. OF COURSE I DONT DEFEND CRIMINALS BUT AS I AM A WARM HEARTED HUMAN BEING I STILL FEEL SAD FOR YOUNG PEOPLE BEING CAPITAL PUNISHED REGARDLESS OF WHAT THEY DID. AND
I NEVER EVER MENTIONED ANYTHING LIKE THAT THOSE GIRLS SHOULD BE TREATED DIFFERENTLY THEN UGLY GIRLS/MEN/ETC.

Please keep that in mind before you comment stupid things!
Thanks for watching anyway!

यह बलिदान केवल लड़की ही कर सकती है

इसलिए हमेशा लड़की की झोली वात्सल्य से भरी रखना...

सीमेंट सिटी के नाम से जाना जाता सतना मध्यप्रदेश का एक जाना माना क्षेत्र है। बहुत पहले इसका नाम सुतना हुआ करता था पर फिर वक़त ने कुछ करवट ली तो इसका नाम सतना दरया के नाम पर पढ़ गया सतना। इस इलाके के प्रेमियों ने सतना नाम से एक प्रोफाईल फेसबुक पर भी  है। इस पेज पर एक बहुत अच्छी काव्य रचना पोस्ट की गई है। बेटी के साथ प्रेम और संवेदना के भावों को झंकृत करने के साथ साथ उन्हें मज़बूती भी देती है। आपको यह रचना कैसी लगी अवश्य बताएं।  

एक लड़की ससुराल चली गई,

कल की लड़की आज बहु बन गई.
कल तक मौज करती लड़की,
अब ससुराल की सेवा करना सीख गई.
कल तक तो टीशर्ट और जीन्स पहनती लड़की,
आज साड़ी पहनना सीख गई.
पिहर में जैसे बहती नदी,
आज ससुराल की नीर बन गई.
रोज मजे से पैसे खर्च करती लड़की,
आज साग-सब्जी का भाव करना सीख गई.
कल तक FULL SPEED स्कुटी चलाती लड़की,
आज BIKE के पीछे बैठना सीख गई.
कल तक तो तीन टाईम फुल खाना खाती लड़की,
आज ससुराल में तीन टाईम
का खाना बनाना सीख गई.
हमेशा जिद करती लड़की,
आज पति को पूछना सीख गई.
कल तक तो मम्मी से काम करवाती लड़की,
आज सासुमां के काम करना सीख गई.
कल तक तो भाई-बहन के साथ
झगड़ा करती लड़की,
आज नणंद का मान करना सीख गई.
कल तक तो भाभी के साथ मजाक करती लड़की,
आज जेठानी का आदर करना सीख गई.
पिता की आँख का पानी,
ससुर के ग्लास का पानी बन गई.
फिर लोग कहते हैं कि बेटी ससुराल जाना सीख गई.

(यह बलिदान केवल लड़की ही कर
सकती है,इसिलिए हमेशा लड़की की झोली
वात्सल्य से भरी रखना...)
बात निकली है तो दूर तक जानी चाहिये!!!
शेयर जरुर करें और लड़कियो को सम्मान दे!

Monday, October 7, 2013

टेक्सटाइल मजदरों के संघर्ष में भी आगे है महिला शक्ति

Mon, Oct 7, 2013 at 5:30 PM
श्रम विभाग पर रोषपूर्ण प्रदर्शन:चौथे दिन भी नहीं हुआ कोई फैसला 
लुधियाना:07 अक्टूबर 2013: (*विश्वनाथ//वीमेन स्क्रीन ब्यूरो): नारी शक्ति एक बार फिर संघर्ष की राहों पर पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चला रही है। यह बात आज हड़ताली टेक्सटाइल मजदूरों के रोष प्रदर्शन में देखने को मिली। ये मजदूर श्रम विभाग कार्यालय पर रोषपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे स्थिति करो या मरो जैसी थी। श्रम विभाग ने मजदूरों और मालिकों को आज की तारीख पर श्रम कार्यालय बुलाया था। लेकिन वहाँ न मालिक मिले न श्रम अधिकारी। बहुत से कानूनों का दावा होने के बावजूद मजदूरों को बुलाने और खुद गायब हो जाने का यह निंदनीय सिलसिला बहुत पुराना है।टेक्सटाइल-हौजरी कामगार यूनियन के अध्यक्ष राजविन्दर ने बताया कि मालिकों के साथ साथ श्रम अधिकारियों द्वारा अपनाए जा रहे यह मजदूर विरोधी रवैया मजदूरों को कतई झुका नहीं पाएगा बल्कि इससे मजदूरों में रोष को और भी बढ़ गया है। मजदूर अपने अधिकार हासिल करके ही काम पर लौंटेंगे भले ही उन्हें कितनी भी लम्बी हड़ताल क्यों न लडऩी पड़े। इस दी में लाठी भी चल सकती थी और गोली भी लेकिन महिला शक्ति पुरुष मजदूर साथियों के साथ बराबर डटी रही। 

गौरतलब है कि इस समय 36 कारखानों के मजदूर टेक्सटाइल हौजरी कामगार यूनियन के नेतृत्व में हड़ताल पर हैं। यहाँ 40 कारखानों में पहले ही 15 प्रतिशत वेतन/पीस रेट वृद्धि और 8.33 प्रतिशत सालाना बोनस की माँग पर समझौता हो चुका है। लेकिन 36 कारखानों के मालिक मजदूरों को उनके कानूनी अधिकार देने को तैयार नहीं हैं। अधिकार पाने के रास्ते में आ रही चुनौतियों को स्वीकार करने में इन महिलायों ने एक पल भी नहीं लगाया। इन्हें देख कर प्राचीन मजदूर संघर्षों की याद ताज़ा हो गई।

इन संघर्षशील महिलायों ने एक बार फिर साबित किया कि वे चूल्हे चौंके से लेकर सडक पर उतरे संघर्ष में भी किसी से कम नहीं। श्रम विभाग कार्यालय पर हुए प्रदर्शन में कई अन्य संगठनों के नेताओं ने समर्थन जाहिर किया। प्रर्दशन को टेक्सटाइल हौजरी कामगार यूनियन के अध्यक्ष राजविन्दर, कारखाना मजदूर यूनियन के संयोजक लखविन्दर, मोल्डर एण्ड स्टील वर्कज यूनियन के हरजिन्दर सिंह, इंटक के उपाअध्यक्ष सबरजीत सिंह सरहाली व टेक्सटाइल-हौजरी कामगार यूनियन के समिति सदस्यों विश्वनाथ, प्रेमनाथ, गोपाल आदि ने सम्बोधित किया। सभी मजदूरों ने जोशीले नारों के साथ यह ऐलान किया कि उनकी लड़ाई हक हासिल होने तक जारी रहेगी।

*विश्वनाथ टेक्सटाइल-हौजरी कामगार यूनियन, पंजाब (रजि.) के सचिव हैं   

Saturday, August 31, 2013

'अहिंसा संदेशवाहक' कार्यक्रम का शुभारंभ

31-अगस्त-2013 17:59 IST
शुभारंभ किया यूपीए अध्‍यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने
इस अवसर पर श्रीमती कृष्‍णा तीरथ ने कहा कि 'अहिंसा संदेशवाहक' से महिला सशक्तिकरण
यूपीए अध्‍यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने आज यहां महिला और बाल विकास मंत्रालय के 'अहिंसा संदेशवाहक' कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्‍णा तीरथ ने समारोह की अध्‍यक्षता की। पंचायती राज और जनजातीय मामले मंत्री श्री वी. किशोर चंद्र देव और संसद सदस्‍य श्री जे. पी. अग्रवाल भी मौजूद थे। समारोह में दिल्‍ली एनसीआर से करीब 30 हजार बालिकाओं ने हिस्‍सा लिया, जिन्‍हें राजीव गांधी किशोरी अधिकारिता कार्यक्रम या सबला से लाभ प्राप्‍त हुआ है।

इस अवसर पर श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा कि 'अहिंसा संदेशवाहक' सीधे रुप से महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के साथ जुड़ा हुआ है। उन्‍होंने कहा कि ये 'अहिंसा संदेशवाहक' महिलाओं के कानूनी अधिकारों और उनके आर्थिक एवं सामाजिक विकास के बारे में जागरूकता और ज्ञान का प्रचार करेंगे। श्रीमती गांधी ने कहा कि समाज में महिलाओं की सुरक्षा और उन्‍हें गरिमा प्रदान करने के लिए लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाना बहुत जरूरी है। उन्‍होंने कहा कि इस कार्यक्रम की विशेषता यह है कि इसमें किशोर बालकों को भी शामिल किया गया है। उन्‍होंने कहा कि सबसे पहले आंगनवाडि़यों ने कुछ महिलाओं को 'अहिंसा संदेशवाहक' का प्रशिक्षण दिया जाएगा। श्रीमती गांधी ने कहा कि पंचायती राज संस्‍थानों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू करने से लाखों महिलाओं को अपनी बात कहने का हक मिला है। 

श्रीमती गांधी ने यह भी कहा कि सिर्फ नीतियां घोषित करने और कानून लागू करने से महिलाओं का सशक्तिकरण नहीं हो पाएगा। उन्‍होंने इसके लिए कानून और नीतियों को निचले स्‍तर पर कारगर ढंग से लागू करने की आवश्‍यकता पर बल दिया। 

महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्‍णा तीरथ ने कहा कि महिलाएं समाज के विकास में तभी योगदान कर सकती हैं जब उन्‍हें मानसिक, सामाजिक, शैक्षिक और वित्‍तीय दृष्टि से अधिकारिता प्रदान की जाए। उन्‍होंने बताया कि 'अहिंसा संदेशवाहक' कार्यक्रम की परिकल्‍पना 2009 में की गयी थी। उन्‍होंने बताया कि आज सबला के अंतर्गत एक करोड़ लड़कियों को 'अहिंसा संदेशवाहक' का कार्य संभालने के लिए प्रशिक्षित किया जा चुका है। उन्‍होंने कहा कि इस कार्यक्रम का मुख्‍य उद्देश्‍य महिलाओं और बच्‍चों के खिलाफ होने वाली हिंसा पर काबू पाना है। कार्यक्रम में किशोर और किशोरियों दोनों को ही शामिल किया गया है। 

इस अवसर पर महिला और बाल विकास मंत्रालय की सचिव सुश्री नीता चौधरी और अन्‍य वरि‍ष्ठ अधिकारी भी उपस्‍थित थे। 
 'अहिंसा संदेशवाहक' कार्यक्रम का शुभारंभ 
वि. कासोटिया/देवेश/प्रदीप/बेसरा/चि‍त्रदेव-5968

Friday, August 30, 2013

झांसी किले की 400वीं वर्षगांठ

30-अगस्त-2013 15:47 IST   
 ‘कौमी एकता का प्रतीक:झांसी दुर्ग’ पर संगोष्‍ठी आयोजित
झांसी किले में उसकी 400वीं वर्षगांठ का कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस अवसर इस अवसर पर  केंद्रीय संस्‍कृति मंत्री श्रीमती चंद्रेश कुमारी कटोच मुख्‍य अतिथि थीं। 
झाँसी: 30 अगस्त 2013: (पीआईबी) भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण, लखनऊ सर्किल, लखनऊ ने हाल ही में ऐतिहासिक झांसी किले में उसकी 400वीं वर्षगांठ का कार्यक्रम आयोजित किया। इस अवसर पर ‘कौमी एकता का प्रतीक:झांसी दुर्ग’ पर एक संगोष्‍ठी आयोजित की गई। केंद्रीय संस्‍कृति मंत्री श्रीमती चंद्रेश कुमारी कटोच मुख्‍य अतिथि थीं। इस समारोह में ग्रामीण विकास राज्‍य मंत्री श्री प्रदीप कुमार जैन, भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण के महानिदेशक श्री प्रवीण श्रीवास्‍तव, बुंदेलखंड विश्‍वविद्यालय, झांसी के कुलपति श्री अविनाश चंद्र पांडे भी उपस्थित हुए। इस उपलक्ष्‍य में लखनऊ में विभिन्‍न स्‍थानों पर साल भर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। (PIB)
***
इ.अहमद/प्रियंका/सुमन – 5933


झांसी किले की 400वीं वर्षगांठ 

Saturday, August 17, 2013

महिला सशक्तिकरण, बच्‍चों का पोषण:

16-अगस्त-2013 16:00 IST
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की उपलब्धियां
स्‍वतंत्रता दिवस-2013 के अवसर पर विशेष फीचर-----*श्रीमती कृष्‍णा तीरथ की कलम से 
सुश्री कृष्णा तीर्थ महिला एवं बाल विकास राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार)
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय महिलाओं एवं बच्‍चों से संबंधित सभी मामलों का नोडल मंत्रालय है। मंत्रालय सामाजिक क्षेत्र के मामलों से जुडे अपने दृष्टिकोण में महत्‍वपूर्ण बदलाव की दिशा में बढ रहा है जिसमें पहले कल्‍याण पर ध्‍यान  केंद्रित किया जाता था, लेकिन अब विशेषकर हाशिए पर रहने वालों के संपूर्ण सशक्तिकरण पर ध्‍यान दिया जा रहा है1 मंत्रालय की ओर से महिलाओं, किशोरियों और समाज के सभी वर्गों के बच्‍चों के सशक्तिकरण पर ध्‍यान दिया जाता रहेगा। मंत्रालय ने पिछले चार वर्षों में कई महत्‍वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्‍त की हैं।
महत्‍वपूर्ण कानून
मंत्रालय ने कार्यस्‍थल पर महिलाओं के साथ यौन प्रताडना (रोकथाम, प्रतिषेध एवं निवारण) अधिनियम 2013 को मूर्त रूप प्रदान किया है। यह ऐतिहासिक कानून है क्‍योंकि देश में इससे पहले कार्यस्‍थल पर होने वाले यौन उत्‍पीडन से निपटने के लिए कोई ऐसा कानून नहीं था। इस कानून के दायरे में सभी महिलाएं आती हैं चाहे वह किसी भी उम्र की हों और किसी भी निजी या सार्वजनिक कार्यस्‍थल में कार्यरत हों तथा घरेलू सहायक और असंगठित एवं अनौपचारिक सहित किसी भी कार्य में संलग्‍न हों। इस कानून के दायरे में ग्राहक एवं उपभोक्‍ता भी आते हैं। नये कानून के दायरे में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र, संगठित और असंगठित क्षेत्र के विभाग, कार्यालय, शाखा, ईकाई, तथा अस्‍पतालों, नर्सिंग होम्‍स, शैक्षिक संस्‍थाओं, खेल संस्‍थानों, स्‍टेडियम्‍स, खेल परिसरों, सहित ऐसे सभी स्‍थलों को शामिल किया गया है, जहां अपने काम के सिलसिले में कर्मचा‍री को जाना पड़ता है। इसमें परिवहन के साधन भी शामिल हैं। इस कानून को लागू करने के लिए नियमों का निर्धारण किया जा रहा है।

बच्‍चों से दुर्व्‍यवहार की बढती घटनाओं के मद्देनजर मंत्रालय ने एक विशेष  कानून- यौन उत्‍पीडन से बच्‍चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 बनाया है। यह कानून 14 नवम्‍बर 2012 से लागू हो गया। यह कानून कडे दंड के माध्‍यम से बच्‍चों को यौन शोषण, यौन उत्‍पीडन और पोर्नोग्राफी सहित कई तरह के अपराधों से संरक्षण मुहैया कराता है। यह कानून विशेष न्‍यायालयों को ऐसे मामलों की त्‍वरित सुनवाई, न्‍यायालयों में बच्‍चों के अनुरूप प्रक्रियाएं और ऐसे मामलों की पुलिस या उचित प्राधिकरण को सूचना न देने तथा उकसाने और झूठी शिकायत झूठी सूचना देने वालों के लिए दंड का अधिदेश देता है।

इसके अलावा, मंत्रालय ने कुष्‍ठ रोग, तपेदिक, हेपेटाइटस-बी आदि जैसी बीमारियों से पीडित बच्‍चों के साथ होने वाले भेदभाव को मिटाने के लिए वर्ष 2011 में किशोर न्‍याय (देखभाल एवं बाल संरक्षण) अधिनियम 2000 का संशोधन किया। इस बारे में 08 सितम्‍बर 2011 को अधिसूचना जारी की गई। महिलाओं का अशोभनीय चित्रण (प्रतिषेध) संशोधन विधेयक 2012 राज्‍य सभा में पेश किया गया है। राज्‍य सभा ने इस विधेयक को विचार के लिए विभाग से संबंधित संसदीय स्‍थाई समिति के पास भेज दिया है। इसके अलावा दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के लिए कैबिनेट का नोट टिप्‍पणियों के लिए संबंधित मंत्रालयों को भेजा गया है।

महिलाओं के लिए योजनाएं
मंत्रालय ने नवम्‍बर 2010 में राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण योजना (आरजीएसईएजी)-‘सबला’ योजना शुरू की। योजना का उद्देश्‍य 11 से 18 वर्ष तक की लड़कियों के पोषण तथा स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार लाना तथा स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, आंगनवाडी केंद्रों में व्‍यवसायिक प्रशिक्षण, परामर्श और मार्गदर्शन उपलब्‍ध कराते हुए शिक्षण और सार्वजनिक सेवाओं तक उनकी पहुंच सुगम बनाकर उन्‍हें आत्‍मनिर्भर बनाना है । ‘सबला’ इस समय देशभर के दो सौ पांच जिलों में चलाई जा रही है। वर्ष 2012-13 के दौरान (31-12-2012 तक) इस योजना से  88.76 लाख किशोरियों को फायदा पहुंचा है।

सरकार ने ‘उज्जवला’ नामक व्‍यापक योजना शुरू की है जो एक ओर तस्‍करी की रोकथाम करती है वहीं दूसरी ओर ऐसी महिलाओं के पुनर्वास और उन्हें समाज से दोबारा जोड़ती है। इस योजना के पांच विशिष्‍ट भाग हैं- इनमें रोकथाम,  पीड़िताओं को शोषण के अड्डों से मुक्त कराना, उनका पुनर्वास, समाज की मुख्‍यधारा से दोबारा जोडना तथा तस्‍करी की शिकार महिलाओं को उनके घर वापस भेजना शामिल हैं। यह योजना मुख्‍य रूप से गैर सरकारी संगठनों की ओर से लागू की जा रही है। वर्ष 2012-13 में इसके लिए 73 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई और 7.39 करोड रूपये जारी किए गए।

     नियमबद्ध नकदी हस्‍तांतरण योजना 'इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना' के तहत वर्ष 2012-13 के दौरान 4.69 लाख गर्भवती महिलाओं तथा बच्चों को दूध पिलाने वाली माताओं को लाभ पहुंचाया गया। यह योजना प्रायोगिक आधार पर 53 चुनिंदा जिलों में आईसीडीएस मंच का इस्‍तेमाल करते हुए लागू की गई थी।  इस योजना के तहत गर्भावस्‍था तथा बच्‍चों को दूध पिलाने की अवस्‍था के दौरान गर्भवती महिलाओं तथा बच्चों को दूध पिलाने वाली माताओं को कुछ विशिष्‍ट शर्ते पूरी करने पर नकदी सहायता मुहैया कराने की परिकल्‍पना की गई है। यह योजना दीर्घकालिक व्‍यवहार एवं सोच में बदलाव लाने के उद्देश्‍य के साथ लघु अवधि आमदनी सहायता उपलब्‍ध कराती है। इस योजना को सरकार की प्रत्‍यक्ष लाभ अंतरण योजना में शामिल किया गया है।

    स्‍वाधार योजना के तहत, मुश्किल हालात में फंसी असहाय  महिलाओं को गृह आधारित संपूर्ण एवं एकीकृत दृष्टिकोण के माध्‍यम से सहायता पहुंचाई जाती है। इस योजना के तहत मुश्किल परिस्थितियों में फंसी महिलाओं का पुनर्वास करने के लिए उन्‍हें आसरा, भोजन,  कपड़े, परामर्श, प्रशिक्षण, चिकित्‍सीय एवं कानूनी सहायता दी जाती है। वर्ष 2009-13 में इस योजना के लिए 2363.15 लाख रूपये जारी किए गए हैं। मंत्रालय ने महिलाओं को प्रशिक्षित करने और उनके कौशल में सुधार लाने के लिए तथा चिह्नित क्षेत्रों में परियोजना के आधार पर रोजगार मुहैया कराने के लिए उन्‍हें प्रशिक्षण एवं रोजगार कार्यक्रम सहायता (एसटीईपी) योजना शुरू की है। वर्ष 2009-13 के दौरान इस योजना से 30,481 महिलाएं लाभान्वित हुई।

     मंत्रालय ने चालू वित्‍त वर्ष के दौरान ‘’वन स्‍टॉप क्राइसिस सेंटर फॉर वुमन’’ (ओएससीसी) नामक नई योजना शुरू करने का प्रस्‍ताव पेश किया है। यह योजना संकट से घिरी महिलाओं को फौरन राहत पहुंचाने के लिए सकारात्‍मक कदम उठाने की जरूरत पूरी करेगी। इस योजना को प्रायोगिक आधार पर शुरूआत में 100 जिलों में लागू करने का प्रस्‍ताव रखा गया है। इसके अलावा महिलाओं से जुड़े कार्यक्रमों और योजनाओं के समन्‍वयन  के लिए प्रायोगिक परियोजनाएं पाली (राजस्‍थान) और कामरूप (असम) में शुरू की गई हैं। महिला संसाधन केंद्र या पूर्ण शक्ति केंद्र (पीएसके) महिलाओं को सेवाएं प्रदान करने वाला वन स्‍टॉप सेंटर है। ऐसे केंद्र 150 ग्राम पंचायतों में खोले गये हैं।  प्रत्‍येक पीएसके में मिशन की ओर से दो महिला ग्राम समन्‍वयक नियुक्‍त किए गए हैं। ये महिला ग्राम समन्‍वयक ग्राम पंचायत में महिलाओं को प्रेरित करते हैं और विभिन्‍न प्रकार के प्रशिक्षण देने के लिए उत्‍तरदायी होते हैं।

 बच्‍चों के लिए योजनाएं
भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना को सशक्‍त बनाया गया है तथा इसका पुनर्गठन किया गया है। यह योजना बच्‍चों की शुरूआती देखभाल और विकास से जुडे दुनिया के सबसे बड़े और अनोखे कार्यक्रम का प्रतिनिधित्‍व करती है। सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 1,23,580 करोड़ रूपयों के बजट का आवंटन किया।  पुनर्गठित और सशक्‍त आईसीडीएस तीन चरणों में लागू की जायेगी। इसके पहले साल में (वर्ष 2012-13) में अत्‍यधिक बोझ वाले 200 जिलों को शामिल किया जायेगा। इनमें उत्‍तर प्रदेश के 41 जिले शामिल होंगे। दूसरे साल (वर्ष 2013-14)  में 200 अतिरिक्‍त जिले जोड़े जायेंगे जिनमें विशेष श्रेणी वाले राज्‍यों और पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के जिले शामिल होंगे। तीसरे साल (वर्ष 2014-15) के दौरान बचे हुए जिलों को जोडा जायेगा।

     पुनर्गठित आईसीडीएस योजना के अधीन आंगनवाडी अब स्‍वास्‍थ्‍य, पोषण और महिलाओं एवं बच्‍चों के शुरूआती शिक्षण के लिए प्रथम ग्राम आउटपोस्‍ट होगी, 2 लाख आंगनवाडियों को पक्‍की इमारतें मिलेंगी। इन्‍हें बनवाने के लिए इनमें से प्रत्‍येक आंगनवाडी को साढे चार लाख रूपये दिए जायेंगे और 70 हजार आंगनवाडियों या पांच प्रतिशत मौजूदा आंगनवाडियो में ग्रामीण और शहरी क्षेत्र दोनों जगह कामकाजी माताओं के लाभ के लिए क्रेच की सुविधा उपलब्‍ध कराई जायेगी। पूरक आहार के लिए भी अब बच्‍चों के लिए (6-72 महीने) चार रूपये की जगह छह रूपये दिए जायेंगे, बेहद कम वज़न वाले बच्‍चों को 6 रूपये की जगह 9 रूपये तथा गर्भवती और दूध पिलाने वाली माताओं को 5 रूपये की जगह 7 रूपये दिए जायेंगे।

     समेकित बाल संरक्षण योजना (आईसीपीएस) के तहत मंत्रालय मुश्किल परिस्थितियो से घिरे तथा अन्‍य असहाय बच्‍चों को सरकार-सामाजिक संगठनों की भागीदारी के माध्‍यम से सुरक्षित वातावरण उपलब्‍ध कराता है।  इस योजना के तहत बच्‍चों की सुरक्षा के लिए पहले से मौजूद मंत्रालय की योजनाओं को एक व्‍यापक योजना के दायरे में लाया गया है और इसमें बच्‍चों की हिफाजत करने और उन्‍हें नुकसान पहुंचने से बचाने के लिए कई अन्‍य कदम उठाये गए हैं। बाल कल्‍याण समिति (सीडब्‍ल्‍यूसी) और किशारे न्‍याय बोर्ड (जेजेबी) जैसी वैधानिक संस्‍थायें क्रमश: 619 और 608 जिलों में काम कर रही हैं और विविध प्रकार के 1195 गृह वित्‍तीय सहायता उपलब्‍ध करा रहे हैं। आपात स्थिति में बच्‍चों की देखभाल और संरक्षण के लिए ‘चाइल्‍ड लाइन’ सेवा चलाई जा रही है। यह सेवा चौबीस घंटे की फोन हेल्‍पलाइन (1098) के माध्‍यम से चलाई जा रही है। इसका दायरा बढाते हुए इसमें देश के 274 शहरों/जिलों  को शामिल किया गया है। आईसीपीएस के कार्यान्‍वयन से पहले इसके दायरे में 83 शहर आते थे।

     इस कार्यक्रमों और योजनाओं के अलावा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय देश के बहुत से हिस्‍सों में घटते बाल लिंगानुपात से निपटने के लिए एक राष्‍ट्रीय कार्य योजना का निरूपण कर रहा है। इसके लिए विभिन्‍न हितधारकों के ज्ञान और विचार शामिल करने के साथ-साथ व्‍यापक विचार-विमर्श किया गया है। बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के लिए राजीव गांधी राष्‍ट्रीय क्रेच योजना का भी पुनर्गठन किया जा रहा है।                  (पीआईबी फीचर)

*महिला एवं बाल विकास राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार)
वि.कासौटिया/इ-अहमद/रीता/चन्‍द्रकला -162

Tuesday, August 6, 2013

सोनी सोरी को दी जा रही हैं एक्सपायरी दवाएं

दवा का नाम है Fluconazole Tablets IP NUFORCE–200
Himanshu Kumar अर्थात जानेमाने गाँधीवादी नेता हिमांशु कुमार ने अभी कुछ ही समय पूर्व एक चिंतनीय खबर अपनी प्रोफाइल पर पोस्ट की है.  इस देश और समाज के दोहरे मापदण्डों को बेनकाब करती इस खबर में बताया गया है कि जहाँ एक और लम्बे समय से पुलिस अत्याचार सहन कर रही आदीवासी अध्यापिका सोनी सोरी का स्वास्थ्य लगातार गिर रहा है उसके होमोग्लोबिन के निर्धारित स्तर में गिरावट आ रही है वहीँ उसे एक्सपायरी दवाएं भी दी जा रही हैं. इन सब साजिशों के चलते अब सोनी सोरी बेहद कमजोर हो रही है. गौरतलब है कि हाल ही में सोनी सोरी के पति का भी देहांत हो चुका है. हिमांशु कुमार लिखते हैं---जेल में सोनी सोरी बहुत कमज़ोर हो गयी है
Courtesy Photo
जेल की डाक्टर अंजना भास्कर के लिखे नोट के अनुसार दिनाक 22-05-2013 सोनी सोरी का होमोग्लोबिन 8.0 से गिर कर दो दिन बाद ही दिनांक 24-05-2013 को 5.4 के चिंता जनक स्तर तक कम हो गया . 
सोनी सोरी की यह जांच सोनी द्वारा बहुत कमजोरी महसूस करने की बार बार शिकायत करने के बाद करी गयी थी .
सोनी सोरी को यह जांच करवाने के लिए
जगदलपुर के महारानी अस्पताल में जंजीरों से बाँध कर ले जाया गया .
सोनी सोरी ने खुद को जंजीरों से बाँध कर अस्पताल ले जाने का विरोध किया. अगले दिन सोनी सोरी को अस्पताल में बिना जंजीरों में बांधे ले जाया गया जहाँ सोनी सोरी को तीन बोतल खून चढाया गया . 
डाक्टरों के मुताबिक़ इसके बाद सोनी सोरी का होमोग्लोबिन फिर से 8.0 के स्तर पर पहुँच गया .

दिनांक 29.07.2013 को सोनी सोरी को एक्सपायरी डेट की पुरानी दवाई दी गयी दवा का नाम है Fluconazole Tablets IP NUFORCE – 200” of Batch No. 11NFL- 005 
इस दवा के बनने का दिनांक 05/2011 अंकित है और एक्सपायरी दिनांक 04/2013 था फिर भी वह एक्सपायर्ड दवा सोनी सोरी को दी गयी .

हमें भय है की सोनी सोरी को इरादतन उचित इलाज से वंचित किया जा रहा है ताकि सोनी सोरी के स्वास्थ्य को अधिकतम हानि पहुंचाई जा सके . 

Friday, June 14, 2013

इस बेटी के ज़ज्बे को सलाम//राजीव गुप्ता

पढाई का सारा खर्च दूसरे के खेतों मे मजदूरी कर उठाया
वर्तमान समय में बब्बी कुमारी दिल्ली स्थित जवाहरलालनेहरू विश्वविद्यालय से सोशियोलोजी की छात्रा हैं और इस समय ग्रीष्मावकास और वृद्ध पिता जी की तबियत ठीक न होने के कारण इन दिनों देवरिया जिले के साहबाज़पुर गाँव में अपने घर आयीं हुई हैं. इन्होने सपने मे भी नही सोचा था कि परिवार और समाज के चलते इतनी मुसीबतों का सामना करना पडेगा. दरअसल परिवार और समाज़ के दबाव के चलते इनका विवाह उस समय हुआ था जब यें बारहवीं कक्षा की छात्रा थी. परंतु पढने की ललक के चलते उस समय इन्होनें विवाहोपरांत ससुराल जाने से मना कर दिया परिणामत: ‘गवना’ की र को कुछ दिनों के लिये टाल दिया गया. इन्होने अपने पति जो कि एक अनपढ हैं और कमाने के लिये शुरू से ही शहर मे रहते थे, से अपनी पढने की इच्छा जतायी तो उन्होने किसी भी प्रकार की सहायता देने के लिये मना कर दिया. परंतु इस बहादुर बेटी ने हार न मानने की ठान ली. माता-पिता की अस्वस्थता और उनकी निर्धनता के चलते इन्होने अपने स्नातक की पढाई का सारा खर्च दूसरे के खेतों मे मजदूरी कर उठाया. बहन की पढने की इस लगन को देखकर इनके बडे भाई जो कि उस समय खुद पढाई करते थे, ने अपनी बहन को दूसरे के खेत में मजदूरी के लिये जाने हेतु मना कर खुद मजदूरी करने लग गये. बहन-भाई की इस मेहनत का परिणाम सकारात्मक आया. कालंतर में बब्बी कुमारी का स्नातकोत्तर हेतु
राजीव गुप्ता
जवाहरलालनेहरू विश्वविद्यालय के सोशियोलोजी कोर्स मे चयन हो गया और बब्बी कुमारी जे.एन.यू. चली गयी. जब इनकी ससुराल वालों को बब्बी कुमारी की इस सफलता के बारे में पता चला तो उन्होने ‘गवना’  के लिये समाज की सहायता से इनके परिवार वालों के ऊपर दबाव बनाना शुरू किया परंतु बब्बी कुमारी और इनके भाई मुन्ना किसी भी प्रकार के दबाव के आगे नही झुके. बब्बी कुमारी बताती है कि जे.एन.यू. जाने के बाद जबतक छात्रावास नही मिला तबतक यह वहाँ के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक छात्रा के साथ कुछ दिनों तक रही. नम आँखों से बब्बी कुमारी ने बताया कि उनके साथ ऐसा समय कई बार आया जब इनके पास न्यूनतम कपडे तक नही होते थे और आर्थिक तंगी से परेशान होकर एक बार तो इन्होने आत्महत्या तक विचार बना लिया था परंतु इन्होने अपनी गरीबी को ही अपनी असली ताकत बनाने की सोचा. कुछ महीने बाद इन्हे छात्रावास मिला तथा छात्रावृत्ति भी मिलने लगी और आगे की पढाई का मार्ग प्रशस्त हुआ. इन्होने अपने पति से कई बार आर्थिक मदद के लिये कहा परंतु हर बार वो मना कर देता था. हारकर इन्होने भविष्य में अपने पति से कोई रिश्ता न रखने के लिये कहा तो उसने कुछ पैसे भेजें. इनकी आर्थिक – स्थिति को इनके साथ रहने वाली मित्र से जब नही देखा गया तो वह आगे आयी और इनकी हर प्रकार की सहायता की.
जे.एन.यू के एम.फिल की प्रवेश परीक्षा देकर ये अपने गाँव चली आयी. इनके गाँव आते ही इन्हे जबरदस्ती ससुराल ले जाने के लिये इनके ससुराल वालें कई लोगों के साथ इनके घर आ धमके. परंतु जब इनके भाई और इन्होने अपने ससुराल वालों के इस कृत्य का विरोध किया तो सैकडों गाँव वालों और खाप पंचायत के सामने अनुसूचितजाति-समाज की इस बेटी को खीँचकर ले जाने की कोशिश की गई परंतु इनके भाई के अलावा किसी ने भी इस कृत्य को रोकने की हिम्मत नही दिखायी. चिंतन-मनन के पश्चात किसी प्रकार वहाँ उपस्थित लोगों से इन्होने अगले दिन तक का समय मांगा और दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार राजीव गुप्ता को फोनकर अपनी सारी स्थिति बताते हुए मदद मांगी. बस यही से इस पूरे घटनाक्रम मे तेज़ी से बदलाव आया. अगली सुबह ही जिला उप-जिलाधिकारी श्री दिनेश गुप्ता के संज्ञान मे सारा विषय आ गया और प्रशासन के सकारात्मक सहयोग और दूरदर्शिता के चलते दोनों परिवारवालों के बीच विवाह-खत्म करने की सहमति बनी. समाज-उपेक्षा से बब्बी को तो अब मुक्ति मिल जायेगी परंतु अभी भी बब्बी कुमारी की आर्थिक समस्या मुँह बाये खडी है फिर भी बब्बी कुमारी ने नेट, जे.आर.एफ जैसी छात्रवृत्ति पाने की आशा रखते हुए प्रशासनिक सेवा में जाने का अब मन बना लिया हैं.  
राजीव गुप्ता, स्वतंत्र पत्रकार , 09811558925             
इस बेटी के ज़ज्बे को सलाम

Friday, March 29, 2013

जननी सुरक्षा योजना का भौतिक एवं वित्तीय प्रदर्शन


ग्रामीण क्षेत्रों में 600 रुपए प्रति प्रसव
वर्ष 2005-06 से राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एऩआरएचएम) के तहत जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) नामक राष्ट्रीय योजना चलाई जा रही है। इस योजना का उद्देश्य गर्भवती महिलाओं को संस्थागत प्रसव की व्यवस्था में सुधार कर शिशु और मातृत्व मृत्यु दर में कमी लाना है। इस योजना के तहत सभी गर्भवती महिलाओं को 8 ईएजी राज्यों (जैसे बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) तथा जम्मू एवं कश्मीर और असम में उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधा केन्द्रों में प्रसव पर नकद सहायता उपलब्ध कराई जाती है। अन्य राज्यों में वैसी गर्भवती महिलाएं जो गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) की श्रेणी में तथा वैसी महिलाएं जो अनुसूचित जाति (आ.जा.) तथा अनुसूचित जनजाति (आ.ज.जा.) श्रेणी में हों और उनका संस्थागत प्रसव स्वास्थ्य केन्द्र में होता है तो उन्हें शर्तानुसार नकद हस्तांतरण की सुविधा प्राप्त होगी।
वर्ष 2005-06 के अंतर्गत 7.39 लाख गर्भवती महिलाओं को इसका लाभ मिला है और जेएसवाई ने वर्ष 2011-12 में लगभग 109.37 लाख गर्भवती महिलाओं को नकद सहायता उपलब्ध कराकर एक आकर्षक सफलता अर्जित की है। इसी प्रकार इस योजना के तहत वित्तीय व्यय वर्ष 2005-06 के 38 करोड़ रूपए की तुलना में कई गुना बढ़कर वर्ष 2011-12 में 1,552.85 करोड़ रुपए हो गया है।
जेएसवाई का भौतिक एवं वित्तीय प्रदर्शन इस प्रकार रहा-
वर्ष
लाभार्थियों की संख्या
(लाख में)
व्यय
(करोड़ में)
2005-06
7.39
38. 29
2006-07
31.58
258. 22
2007-08
73.29
880. 17
2008-09
90. 37
1241. 33
2009-10
100.78
1473.76
2010-11
106.96
                1618.39
2011-12
109.37
1606.18
2012-13
80.68*
1155.00*
*वर्ष 2012-13 के दिसंबर, 2012 तक भौतिक एवं वित्तीय उपलब्धि।
सामुदायिक भागीदारी बढ़ाने के लिए इस पहल ने समुदाय आधारित स्वास्थ्य स्वयं सेवकों की पहचान की है, जिसमें एएसएचए (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) हैं, वे स्वास्थ्य प्रणाली और समुदायों के बीच एक कड़ी का काम करेंगी। देश में 8 लाख से ज्यादा एएसएचए स्वयं सेवक कार्य कर रहे हैं। इस योजना को बढ़ावा देने के लिए हाल ही में एएसएचए कार्यकर्ताओं की निष्पादन आधारित प्रोत्साहन राशि में वृद्धि की गई है, जो निम्नलिखित है-
·        ग्रामीण क्षेत्रों में 600 रुपए प्रति प्रसव। जन्मपूर्व घटक के लिए 300 रुपए (कम से कम 3 एएनसी) तथा 300 रुपए संस्थागत प्रसव की सुविधा प्रदान करने के लिए ]
·        शहरी क्षेत्रों में 400 रुपए प्रति प्रसव। जन्मपूर्व घटक के लिए 200 रुपए (कम से कम 3 एएनसी) तथा 200 रुपए संस्थागत प्रसव की सुविधा प्रदान करने के लिए ]
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मीणा/आनन्द/शदीद-1626

महिलाओं के लिए अलग नगर बस सेवा

28-मार्च-2013 15:21 IST
केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने राज्य सरकारों को 10 लाख की आबादी वाले शहरों में महिलाओं के लिए अलग से नगर बस सेवा के प्रावधान की समीक्षा करने के संबंध में हाल ही में परामर्श जारी किया है। मंत्रालय ने सभी नगरीय बसों, जेएनएनयूआरएम तथा गैर जेएनएनयूआरएम बसों में "शहरी बस विनिर्देश" के अनुसार गुणवत्तापूर्ण परिवहन प्रणाली (आरटीएस) विनिर्देश के क्रियान्वयन के संबंध में राज्यों को परामर्श भी जारी किया है। तिपहिया वाहनों तथा टैक्सियों में जीपीएस/जीपीआरएस के जरिए वैज्ञानिक प्रबंधन के साथ-साथ सामान्य नियंत्रण केन्द्र के जरिए प्रबंधन के संबंध में कार्यवाही शुरू करने का परामर्श राज्यों को दिया गया है, ताकि यह प्रणाली यात्रियों के लिए बेहतर और सुरक्षित हो सके। 

जेएनएनयूआरएम के तहत विभिन्न शहरों में स्वीकृत की गई बसों की खरीद "शहरी बस विनिर्देश (यूबीएस)" के अऩुसार होनी चाहिए। केन्द्र सरकार द्वारा जारी अंश जो कि अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता है, वह इन प्रणालियों के खरीद तथा मंत्रालय को सौंपे जाने वाले खरीद आदेश से जुड़ा है। जेएनएनयूआरएम के तहत इन प्रणालियों का कार्यान्वयन/खरीद 31 मार्च, 2014 तक बढ़ा दिया गया है। 
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मीणा/आनन्द/शदीद-1627

Wednesday, March 27, 2013

महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता

26-मार्च-2013 17:53 IST
राज्‍य सरकारों को बढ़ावा देने की सलाह 
विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग ने परिसरों में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता और उनकी सुरक्षा के लिए कार्यबल गठित किया 
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राज्‍य सरकारों को महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा देने की सलाह दी है। इसमें पाठ्यक्रम तथा पाठ्य पुस्‍तकों का दोबारा निरीक्षण करना, महिलाओं के प्रति सकारात्‍मक सामग्री शामिल करते हुए उन्‍हें बेहतर बनाना तथा शिक्षकों को सालाना प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान कम से कम दो या तीन दिन तक महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा देने संबंधी मॉड्यूल को शामिल करना जैसे कदम शामिल हैं। मंत्रालय ने यह भी सलाह दी है कि स्‍कूल निगरानी प्रणालियां ऐसे मानकों की जांच सूची शामिल करें,जो कक्षा में पढ़ाई तथा स्‍कूल की अन्‍य गतिविधियों के दौरान महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा दे सकें। 

विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग-यूजीसी ने परिसरों में महिलाओं की सुरक्षा के उपायों तथा महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता से संबंधित कार्यक्रमों की समीक्षा करने के लिए जनवरी 2013 में एक कार्यबल का गठन किया था। इस कार्यबल को परिसरों में लड़कियों तथा महिलाओं की सुरक्षा के लिए वर्तमान में किए जा रहे प्रबंधों का जायजा लेने का भी अधिकार दिया गया है। 

केन्‍द्रीय माध्‍यमिक शिक्षा बोर्ड -सीबीएसई शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए तथा छात्रों में छोटी उम्र से ही महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता जगाने संबंधी मॉड्यूल तैयार कर रहा है। 

पहली से दसवीं कक्षा के लिए स्‍वास्‍थ्‍य और शारीरिक शिक्षा विषय का राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद-एनसीईआरटी की ओर से तैयार किया जा रहा पाठ्यक्रम राष्‍ट्रीय पाठ्यक्रम प्रारूप-एनसीएफ 2005 पर आधारित हैं, जिसमें आत्‍मरक्षा से जुड़े विषयों को शामिल किया गया है। 

नैतिक शिक्षा और महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता को स्‍कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करने के प्रयास भी किए गये हैं। 
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वि.कासोटिया/रीता/मधुप्रभा-1615

Tuesday, March 19, 2013

पूर्व राष्‍ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल पर पुस्‍तक

19-मार्च-2013 19:23 IST
उप राष्‍ट्रपति ने किया पुस्‍तक का लोकार्पण 
उप राष्‍ट्रपति श्री एम हामिद अंसारी ने कहा है कि हमारे देश ने अनेक महिला नेता दिए हैं जिन्‍होंने समाज पर अमिट छाप छोड़ी है लेकिन यह दुखद है‍कि हम अक्‍सर महिलाओं को समान नागरिक के रूप में नहीं देखते और उनके मानवीय अधिकारों की ही अनदेखी करते हैं। 

उप राष्‍ट्रपति ने यह बात पूर्व राष्‍ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल पर लिखी पुस्‍तक का लोकार्पण कर रहे थे। इस पुस्‍तक का शीर्षक है : फस्‍ट वुमन प्रेसीडेंट आफ इंडिया, रिइनवेंटिंग, लीडरशिप, श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल। इस पुस्‍तक की लेखिका हैं, इंग्लिश एंड फारेन लैंग्‍वेज यूनिवर्सिटी हैदराबाद की कुलपति प्रोफेसर सुनैना सिंह। 

उप राष्‍ट्रपति ने कहा कि पूर्व राष्‍ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल का जीवन और कार्य नागरिकों के लिए प्रेरणा स्रोत और उदाहरण योग्‍य है। श्रीमती पाटिल ने सार्वजनिक सेवा सम्‍मान और आधुनिक दृष्टिकोण के साथ की। भारत के राष्‍ट्रपति के रूप में उन्‍होंने उच्‍चतम पद का निर्वहन करते हुए संविधान की मर्यादाओं का पालन किया और प्रतिबद्ध रूप से देश के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए कार्य किया। 

उप राष्‍ट्रपति श्री हामिद अंसारी ने पुस्‍तक की लेखिका प्रोफेसर सुनैना सिंह के कार्य की सराहना करते हुए कहा कि पुस्‍तक न केवल प्रथम महिला राष्‍ट्रपति की आत्‍मकथा है बल्कि पुस्‍तक से देश की विभिन्‍न समस्‍याओं की भी जानकारी मिलती है। 

वि. कासोटिया/गांधी/दयाशंकर – 1468

Monday, March 11, 2013

INDIA: मध्य प्रदेश सरकार की महिला नीति:

बाढ़ की संभावनाओं पर घर बनाने का जतन         --प्रशान्त कुमार दूबे
An Article by the Asian Human Rights Commission
बाढ़ की संभावनायें सामने हैं, और नदियों के किनारे घर बने हैं।
मशहूर शायर दुष्यंत कुमार का यह शेअर प्रदेश में घनघोर जल्दबाजी में की जा रही एक कसरत पर मौजूं है | देश में पहली बार महिला नीति बनाने का तमगा हासिल करने वाले और विगत एक साल से बगैर महिला नीति के सांसे भरते मध्यप्रदेश में नई महिला नीति को बनाने की कवायद जोर-शोर से चल रही है। महिला एवं बाल विकास विभाग और प्रशासन अकादमी की महिला शाखा इस पर कसरत कर रही है। पर यह सब बहुत ही जल्दबाजी में हो रहा है। क्यूंकि खबर है कि प्रदेश के घोषणावीर मुख्यमंत्री इस नीति को अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर लागू कर इसे भुनाना चाहते हैं। यह जनसंपर्क विभाग का एक महत्वपूर्ण काम है कि चुनावी साल में दिवसों की महत्ता को जम कर भुनायें और कमोबेश वही हो रहा है। बहरहाल जल्दबाजी में बन रही इस महिला नीति के काफी उथले होने के आसार हैं। यह नीति यदि 8 मार्च को लागू नहीं की गई तो भी मार्च में यह लागू हो ही जायेगी |
प्रदेश सरकार के साथ एक जुमला साथ चलता है कि गलती करना और उसे दोहराते रहना | यह महिला नीति के साथ भी हो रहा है | ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश की महिला नीति 2008-12 तैयार की गई थी जिसका लक्ष्य विकास की मुख्य धारा में महिला की गरिमापूर्ण भागीदारी सुनिश्चित कर उसके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से संबंधित नीतियों का परिणाममूलक क्रियान्वयन करना रखा गया। इस महिला नीति में महिलाओं के घटते लिंग अनुपात,बालिका भ्रूण हत्या की रोकथाम, महिलाओं के प्रति हिंसा, महिलाओं व किशोरी बालिकाओं की शिक्षा व गुणात्मक स्वास्थ्य सेवायें, प्रत्येक स्तर पर निर्णय प्रक्रिया एवं व्यवस्था में भागीदारी, जेण्डर पर आधारित बजट व्यवस्था तथा नीतिगत प्रावधानों की मानिटरिंग, मूल्याकंन और प्रतिवेदन को शामिल किया गया था । पर एसा कुछ हुआ नहीं और नयी नीति की तैयारी चालू हो गयी है |
आइये जरा पिछली नीति के कुछेक वायदों और आज के हालात पर गौर करें | अव्वल तो यही कि बलात्कार और छेड़छाड़ के मामलों में मध्यप्रदेश पिछले 10 वर्षों से पहले स्थान पर है | इस कलंक को धोने के लिए पिछली नीति में प्रदेश के प्रत्येक पुलिस थानों में महिला पुलिस अधिकारी की नियुक्ति करना था, जो आज तक नहीं हुई। ट्रेफिकिंग को रोकने के लिये निगरानी व्यवस्था बनाई जानी थी जो बनी नहीं, बल्कि ट्रेफिकिंग पिछले पांच सालों में और बढ़ी है। केवल पिछले सात सालों में ही 8108 बालिकाओं की गुमशुदगी दर्ज है | हालाँकि अभी 2 माह पहले जरूर एक हेल्पलाइन बनी है जो स्वागत योग्य कदम है लेकिन वह भी दिल्ली प्रकरण से उपजे चौतरफा दवाब का नतीजा है |
पिछली नीति में महिलाओं के भू अधिकारों के संदर्भ में समानाधिकार दिये जाने पर जोर दिया गया था, लेकिन इसी राज्य सरकार ने महिलाओं के नाम पर रजिस्ट्री करने पर 1 प्रतिशत शुल्क की छूट के प्रावधान तक को खत्म कर दिया गया। इसके लिए कानून भी बनाया जाना था, पर कोई बात आगे नहीं बढ़ी। एनएफएचएस-3 के अनुसार 56 फीसदी खून की कमी वाली महिलाओं के प्रदेश में किशोरी स्वास्थ्य को बेहतर करने और पोषण देने की बात कही गई थी लेकिन अभी भी यह सरकार हर गांव में केवल दो ही किशोरी बालिकाओं को पोषण आहार उपलब्ध करवा रही है, ना कि सभी बालिकाओं को । सबला योजना(केंद्र प्रवर्तित) भी प्रदेश के 15 जिलों तक सीमित है बाकी 35 जिलों के लिए कुछ नहीं।
नीति यह भी कहती थी कि गर्भकाल में महिलाओं से मेहनत करवाने से ठेकेदार पर कार्यवाही होगी। परन्तु आज तक एक भी ठेकेदार के खिलाफ प्रदेश में कोई कोई भी कार्यवाही नहीं हुई बल्कि गर्भवती महिलायें तो मनरेगा जैसे सरकारी कार्यक्रमों में ही काम करती पाई जा रही हैं। इस पूरे मसले पर महत्वपूर्ण था कि हर साल महिलाओं की स्थिति पर नवीन आंकड़ों और राज्य स्तर पर उठाये जा रहे कदमों के संबंध में एक स्थिति पत्र बनाने और उसे सार्वजनिक करने की जिम्मेदारी योजना आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग की थी, लेकिन अब तक यह पत्र एक बार भी नहीं निकला है। क्रियान्वयन की निगरानी इसी विभाग के पास थी लेकिन निगरानी हुई होती तो शायद हमें यह मर्सिया गाने की जरूरत थी ही नहीं।
हां कुछ हुआ है तो वह है पंचायती राज्य एवं शहरी निकायों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण। यह काबिल-ए-गौर है और इसलिये सरकार बधाई की पात्र है लेकिन यह भी देखना सरकार का ही काम है कि उन जनप्रतिनिधियों की क्षमतावृद्धि कैसे की जाये ताकि वे बेहतर काम कर सकें। इसी प्रकार बालिका भ्रूण हत्या की रोकथाम और बालिका शिक्षा पर तो ध्यान दिया जा रहा है पर बालिकायें स्कूल क्यों छोड़ती हैं उस पर ज्यादा कसरत नहीं हुई है।
सरकार ने यह भी कहा था कि गरीबी परिवारों की बालिकाओं को विवाह में विशेष सहायता दी जायेगी। सरकार ने इसके लिये प्रावधान तो बढ़-चढ़कर किये पर कन्या को दान की वस्तु समझते हुये ‘कन्यादान’ योजना लागू कर दी। ‘कन्यादान’ शब्द यदि राज्य उपयोग करता है तो इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति नहीं होगी। समझ से परे यह भी है कि एक राज्य महिला नीति बनाते समय महिलाओं को समता, समानता, गरिमा व क्षमताओं के साथ महिला को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने की बात करता है लेकिन दूसरी ओर उसी महिला की गरिमा के साथ खिलवाड़ करते हुये कन्यादान योजना लागू करता है। खबर यह भी है कि नई महिला नीति का प्रारुप भी इस पर मौन है और नीति नियंता भी।
तो सवाल यह है कि यदि पिछली नीति के क्रियान्वयन का यह स्तर है तो क्या यह माना जाये कि यह नीतियां महज रस्मअदायगी ही होती हैं ताकि यदि विकास के तराजू पर तौला जाये तो राज्य कह सके कि हमने महिला नीति बनाई है। पिछली महिला नीति 2008-2012 में सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान किये थे पर छः साल बाद भी ढांक के तीन पात, तो फिर ऐसी नीति का क्या औचित्य .....? क्या यह नीतियां दिखावे या वेबसाईट पर शोभा बढ़ाने के काम आती हैं ताकि जब गूगल पर सर्च किया जाये तो टप से उछल कर महिला नीति, मध्यप्रदेश सामने आ जाये और महिलाओं के हक में मध्यप्रदेश का यशगान गाया जा सके। सवाल तो यह भी है कि क्या यह नीतियाँ मुख्यमंत्री और प्रशासन के खम ठोंकने के काम ही आती हैं या संदर्भित समूह के उत्थान की वास्तविक चिंता भी समाहित होती है। जवाब है नहीं। क्यूंकि यदि नीतियों और उनके प्रावधानों को सरकार गंभीर मानती तो फिर पिछले एक साल से प्रदेश में तो नीति ही नहीं है तो सरकार इतनी कछुआ चाल से क्यूँ रेंगती रही ? अब जबकि दिल्ली प्रकरण से देश भर में बने माहौल से प्रदेश सरकार की लुटिया भी ना डूबने लगे तो सरकार आनन-फानन में यह नीति बनाने पर विचार कर रही है |
प्रदेश के तमाम महिला संगठनों ने इन सभी मुद्दों पर अपनी तल्ख़ टिप्पणी करते हुये यह मांग की है कि ना केवल बेहतर नीति बनाई जाये बल्कि पुरानी महिला नीति के प्रावधानों और उनके हश्र को ध्यान में रखते हुये सरकार उसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का खाका भी खींचा जाए। प्रदेश के करीब 20 संगठनों ने महिला नीति को लेकर व्यापक सुझाव भी राज्य सरकार को सौंपे हैं | नागरिक अधिकार मंच की उपासना बेहार कहती हैं कि सरकार को इतनी जल्दबाजी की बजाय प्रस्तावित महिला नीति को जनमंचों पर लाना चाहिये, ताकि उस पर गंभीर चर्चायें हों और उसके बाद ही सरकार आगे बढ़े । इससे हटकर एक बड़ा सवाल कि सरकार जो नीति में लिखेगी, वो अपनाने के लिये कितना तैयार है, यह भी वह बताये । देखना यह भी होगा कि पिछली बार के नीति दस्तावेज की प्रथम पंक्ति की तरह सरकार इस बार भी महिला को प्रकृति की सबसे सुंदर कृति बतायेगी या महिला को सुन्दर और कुरुप की छवि से बाहर निकलकर एक स्वतंत्र व्यक्तित्व मानेगी और उसे आगे लाने के प्रयास भी करगी।
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About the Author: Mr. Prashant Kumar Dubey is a Rights Activist working with Vikas Samvad, AHRC's partner organisation in Bophal, Madhya Pradesh. He can be contacted at prashantd1977@gmail.com
About AHRC: The Asian Human Rights Commission is a regional non-governmental organisation that monitors human rights in Asia, documents violations and advocates for justice and institutional reform to ensure the protection and promotion of these rights. The Hong Kong-based group was founded in 1984.

Wednesday, March 6, 2013

क्या सच में हम ऐसा ही समाज चाहते हैं?

Wed, Mar 6, 2013 at 3:09 PM
An Article by the Asian Human Rights Commission
INDIA: स्त्री विरोधी नहीं हो सकते सभ्य समाज--शिशिर कुमार यादव
पिछले कई दिनों से देश भर में,समाज द्वारा महिलाओं के प्रति अपराधों के घिनौने रूप पर एक चर्चा और विमर्श का माहौल हैं. अफ़सोस यह कि यह माहौल किसी आत्मचेतना के चलते नहीं बल्कि एक निर्मम बलात्कार और हत्या से उभरे जनाक्रोश के चलते बना है. इस घटना के लगभग दो महीने के बाद भी न समाज शर्मिन्दगी से उबार पाया है न उसी समाज के एक हिस्से के लोग दरिंदगी से और हमारा हासिल वह समाज है जिसमें एक महिला अपनी प्राकृतिक जीवन यात्रा इसलिए पूरी नहीं कर सकती क्योंकि समाज नहीं चाहता था कि वह इस तरह सें जिएं.
इस खबर के बाद गलतियों और खामियों के सामाजिक और राजनैतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं, जिनकी अपनी ही प्रकृति और सीमा होगी. लेकिन फिर भी यह हत्या, जो न केवल निर्मम बल्कि बडे सधे तरीके से भी की हैं उस ओर सोचना जरूरी हैं कि क्या सच में हम एक सभ्य समाज में जी रहे हैं? क्या सच में हम ऐसा ही समाज चाहते हैं? इस मौत को क्या कहा जाए? हादसा, अपराध, दुर्घटना या कोई और शब्द. शायद किसी भी शब्द में इतनी ताकत हो जो इसे पूरी तरह से विश्लेषित कर सकें. वस्तुतः देखें तो इस हादसे के सन्दर्भ में भाषा की सीमा भी साफ दिखती हैं क्योंकि सिर्फ हादसा कहने से ऐसे अपराधों की गंभीरता और वीभत्सता का मौलिक चरित्र ही खत्म हो जाता हैं.
Photo  courtesy:Indian Pics
अफ़सोस यह भी है कि ऐसे निर्मम अपराधों के बाद तमाम लोग ऐसे अपराधियों के लिए मौत की सजा माँगने लगते हैं जैसे मृत्युदंड से इस समस्या का समाधान हो जाएगा. पर मृत्युदंड ने दुनिया के किसी भी हिस्से में अपराध रोके हों इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता. एक दूसरे स्तर पर भी देखें तो समझ आता है कि अगर मौत की सजा इन दुष्कृत्यो को रोक सकती तो एक अपराधी को ऐसी सजा मिलने के बाद अपराधी और समाज दोनो ही इसकी पुनरावृत्ति नहीं करते. इन हादसों की पुनरावृत्ति हमें यह बतलाती हैं कि अब भी हम ना तो इनकी गंभीरता समझ पाए हैं और ना ही वीभत्सता. हाँ मौत की सजा देने से यह जरूर होगा कि बलात्कारी सबूत न छोड़ने के प्रयास में पीड़ित की हत्या करने पर उतर आयें.
जो भी हो पर इस हादसे ने हमें एक बार खुद की ओर सोचने के लिए झकझोरा हैं कि हम कैसे सामाजिक औऱ राजनैतिक ढाचें में जी रहे हैं? हम एक ऐसे समाज रह रहे हैं जिसमे आधी दुनिया की भागीदार स्त्री के मूलभूत अधिकारों को हम सभ्यता के हजारों साल आगे आने के बाद भी बर्बर तरीके से कुचलता जाता रहा है. हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जिसमे महिलाओं के प्रति इस बर्बरता को जिंदा रखनें के लिए चरणबद्ध तरीको से जाल बुने जाते हैं और उनके खिलाफ होने वाले अपराधों की फेहरिश्त उनके परिवारों से ही शुरू हो जाती है. भ्रूण हत्या, परिवार के अन्दर यौन हिंसा, दहेज़, दहेज़ हत्या, ध्यान से देखें तो यह सब स्त्रियों के विरुद्ध उनके द्वारा किये जाने वाले अपराध हैं जो अन्यथा उनके बचाव के लिए जिम्मेदार हैं. 


कहने की जरूरत नहीं है कि हम जिस देश में रह रहें हैं उसमें इन अपराधों को सामाजिक और राजनैतिक मान्यता की अदृश्य शक्ति मिली हुई हैं. हम और आप इन्हे पहचानते और जानते भी हैं औऱ कई बार इनके हिस्से भी होते हैं पर बदलते नहीं हैं. हमें इनसे दिक्कत सिर्फ तब होती है जब यह हमारे अपनों के साथ हों. हाँ, ऐसे अपराधों के बाद आने वाली प्रतिक्रियायों पर नजर डालने से इन अपराधों को मौन स्वीकृति दिलाने वाले चेहरे भी साफ़ नजर आने लगते हैं. दिल्ली के इस मामले के बाद समाज और सार्वजनिक मंचो से बयान उसकी बानगी हैं। और इसी लिए यह पूछना जरूरी बनता है कि ऑनरकिलिंग को भावनात्मक और सामाजिकता से जुड़ा मुद्दा माननें वाले औऱ चुपचाप भ्रूण हत्या को बढावा देने वाले समाज से, इस हत्या पर ईमानदारी भरी प्रतिक्रिया औऱ बदलाव की उम्मीद करना कहां तक समझदारी भरा कदम होगा.



अफ़सोस यह भी है कि समाज संस्कृति के उद्घोषक जो इस देश को " कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी से" विविधता भरी संस्कृति का वर्णन कर अपना सीना चौड़ा करते हैं वे भी यह भूल जाते हैं कि महिलाओं को लेकर लगभग पूरा देश एक ही तरह का व्यवहार करता है. क्या उत्तर क्या दक्षिण, क्या राजस्थान क्या बंगाल, क्या शिक्षित क्या अशिक्षित, महिलाओं के प्रति अपराध और उनके अधिकारों के प्रति रवैया लगभग एक सरीखा और एक समान हैं. देश का कोई कोना दंभ से इसका दावा नही कर सकता हैं कि वह इन स्थितियों और परिस्थितियों से खुद को इतर रखे हुए हैं. स्पष्ट हैं कि महिलाओं के प्रति नजरिये को लेकर आजतक हमारा समाज जहां था वहीं हैं और अगर कुछ बदलाव के चिन्ह दिखाई भी पडे हैं तो उन्हे कुचलनें के लिए समाज ने अपराधियों को हमेशा बढ़ावा दिया हैं. जिससे उनकी नैतिकता और सभ्यता की खोखली पाठशाला का पाठ महिलाएं आसानी से समझ लें. आज भी समाज, नारी देह और उसकी स्वतंत्रता को अपने पैमानो से देखता हैं और आगे भी उसे नियंत्रित करने का प्रयास जारी हैं. इन कोशिशों में अपराधी और अपराध को मौन सहमति देकर आगे भी नियंत्रित करना चाहता हैं. इसीलिए सामाजिक व्यवस्था का कोई भी परिवर्तन, आज भी अलोकतांत्रिक तरीके से ही कुचला जाता हैं. राजनैतिक और सामाजिक संस्थाए इनको न केवल बढ़ावा देती हैं वरन कई बार अगुवाई भी करती नजर आती हैं.



निश्चित ही कोई भी समाज या व्यवस्था आदर्श नहीं होती हैं, अच्छे और बुरे गुण सभी सामाजिक व्यवस्था के हिस्से होते हैं. भारतीय सामाजिक व्यवस्था उससे इतर नहीं हैं, लेकिन फिर भी महिलाओं के प्रति समाजीकरण की वह व्यवस्था जिसमें उनके प्रति किए गए अपराध जो कि सामाजिक अपराध हैं और समाज का हिस्सा रहे है. इनका इतिहास बर्बर काल सें हैं और आज भी अनवरत जारी हैं. आज भी हम ऐसे ही समाज को पाल पोस रहे हैं जो महिलाओं के अधिकारों के प्रति पूर्णतया असंवेदनशील हैं. इस कदर की असंवेदनशीलता और अपराध को बढावा देना किसी भी सभ्य समाज का हिस्सा नहीं होता हैं. ऐसे में हमारा दावा कितना खोखला हैं कि हम एक सभ्य समाज में हैं और हमारे द्वारा एक सभ्य समाज का निर्माण किया जा रहा हैं.

About the Author: Mr. Shishir Kumar Yadav is a research scholar based in Jawaharlal Nehru University, New Delhi. He could be contacted at shishiryadav16@gmail.com
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About AHRC: The Asian Human Rights Commission is a regional non-governmental organisation that monitors human rights in Asia, documents violations and advocates for justice and institutional reform to ensure the protection and promotion of these rights. The Hong Kong-based group was founded in 1984.

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